प्याली में तूफान लाने की हो रही कोशिश
गिरोह में सेंधमारी करने वाले, खाकी वाले बस हाथ में बंदूक ताने खड़े हैं। दूर से ही डायलाग उछाल रहे हैं इस बार कोई सड़क पर रखे खजाने को लूट के दिखाओ तो जाने। धंधा तो भइया धंधा है।
भागलपुर [जेएनएन]। जब कोई समंदर के पास नहीं जा सकता, उसमें तूफान नहीं ला सकता तो कोई न कोई जुगाड़ लाता है। बचपन में हम भी माचिस का टेलीफोन बनाकर बातें करते थे। ठीक वैसे ही धंधे-पानी से जुड़े कुछ लोगों ने पहले तो एक बड़े गिरोह में शामिल होने का प्रयास किया। एड़ी-चोटी का जोर लगाया लेकिन जब दो-दो बार फिसल गए तो कुछ दिन तक सदमे में रहे। फिर किसी ने आइडिया दिया कि क्यों ना वह किसी छोटे गिरोह का अधिग्रहण कर लें। आइडिया अच्छा था, लिहाजा इसकी प्रक्रिया शुरू हुई। बीडिंग हुई, पार्टनरों को पटाया गया और अधिग्रहण मान लिया गया। शुरू हुआ व्यापार। शहर में जगह-जगह रखे खजाने को लूटने की साजिश रची गई। सफलता भी मिली। कुछ में टीम को असफलता भी हाथ लगी। पर कोशिश जारी है।
इधर, गिरोह में सेंधमारी करने वाले, खाकी वाले बस हाथ में बंदूक ताने खड़े हैं। दूर से ही डायलाग उछाल रहे हैं इस बार कोई सड़क पर रखे खजाने को लूट के दिखाओ तो जाने। धंधा तो भइया धंधा है। इस बार खाकी वाले शहर में टापते रहे, उधर भाई लोगों ने ग्रामीण इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। हर दिन खाकी वाले साहबों के पास धंधेबाजों की फोटू आ रही है। वे उन्हें देख भी रहे हैं। खाकी वाले साहब को समझाने वाले उनके मातहत कहते यह छोटे छोटे गिरोह का काम है। बड़े गिरोह अच्छा है, इसमें नहीं लगे हैं। सवाल उठता है कि खाकी वाले साहब लोग कुछ करेंगे या कमरे में बैठ प्याली में तूफान लाने की कोशिश करेंगे।
एसी के सामने फैन क्या करेगा
गर्मी पहले भी लगती थी, अब भी लगती है। पहले हाथ के पंखे से काम चल जाता था, अब पंखे या कूलर से भी गर्मी नहीं जाती। जिसके पास जितना पैसा है, उसे उतनी अधिक गर्मी लगती है। बहरहाल यहां फैन की बात हो रही है, जिसे एसी साथ लेकर चलने वाले बड़े-बड़े लोग भी रखते हैं या रखना चाहते हैं। जो काम वह खुद नहीं कर सकते उनके फैन या फैंस करते हैं। हाल में ही एक दौर आया है शहर में कुकुरमुत्ते की तरह फैंस क्लब बन गए है। अब एक ऐसे नेता का फैंस क्लब बन गया है, जो खुद दर-बदर है। यह तय ही नहीं हुआ वे किस दल के है। कभी इस दल के नेता के साथ तो कभी दूसरे दल के नेता के साथ।
मजेदार तो यह कि शहर में इनकी बड़ी-बड़ी फोटू भी लगी है। उसमें उनके फैंस की फोटू शामिल है। खैर बेचारे नेताजी शहर में अपनी पहचान बनाने के लिए भाड़े पर भी फैंस को रखे हुए है। जो उनकी गतिविधियों को सोशल मीडिया में डालकर उनकी दुकान को स्थानीय स्तर पर मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए है। हाल में ही नेताजी ने दिल्ली और प्रदेश वाले नेताओं की चाकरी करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाकर लाबिंग करनी शुरू की हैं। ताकि उनका कुछ भला हो जाए। वे भी प्रदेश वाले एक उच्च सदन में कुर्सी पा सकें।