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अक्षय नवमी कल, देवोत्थान एकदशी आठ नवंबर को, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि Bhagalpur News

कार्तिक मास के एकादशी को देवोत्थान का त्योहार मनाया जाएगा। जबकि कार्तिक मास शुक्ल पक्ष आंवला नवमी का व्रत है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 04 Nov 2019 01:02 PM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 01:02 PM (IST)
अक्षय नवमी कल, देवोत्थान एकदशी आठ नवंबर को, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि Bhagalpur News
अक्षय नवमी कल, देवोत्थान एकदशी आठ नवंबर को, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि Bhagalpur News

भागलपुर [जेएनएन]। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष मंगलवार को आंवला नवमी का व्रत है। आज भक्तजन आंवला पेड़ की पूजा करेंगे। वहां खाना बनाकर अन्न जल भी ग्रहण करेंगे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नौवी के दिन आवंले की वृक्ष की पूजा वर्षो से चली आ रही है। कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल नौवीं से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर विराजमान रहते हैं। इस दिन पेड़ के साथ विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार आज की तिथि में अन्न वस्त्र आदि के दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

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इस तरह करें पूजा

आज के दिन भक्तजनों को गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर हाथ में जल, चावल व पुष्प आंवले के वृक्ष की पूजा करना चाहिए। वृक्ष की जड़ में दूध की धारा अर्पित कर पितरों को नमन करनी चाहिए। इसके अलाव कपूर व घी आदि से वृक्ष की आरती भी करनी चाहिए। ऐसा करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

गुरुवार को योगनिंद्र से जगेंगे भगवान विष्णु

कार्तिक मास के एकादशी (आठ नवंबर 2019) को देवोत्थान का त्योहार मनाया जाएगा। आज के दिन भगवान विष्णु योगनिंद्रा से जगेंगे। बता दें कि भगवान आषाढ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए भाग योगनिंद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक शुल्क पक्ष एकादशी को जगते हैं। जब भगवान जगते हैं तभी मांगलिक कार्य प्रारंभ होता है। भगवान के योगनिंद्रा के दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होता है।

उपवास और पूजन से मिलता है मोक्ष का मार्ग

पंडित गौरी शंकर त्रिवेदी ने कहा कि देवोत्थान एकादशी में उपवास को विशेष महत्व है। इस पर्व को करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। देवोत्थान एकादशी में आंगन में चौक बनाकर उस पर गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है। बीच में भगवान विष्णु को स्थापित कर उन्हें गन्ना, सिंघाडा और फल आदि का भोग लगाया जाता है। दीपक जला कर उनकी पूजा की जाती है। सुबह भगवान के चरणों को स्पर्श कर उन्हें जगाया जाता है। इसके बाद से सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।


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