अंगिका के उत्थान के लिए सभी हों एकजुट : कुलपति
शहर के दल्लू बाबू धर्मशाला में दो दिवसीय अंगिका महोत्सव शुरू हुआ।
जेएनएन , भागलपुर : लहेरी टोला स्थित दल्लू बाबू धर्मशाला में दो दिवसीय अंगिका महोत्सव शुक्रवार को शुरू हुआ। महोत्सव के पूर्व अंगिका प्रेमी और साहित्यकारों ने बैंडबाजा और नगाड़े के साथ पथ संचलन किया। डिक्सन मोड़ निकले पथ संचलन शामिल लोगों ने जन जागरूकता अभियान चलाते हुए अंगिका नारों के साथ पटल बाबू रोड, भगत सिंह चौक, आरपी रोड, खलीफाबाग चौक और मुख्य बाजार, स्टेशन चौक होते हुए महोत्सव स्थल पहुंचे। जत्थे का नेतृत्व गौतम सुमन कर रहे थे। इसके बाद अंगिका महोत्सव का उद्घाटन तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लीला चंद साहा, विक्रमशिला ¨हदी पीठ के कुलपति डॉ. तेज नारायण कुशवाहा, दूरदर्शन केन्द्र के पूर्व निदेशक एसपी सिंह, अंगिका डॉट कॉम के निदेशक कुंदन अमिताभ, वरिष्ट कलमकार राजेन्द्र प्रसाद सिंह, कविता कोष के उप निदेशक राहुल सिवाय, वंचित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. रतन मंडल एवं महोत्सव के संयोजक दयानंद जायसवाल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर कुलपति प्रो. साहा ने अंगिका के विकास और उत्थान के लिए अंगिका भाषियों को एकजुट और सजग होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में किसी भी लोकभाषा के साथ अन्याय उचित नहीं है। विश्वविद्यालय में शैक्षणिक स्तर पर अंगिका के विकास के लिए कारगर प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि अंगिका प्रेमियों को चाहिए कि वह एकजुट होकर ऐसे कामों में राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करें। लोकभाषा अंगिका को पेट से जुड़ा हुआ सवाल बताते हुए कहा कि यदि यह संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल होती है तो न केवल अंगप्रदेश के शिक्षित युवक ऊंची नौकरियों को प्राप्त करने में सफल होंगे, बल्कि अंगिका साहित्यकारों को साहित्य अकादमी के पुरस्कार भी प्राप्त हो सकेंगे, जो उनकी उन्नति में सहायक होंगे।
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स्मारिका का हुआ लोकार्पण
विवि के डीएसडब्ल्यू डॉ. योगेंद्र ने बताया कि अब तक हुए अंगिका साहित्य सृजन एवं आन्दोलन को एकरूपता देकर इस महोत्सव में एक स्मारिका का भी लोकार्पण किया जाएगा। उन्होंने अंगिका साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि अंगिका का लेखन तो सिद्ध कवियों द्वारा ही हो गया था और यह महाजनपद की भाषा थी, लेकिन न केवल इसकी भाषा को बल्कि इसके क्षेत्र को हड़पने की निरंतर कोशिश होती रही और यह महोत्सव उसी षड्यंत्र के विरुद्ध एक सजगता आन्दोलन भी है। अश्रि्वनी प्रजावंशी ने बताया कि अंगिका भाषा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। बावजूद इन्हें इनके समुचित सम्मान व अधिकार से वंचित रखना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अंगिका को संवैधानिक दर्जा मिलते ही रोजगार के सुअवसर बढ़ेंगे और हम अंगिका भाषियों के बच्चे भी बड़े अधिकारी बनेंगे।
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सम्मान और अधिकार से वंचित है भाषा
कुंदन अमिताभ ने कहा कि देश-विदेश में धूम मचाने वाली अंगिका आज अपने ही सम्मान व अधिकार से वंचित है यह समझ से परे है, जबकि यह अंगिका भाषियों के पेट से जुड़ा हुआ सीधा सवाल है। एसपी सिंह ने कहा कि किसी भी भाषा साहित्य सभ्यता के विकास के उत्थान के लिए सबसे पहले जरूरी है एकजुट होना। हिंदी विद्यापीठ के कुलपति डॉ. तेज नारायण कुशवाहा में कहा कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है अंगिका। इसकी उपेक्षा अब कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। राहुल शिवाय ने कहा कि हम जितना अपनी भाषा का प्रयोग बोलचाल में करते हैं, इतना साहित्य सृजन में करें और अपनी लिखी हुई साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने का काम करें, ताकि भाषा साहित्य के लिए भी जन आदोलन का रूप ले सके।
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साहित्यकार और भाषा प्रेमियों को करें जागरूक
महोत्सव के संयोजक दयानंद जायसवाल ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि महोत्सव का उद्देश्य अंगिका क्षेत्र के समस्त साहित्यकार और भाषा प्रेमियों को उनके हक के बारे में जागरूक करना है और उन्हें गोलबंद कर अंगिका भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराना है। प्रो. रतन मंडल ने कहा कि सरकार की उदासीन रवैया और सौतेले पन व्यवहार की वजह से आज पूरा क्षेत्र वंचित है। इसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
मंच संचालन छाया पाडेय, अश्वनी प्रजावंसी, गौतम सुमन और प्रो. रामचन्द्र घोष ने किया। तत्पश्चात दर्जनों काव्य रत्नों ने देर रात तक काव्य रस में लोगों को भिंगाया। इस मौके पर डॉ. अमरेन्द्र, शिव कुमार शिव, रंजन, सुधीर प्रोग्रामर, सुरेश सूर्य आदि मौजूद थे।