Bihar Assembly Elections 2020: कोसी में रेत की ढेर की तरह ढहती रही है जमीन, वापसी की बस घोषणाएं
कटिहार में 1954 - 55 में सर्वे के दौरान कुर्सेला से बरारी होते हुए मनिहारी तक सैकड़ो रैयती किसानों की हजारो एकड़ सर्वे से अछुता रह गया। इस जमीन की पुनर्वापसी की चिरप्रतिक्षित मांग आज भी सरकारी फाइलों में धूल फांक रही है।
कटिहार [भूपेन्द्र सिंह]। चुनाव आता है, वादे होते हैं और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। बरारी विधानसभा के गंगा दियारा के किसानों की जमीन पुनर्वापसी की चिरप्रतिक्षित मांग आज भी सरकारी फाइलों में धूल फांक रही है।
दरअसल 1954 - 55 में सर्वे के दौरान
गंग शिकस्त (पानी-बालू) रहने के कारण सर्वे से अछुता रह गया। नतीजतन उसे बिहार सरकार के खाते मे दर्ज कर लिया गया था। करीब दो दशक पूर्व गंगा नदी के दक्षिण की ओर से उत्तर की तरफ रूख करने से उक्त जमीन नव बरार होकर पुन: खेती योग्य हो चुकी है। इसके बाद सक्षम रैयतदार किसान येन केन प्रकारेण खतियान व अन्य दस्तावेज के आधार पर अमीन से उपरोक्त जमीन का पैमाईश कराकर उसपर खेती भी कर रहे है परंतु बिहार सरकार के खाते में दर्ज होने से उस पर मलिकाना हक के लिए सरकारी बाबूओ और नेताओ के कार्यालय का चककर काट कर वे परेशान हैं। यह विवाद का कारण भी बनता है।
क्या कहते हैं किसान
किसान कैलाश पति यादव, मुक्ति कुमार यादव, महेन्द्र यादव, अशोक यादव, सत्यनारायण यादव, अरूण कुमार ङ्क्षसह, राधेय महतो, सत्यनारायण चौधरी आदि ने कहा कि कुर्सेला के बरारी होते हुए मनिहारी गंगा दियारा तक के गोबराही मौजा, जौनिया मौजा, कोलगामा मौजा, नारायणपुर मौजा, मिलिक मौजा, सर्वाराम मौजा, बसुहार मौजा आदि की हजारों एकड़ जमीन के गंग शिकस्त के कारण उसे तत्कालीन सर्वे में बिहार सरकार के खाते मे दर्ज कर लिया गया था। अब करीब दो दशक पूर्व से उक्त जमीन नवबरार है। किसानों के जमीन पुनर्वापसी की मांग पर शासन प्रशासन बेसुध बना बैठा है। बिहार कास्कारी अघिनियम 35 (ए) के तहत उसकी पहचान कर उसे पुन: रैयतदार को वापस करना है। उपरोक्त जमीन पर मलिकाना हक नहीं मिलने से किसान क्रेडिट कार्ड, फसल क्षतिपूर्ति, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना आदि के लाभ से किसान वंचित हैं। साथ ही सरकारी राजस्व को भी चूना लगने की बात कही है।
क्या कहते हैं अंचलाधिकारी
अंचलाधिकारी अमरेन्द्र कुमार ने कहा कि बहती गंगा व बालू धार आदि बिहार सरकार के खाते मे दर्ज है। अगर रैयतदार किसानों को लगता है कि जमीन नवबरार हुई है तो उन्हें आवश्यक साक्ष्य के साथ कागजात प्रस्तुत करना होगा। जांचोपरांत इस संदर्भ की अनुशंसा सरकार व विभाग को भेजी जाएगी।