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एशिया का पहला रेशम संस्थान बंद होने की कगार पर, नहीं शुरू हो सकी B.Tech की पढ़ाई

रेशम उत्पादन और कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने लिए बिहार के भागलपुर में स्‍थापित एशिया का पहला संस्‍थान बंद होने की कगार पर है। संसाधन और शिक्षकों की कमी के कारण बीटेक की पढ़ाई नहीं शुरू हो सकी।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 03 May 2018 09:40 AM (IST)Updated: Fri, 04 May 2018 07:55 PM (IST)
एशिया का पहला रेशम संस्थान बंद होने की कगार पर, नहीं शुरू हो सकी B.Tech की पढ़ाई
एशिया का पहला रेशम संस्थान बंद होने की कगार पर, नहीं शुरू हो सकी B.Tech की पढ़ाई

भागलपुर [जेएनएन]। रेशम उत्पादन और कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने तथा बुनकरों को तकनीकी शिक्षा से जोडऩे के लिए 1923 में स्थापित एशिया का पहला रेशम संस्थान बंद होने के कगार पर पहुंच गया है। संसाधन और शिक्षकों की कमी के कारण अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) ने इसे मान्यता नहीं दी। लिहाजा वर्ष 1991 से यहां चार वर्षीय बीटेक इन सिल्क एंड टेक्सटाइल की पढ़ाई के लिए नामांकन बंद है। शिक्षाविद रामजी सिंह ने बीटेक की पढ़ाई दोबारा शुरू कराने के लिए 1998 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसके बाद उद्योग विभाग ने कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया था। बावजूद इसके  बीटेक की पढ़ाई दोबारा शुरू नहीं कराई जा सकी। बाद में इंटरस्तरीय वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई शुरू कराकर लीपापोती की कोशिश की गई।

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बता दें कि उद्योग विभाग को संस्थान में मानक के अनुरूप आधारभूत संरचना विकसित करने का एआइसीटीई ने समय दिया था। पर ऐसा नहीं हो सका। डेढ़ दशक के दौरान रेशम संस्थान ने राज्य सरकार के उद्योग विभाग को कई बार डिमांड भी भेजा था। पर सरकार अब तक  अनसुना करती आ रही है। जिसके बाद तकनीकी शिक्षा पर पाबंदी लगा दी गई।

पासआउट छात्र बड़े-बड़े पदों पर हैं कार्यरत

नाथनगर स्थित सिल्क इंस्टीच्यूट एशिया का पहला संस्थान है जहां सिल्क के डिग्री कोर्स की पढ़ाई होती थी। यहां से पासआउट छात्र बीआइटी मेसरा, पटियाला जैसे इंजीनियरिंग कॉलेज में टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। जिला उद्योग महाप्रबंधक के पद से लेकर वस्त्र मंत्रालय के विभिन्न विभागों में भी यहां के छात्र नौकरी कर रहे हैं। यहां के छात्र संस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं फिर भी सरकार संसाधन विकसित करने के प्रति उदासीन बनी हुई है।

संस्थान के लिए स्वीकृत पद 76 हैं। पर वर्तमान में मात्र 24 ही कार्यरत हैं। इनमें कार्यालय स्टाफ, प्रयोगशाला और पुस्तकालय सहायक, रात्रि प्रहरी एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी शामिल हैं। यही नहीं 16 में से मात्र एक व्याख्याता ही शेष बच गए हैं। एक शिक्षक के भरोसे संस्थान में पढ़़ाई कराई जा रही है।

करोड़ों के उपकरण हुए बेकार

बीटेक की पढ़ाई बंद होने के बाद प्रयोगशाला और उपस्करों की स्थिति की खराब हो गई है। दो दशक से अधिक समय से बंद रहने के कारण करोड़ों के उपकरण खराब हो रहे हैं। 30 करोड़ से अधिक के संसाधन रख-रखाव के अभाव में खराब हो चुके हैं। फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बॉटनी और जुलॉजी के अलाव हैंडलूम और पावरलूम तथा कीड़ा पालन की प्रयोगशाला भी दम तोड़ रही है।

पड़े-पड़े खराब हो गईं आधुनिक मशीनें

दो करोड़ की लागत से केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने यार्न टेस्टिंग मशीन, कलर डिजाइन मशीन, कंप्यूटर आदि वर्ष 2005 में उपलब्ध कराया था। पर ऑपरेटर नहीं रहने की वजह से खराब हो गईं। लाइब्रेरी में ऐसी 1400 देसी-विदेशी किताबें हैं, जो बाजार में भी उपलब्ध नहीं है। चीन, कोरिया और जापान जैसे देशों की महत्वपूर्ण किताबें रख-रखाव के अभाव में  दीमक की भेंट चढ़ रहीं हैं।

छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़

बिहार राज्य माध्यमिक बोर्ड से निबंधन नहीं कराने की स्थिति में  2004 से 2009 तक पांच सत्रों के करीब 90 छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में सिल्क इंस्टीच्यूट ने कोई कसर नहीं छोड़ी। चार सत्रों के 80 से अधिक छात्रों की एक साथ परीक्षा ली गई। पांच साल तक छात्रों का परीक्षा और डिग्री के लिए भटकना पड़ा।

संस्थान का ऐतिहासिक सफर 

नाथनगर स्थित रेशम संस्थान की स्थापना में ब्रिटिश सरकार की अहम भूमिका रही थी। बुनकरों की जरूरतों को लेकर शैक्षणिक केंद्र खोला गया था ताकि यहां प्रशिक्षण लेकर वे गुणवत्तापूर्ण रेशमी कपड़ों को तैयार कर सकें। 1923 में ब्रिटिश सरकार गवर्मेंट सिल्क इस्टीच्यूट खोलकर छह-छह माह का निश्शुल्क प्रशिक्षण देती थी। जिसमें कपड़ा बुनाई, कोकुन से धागा निकालने और डिजाइन आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। यहां एक विक्रय केंद्र खोला गया था जिसमें सिल्क कपड़ों की बिक्री होती थी।

वर्ष 1977 में बिहार में जनता पार्टी की सरकार सत्ता आई। जिसके बाद तत्कालीन उद्योग मंत्री ठाकुर प्रसाद ने बिहार रेशम महाविद्यालय की स्थापना कर दी। हालांकि चार वर्षीय डिग्री कोर्स बीएससी इन सिल्क टेक्नोलॉजी का विधिवत उद्घाटन 1979 में हुआ। 1982 में एआइसीटीई की टीम ने संस्थान का निरीक्षण कर अस्थाई मान्यता दी।

डिग्री कोर्स में सिल्क के साथ टेक्सटाइल्स को भी जोड़ा गया। भागलपुर विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्स की मान्यता मिली। बाद में एआइसीटीई के अनुरूप संसाधन उपलब्ध नहीं कराने पर संस्थान को अस्थाई सूची से भी बाहर कर दिया। हालांकि संस्थान को मौका दिया गया पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया।

बीटेक की पढ़ाई की शुरुआत सरकार के स्तर से होनी है। इसके लिए आधुनिक संसाधनों की दरकार है। इसका प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है। सृजित पदों को भरने के लिए भी पत्राचार किया गया है।

- रमणजी प्रसाद, प्राचार्य, बिहार रेशम संस्थान।


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