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विदेशों में भी पुलिस की वर्दी पर चमकते हैं इस गांव के कारीगरों के हाथों बने बैज

बांका के धोरैया प्रखंड के कारीगर विदेशी पुलिस की वर्दी पर बैज निर्माण कर रहे हैं। इससे स्‍वरोजगार को बढ़वा मिलता है। वहीं विदेशी जमीं पर भारत की पहचान भी बढ़ती है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 11:39 AM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 11:39 AM (IST)
विदेशों में भी पुलिस की वर्दी पर चमकते हैं इस गांव के कारीगरों के हाथों बने बैज
विदेशों में भी पुलिस की वर्दी पर चमकते हैं इस गांव के कारीगरों के हाथों बने बैज

बांका [बोध नारायण तिवारी]। बांका के कारीगरों की कला की पहचान विदेशों में भी है। विदेशी पुलिस की वर्दी पर चमकने वाला बैज का निर्माण यहां के कारीगर करते हैं। इसके अलावा कुछ अन्‍य देशों के निजी सुरक्षाकर्मी के लिए भी बैज बनाया जाता है। इससे गांव में स्‍वरोजगार को बढ़वा मिल रहा है। साथ ही विदेशी जमीं पर भारत की साख मजबूत होती है। हालांकि कोरोना काल में बैज निर्माण की गति धीमी हुई है। कारीगरों को बैज विदेशों तक भेजने में परेशानी हो रही है।

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धोरैया प्रखंड में होता है निर्माण

धोरैया प्रखंड के कुरमा गांव के कारीगर अभी अफ्रीका पुलिस के लिए बैज बना रहे हैं। इस कार्य में गांव के डेढ़ दर्जन कारीगर शामिल हैं। इसकी शुरूआत दो वर्षों पहले तीन दर्जन युवाओं ने की थी। कारीगर मु इजहार, मु जहांगीर,  मु मुर्शिद, मु नौशाद, मु अख्तर ने बताया कि एक व्‍यक्ति एक दिन में बैज बनाकर छह सौ रुपये तक कमा लेते हैं। इसके लिए कारीगर को कहीं जाना नहीं होता। घर में ही रहकर बैज निर्माण किया जाता है। एक बैज को बनाने में 25 रुपये मिलता है।

कोरोना काल से हुआ आर्थिक नुकसान

भारत सहित अन्‍य देशों में इस समय कोरोना वायरस का संक्रमण है। इस कारण माल को लाने और पहुंचाने का संकट है। ऑडर भी ज्‍यादा नहीं मिल रहे। जो ऑडर मिल रहे हैं, इसके लिए उन्‍हें कम मजदूरी दी जाती है। कोरोना काल में एक बैज के लिए निर्माण के लिए 15 रुपये तक दिए जाते हैं। मेहनत अधिक और मजदूरी कम होता देख करीगरों का मोह इस कार्य से भंग हो रहा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे कारीगर कच्‍चा माल नहीं मंगा पा रहे हैं।

हेड करीगर ने कहा-ट्रेन नहीं चलने से परेशानी

ग्रामीणों को रोजगार देने वाले रहमानडीह गांव के हेड कारीगर मु करीम ने बताया कि इस धंधे से युवाओं को कारीगरी का मौका मिला है। कच्चा माल उन्हें दिल्ली के संवेदक सफीक एवं धवन से ही मिलता है। इन्‍हीं के जरिये ही तैयार किया हुआ बैज विदेशों तक पहुंच है। लॉक डाउन में ट्रेन नहीं चलने से तैयार माल को कोरियर से भेजना पड़ता है। जिससे ज्‍यादा रुपये खर्च होते हैं। प्रत्येक पंद्रह दिन में यहां से तीन हजार पीस बैज तैयार कर भेजा जाता है।

पूंजी के अभाव में नहीं ला पाते कच्चा माल

बैज निर्माण में लगे कारीगरों के पास पूंजी का अभाव है। कारीगरों ने सरकार और जिला प्रशासन से इस रोजगार को बढ़ाने के लिए अर्थिक सहयोग की मांग की है। करीगरों ने कहा कि इससे बेरोजगारी दूर होगी। यदि सरकार और जिला प्रशासन इस ओर ध्‍यान दे तो सेकड़ों युवाओं को इस रोजगार से जोड़ा सकता है। अपने ही गांव में रोजगार मिल जाएगा। वहीं, विदेशों में भारतीय कला को पहचान भी बढ़गी।


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