जंग-ए-आजादी की दास्तान : बालेश्वर ने 14 साल की उम्र में जला दिया था रेलवे का मालगोदाम Bhagalpur News
सखीचंद्र घाट स्थित सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बालेश्वर को तब बस इतनी समझ थी कि लोग अंग्रेजों को भगाने के लिए जुलूस निकाल रहे हैं उनकी खिलाफत कर रहे हैं।
भागलपुर [संजय]। लाख प्रयास के बाद ब्रिटिश सरकार उस चौदह वर्षीय बालक को नहीं खोज सकी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भागलपुर रेलवे मालगोदाम को फूंक डाला था। वह बालक कोई और नहीं बूढ़ानाथ जोगसर निवासी बालेश्वर साह हैं, जिनकी उम्र अब नब्बे पार है।
सखीचंद्र घाट स्थित सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बालेश्वर को तब बस इतनी समझ थी कि लोग अंग्रेजों को भगाने के लिए जुलूस निकाल रहे हैं, उनकी खिलाफत कर रहे हैं। एक दिन बालेश्वर साह स्कूल से घर लौट रहे थे। उसी समय पता चला कि कुछ लोग स्टेशन से सैंडिस ग्राउंड तक अंग्र्रेजों के खिलाफ जुलूस निकालने वाले हैं। स्कूली बस्ता लिए वे भी जुलूस में शामिल हो गए। सैंडिस कंपाउंड में स्वतंत्रता सेनानी के भाषण को सुना और तय कर लिया अब अंग्र्रेजों को देश से भगाकर ही मानेंगे।
इसके बाद इन्होंने उन लोगों की तलाश की, जो अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन को धार दे रहे थे। इनकी मुलाकात तेज चंद्र चौधरी व दयानंद झा से हुई। इन लोगों के संपर्क में आने के बाद भागलपुर मालगोदाम को जलाने की योजना बनी। उस योजना में बालेश्वर भी शामिल हो गए। इन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर मालगोदाम को फूंक दिया। इसी बीच अंग्र्रेजों को पता चल गया। कुछ लोग पकड़े गए। गिरफ्तार लोगों को छुड़ाने के लिए फिर रेल पटरी उखाडऩे की योजना बनी। बदले की आग धधक रही थी, सो बालेश्वर साह भी रेल पटरी उखाडऩे चल दिए।
लगातार हुई घटना के बाद अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों की पहचान के लिए खुफिया को सक्रिय कर दिया। खुफिया की रिपोर्ट में इनकी भी पहचान हुई। पुलिस ने पकडऩे के लिए कई दफा घर पर छापेमारी की। लेकिन बालेश्वर कभी उनके हाथ नहीं आए। बाद में इन्हें फरार घोषित कर दिया गया। इनकी मदद को इलाके के लोग भी खड़े हो गए, जब कभी पुलिस पकडऩे के लिए आती, आसपास के लोग बता देते थे। बालेश्वर घर छोड़कर फरार हो जाते थे। यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक देश आजाद नहीं हो गया।
बालेश्वर कहते हैं अंग्रेज चले गए लेकिन वे पकड़ में नहीं आए। मेरी वजह से पिता को परेशानी जरूर झेलनी पड़ती थी। पिता मिठाई की छोटी-सी दुकान चलाते थे। देश आजाद होने के बाद मैंने पिता की दुकान संभाल ली। लोगों की शादी बारात में भी जाकर मिठाई बनाने का काम शुरू किया। दुकान अभी भी है। अब छोटा बेटा चला रहा है।
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