Chhath puja 2019 : कांचहि बांस के बहंगिया..., श्रद्धालुओं ने दिया अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए लोगों के आने का सिलसिला गंगा सहित अन्य जलाशयों पर जारी है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
भागलपुर [जेएनएन]। छठ महापर्व के तीसरे दिन शनिवार को गंगा घाट पर अस्त हो रहे भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। भागलपुर गंगा तट पर स्थित है। इस कारण ज्यादातर श्रद्धालु गंगा घाट पहुंचे। माथे पर टोकरी, डाला, नारियल आदि लोग लोग आए। इस दौरान जगह—जगह सामाजिक और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं व्रतियों और श्रद्धालुओं की सेवा की। घाट पर दूध, गंगा जल आदि का स्टॉल लगाया गया था। अर्घ्य देने वालों को दूध और गंगा जल उपलब्ध कराया जा रहा है।
भागलपुर के बरारी, सीढ़ी घाट, बूढ़ानाथ मंदिर घाट, हनुमान घाट, बराीर पुल घाट, एसएम कॉलेज घाट, कुप्पाघाट घाट, खिरनी घाट, आदमपुर घाट, गोलाघाट, नाथनगर के अलावा सबौर, कहलगांव, सुल्तानगंज आदि गंगा तट पर लोग पहुंचे। इसके अलावा तालाबों, झीलों और कई स्थानों पर तालाब बनाकर लोग छठ व्रत की। वहीं, भागलपुर के बजैनी गांव में छठ काफी धूमधाम से मनाया गया। गांव के शिवालय के पास स्थित पोखर में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। कहलगांव के बटेश्वनाथ सहित अन्य जगहों पर लोग पहुंचे थे। सुल्तानगंज के गंगा घाट पर भी काफी संख्या में लोग पहुंचे थे। नवगछिया क्षेत्र में भी कोसी और गंगा तट पर लोग पहुंचकर भगवान सूर्य का पूजन किया।
खगड़िया के अगुवानी घाट पर भी लोग ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। बांका के चांदन, ओढ़नी सहित विभिन्न नदियों में छठ व्रत को लेकर श्रद्धालुअों की पहुंचे। कटिहार के आजमनगर में दंड देकर एक महिला व्रती छठ घाट पर पहुंची। भागलपुर के सुंदरपुर पोखर पीरपैंती में भी छठ व्रत को लेकर काफी भीड रही। पीरपैंती के शेरमारी गोशाला पोखर पर भी लोगों ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया।
अस्ताचलगामी सूर्य को शनिवार यानी आज शाम में अर्घ्य प्रदान किया गया। रविवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार चार दिवसीय छठ महापर्व संपन्न हो जाएगा। भगालपुर के जदगीशपुर में कई पोखरों ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया गया। कोलानारायणपुर, कजरैली, तेतरहार, कुमरथ, तमौनी, गोराचकी आदि क्षेत्रों में भी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया। गांव के पोखरों में छठ व्रत हुआ। वहीं, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, मुंगेर, बांका, खगडिया, जमुई, लखीसराय, सुपौल, अररिया, फारबिसगंज आदि जिलों में भी छठ व्रत को लेकर काफी उत्साह का माहौल है। बांका के बौंसी मंदार स्थित पापहरणी सरोबर में छठ पर्व को लेकर बेहतर व्यवस्था की गई थी। बांका के अमरपुर प्रखंड में भी काफी उत्साह के साथ लोगों ने छठ मनाया।
शुक्रवार को पर्व के दूसरे दिन व्रती महिलाओं ने सूखी आम की लकड़ी और मिट्टी के नए चूल्हे पर रसिया, खीर और पूरी का प्रसाद तैयार किया। संध्या में विधि विधान के साथ खरना पूजन कर छठी मैया को खीर पूरी का भोग लगाया। प्रसाद ग्रहण किया। अन्य लोगों को भी खरना का प्रसाद बांटा गया।
36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू
खरना पूजन के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। छठ का निस्तार रविवार को उदयीमान सूर्य को अघ्र्य देने के साथ हो जाएगा। इसके बाद व्रती घाट पर महाप्रसाद वितरण कर पारण करेंगी।
हर जगह छठ की धूम
लोक आस्था के इस महापर्व की धूम शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक देखी जा रही है। गंगा तट से लेकर तल-तलैया और छतों पर भी कृत्रिम तालाब बनाकर भक्तजन पूरी साज-सज्जा के साथ छठ पर्व की तैयारी कर कर रहे हैं। हर तरफ स्वच्छता का माहौल है। लोगों ने इस महापर्व को पूरी नेम निष्ठा के साथ मनाने के लिए हर गली मोहल्लों की सफाई कर उसकी सूरत बदल दी है। गंगा घाट सहित वहां तक पहुंचने वाली सभी मार्गों को दूधिया व झिलमिल रोशनी सजाया गया है। छठी मैया के गीतों से अंग प्रदेश का कोना-कोना गूंजायमान हो रहा है।
गंगा घाटों पर लगेगा दो दिवसीय मेला
छठ पर्व को गंगा घाटों पर दो दिवसीय मेला का भी आयोजन होगा। इस बाबत व्यापारियों ने घाट किनारे चाट पकौड़े और मिठाइयों की दुकानों को सजाना शुरू कर दिया है। मनोरंजन के लिए छोटे-बड़े झूले भी लगाए गए हैं। प्रसाधन व खिलौने की दुकानें भी लगाई गई हैं। श्रद्धालु अस्ताचल एवं उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद वहां लगे मेले का भी आनंद लेंगे।
वैदिक नहीं, लौकिक महत्व का है महापर्व छठ
छठ का पर्व अब पूरे देश में उल्लास, उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाने लगा है। पंडित राजेश मिश्र ने बताया कि छठ के दौरान धार्मिक गीतों का वैदिक महत्व नहीं है। छठ का त्योहार लौकिक महत्व का माना जाता है।
पंचमी को भी दिनभर महिलाएं व्रत रहकर शाम को गुड़ का खीर खाती हैं और अगले दिन बिना जल ग्रहण किए शाम को सूर्य को अघ्र्य देती हैं। सप्तमी को सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य देने के बाद ही कुछ ग्रहण करती हैं। उन्होंने बताया कि पति की दीर्घायु के अलावा पुत्र प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। इस दौरान शुद्धता का विशेष महत्व होता है।
पुराणों के आईने में षष्ठी व्रत
ब्रह्म्वैवर्त पुराण में षष्ठी देवी के महात्म्य, पूजन विधि एवं पृथ्वी पर इनके पूजा प्रसाद इत्यादि के विषय में चर्चा की गई है किंतु सूर्य के साथ षष्ठी देवी के पूजन का विधान तथा 'सूर्यषष्ठी' नाम के व्रत की चर्चा नहीं की गई है। इस विषय में भविष्य पुराण में प्रतिमास के तिथि व्रतों के साथ षष्ठीव्रत का उल्लेख स्कंद षष्ठी के नाम से किया गया है। परंतु इस व्रत के विधान और सूर्यषष्ठी व्रत के विधान में पर्याप्त अंतर है।
मैथिल ग्रंथ वर्षकृत्यविधि में भी सूर्यषष्ठी की है चर्चा
'प्रतिहार षष्ठी' के नाम से बिहार में प्रसिद्ध सूर्यषष्ठी की चर्चा मैथिल ग्रंथ 'वर्षकृत्यविधि' में की गई है। इस ग्रंथ में व्रत पूजा की पूरी विधि, कथा तथा फलश्रुति के साथ तिथियों के क्षय एवं वृद्धि की दशा में कौन सी तिथि ग्राह्य है, इस विषय पर भी धर्मशास्त्रीय दृष्टि से सांगोपांग चर्चा हुई है और अनेक प्रामाणिक स्मृति ग्रंथों से प्रमाण भी दिए गए हैं। आजकल इस व्रत के अवसर पर लोक में जिन परंपरागत नियमों का अनुपालन किया जाता है, उनमें इसी ग्रंथ का सर्वथा अनुसरण दृष्टिगत होता है। कथा के अंत में 'इति श्री स्कंद पुराणोक्त प्रतिहार षष्ठी व्रत कथा समाप्ता' लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि 'स्कंद पुराण' के किसी संस्करण में इस व्रत का उल्लेख अवश्य हुआ होगा। अत: इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता भी परिलक्षित होती है। प्रतिहार का अर्थ है- जादू या चमत्कार अर्थात चमत्कारिक रूप से अभीष्ट को प्रदान करने वाला व्रत।
पौराणिक कथाओं की तरह वर्णित है व्रत व कथा
इस ग्रंथ में षष्ठी व्रत की कथा अन्य पौराणिक कथाओं की तरह वर्णित है। यहां भी नैमिषारण्य में शौनकादि मुनियों के पूछने पर श्रीसूत लोक कल्याणार्थ सूर्यषष्ठी व्रत के महात्म्य, विधि तथा कथा का उपदेश करते हैं।
कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत...
पूजा के दौरान छठी मइया (संतान षष्ठी मां) को शायद ही ऐसा कोई फल हो, जिसका भोग न लगाया जाता हो। वहीं दो दिनों तक हर गली-मुहल्ला 'कांचहि बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए...' से गुंजायमान रहता है।