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अभिनेता अशोक कुमार की जयंती : दादा मुनि ने ड्राइवर के लिए बांद्रा में खरीदा था फ्लैट, भागलपुर रहता था हृदय में

अशोक कुमार की 108वीं जयंती 13 अक्टूबर को है। तिमांविवि के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्राध्यापक उनकी भतीजी डॉ. रत्ना मुखर्जी ने उनके यादों को किया साझा।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 11:59 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 11:59 AM (IST)
अभिनेता अशोक कुमार की जयंती : दादा मुनि ने ड्राइवर के लिए बांद्रा में खरीदा था फ्लैट, भागलपुर रहता था हृदय में
अभिनेता अशोक कुमार की जयंती : दादा मुनि ने ड्राइवर के लिए बांद्रा में खरीदा था फ्लैट, भागलपुर रहता था हृदय में

भागलपुर [विकास पाण्डेय]। सदाबहार अभिनेता स्व. अशोक कुमार भारतीय सिनेमा जगत के महान अभिनेता ही नहीं आला दर्जे के इंसान भी थे। इसका एक उदाहरण यह कि उन्होंने अपने ड्राइवर को आजीवन पेंशन दी और उनके लिए फ्लैट खरीदा। लाख अनुरोध के बावजूद वे घर या ससुराल से आए परिजनों को शूटिंग पर इसलिए नहीं ले जाते थे कि प्रोड्यूसरों को अनावश्यक खर्च वहन नहीं करना पड़े। उनके साथ सिर्फ उनकी बड़ी बेटी भारती गांगुली जाती थीं, जो उनकी देखभाल करती थीं।

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दादा मुनि से विख्यात अशोक कुमार की 108वीं जयंती 13 अक्टूबर को है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्राध्यापक उनकी भतीजी डॉ. रत्ना मुखर्जी ने यादों को साझा करते हुए बताया कि वे अपने दो ड्राइवरों में से हसमत अली को आजीवन पेंशन देते रहे। दूसरे ड्राइवर खुर्शीद के अवकाश ग्रहण करने पर बांद्रा में चार कमरों का फ्लैट खरीद कर दिया।

वे फिल्म की शूटिंग में भाग लेकर शाम सात बजे तक चेंबुर स्थित अपने बंगले पर आ जाते थे। स्नान करने के बाद कुछ देर घर के सभी लोगों के साथ बैठकर गुफ्तगू जरूर करते थे। उसमें बच्चे व बड़े शामिल रहते थे। वे बताती हैं, भागलपुर के राजबाटी स्थित अपनी ननिहाल में जन्मे अशोक कुमार अक्सर यहां करते थे। वे आला दर्जे के चित्रकार व होमियोपैथ के चिकित्सक भी थे। उन्होंने दादा-दादी का ऐसा उम्दा आदमकद तैल-चित्र बनाया था, जिसे देख कर लगता था कि मानो वे दोनों अब बोल उठेंगे। होमियोपैथ चिकित्सक के रूप में उनकी शोहरत थी। उनसे इलाज कराने मुंबई के अलावा नासिक, पुणे, शोलापुर आदि शहरों से भी मरीज आते थे। चिकित्सा के लिए कोई फीस नहीं लेते थे।

डॉ. रत्ना उन दिनों को याद करती हैं, मेरे पिता अरुण कुमार मुखर्जी का दिल का दौरा आकस्मिक निधन हो गया। वे बॉलीवुड में संगीतकार थे। इसके बाद चाचाजी ने परिवार को संभालने में हरसंभव सहयोग किया। जून, 1964 में जब दीदी की शादी हो रही थी तो व्यस्तता के कारण वे तो नहीं आ पाए, लेकिन उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रिया सिनेमा हॉल के मालिक वेणु दा को भेज दिया। वे दीदी की ससुराल विदाई के दिन तक डटे रहे और विवाह का सारा खर्च स्वयं वहन किया।


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