कोसी : आश्वासनों और वादों का दौर शुरू, बनने के बाद भी यहां पेपर मिल ने नहीं छोड़ा धुंआ
सहरसा में पांच साल पहले भी बंगाली बाजार रेल ओवब्रिज निर्माण की बात होती थी। आज भी लोगों को इसका इंतजार है। यही स्थिति बैजनाथपुर पेपर मिल की है। निर्माण के बाद कभी इस मिल ने धुंआ नहीं छोड़ा।
सहरसा, जेएनएन। एक बार फिर चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है। अभी तक किसी भी पार्टी से अपने उम्मीदवार फाइनल नहीं किए हैं लेकिन, पार्टी कार्यकर्ता जयघोष में लगे हुए हैं। आश्वासनों और वादों का दौर शुरू हो गया है। पिछले पांच साल में विकास को रफ्तार नहीं मिल सकी। जो मुद्दे पांच साल पहले थे, आज भी उन्हीं मुद्दों के आसपास चुनाव अटके हुए हैं।
पांच साल पहले भी बंगाली बाजार रेल ओवब्रिज निर्माण की बात होती थी। आज भी लोगों को इसका इंतजार है। यही स्थिति बैजनाथपुर पेपर मिल की है। निर्माण के बाद कभी इस मिल ने धुंआ नहीं छोड़ा।
चार बार हुआ ओवरब्रिज का शिलान्यास : ओवरब्रिज निर्माण को लेकर बंगाली बाजार रेलवे ढाला पर अब तक चार बार पुल का शिलान्यास हो चुका है। 1997 में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री दिग्विजय ङ्क्षसह ने सहरसा में इसका शिलान्यास किया। 1998 में तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने इसका शिलान्यास किया। इसके बाद 12 जून, 2005 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने सहरसा रेलवे स्टेशन पर ही अमान परिवर्तन कार्य का शुभारंभ करते हुए इस योजना का शिलान्यास किया। इसके बाद चौथी बार 22 फरवरी, 2014 में तत्कालीन रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी ने आरओबी का शिलान्यास किया। 2014 में मिट्टी जांच के लिए दस लाख रुपये भी आवंटित किए गए। राइटर्स कंपनी ने मिट्टी जांच शुरू की और बड़ी-बड़ी मशीनें लगाईं। कुछ ही दिनों में सब मशीनें हटा ली गईं। तब से यही स्थिति आज तक बनी हुई है। हाल-फिलहाल पुल निर्माण निगम को इसके डीपीआर के निर्माण की जिम्मेदारी मिली है। मामला फिर से अटका हुआ है।
नहीं चालू हो सकी बैजनाथपुर पेपर मिल : बैजनाथपुर पेपर मिल ऐसा मुद्दा है जिसे चालू करने का वादा हर चुनाव में किया जाता है। स्थापना काल के बाद इससे धुंआ नहीं निकल सका। इस बार भी यह चुनाव में मुद्दा बनेगा। लोगों की मानें को बैजनाथपुर पेपर मिल की स्थापना की कवायद 1975 में शुरू हुई थी। 48 एकड़ भूमि अधिग्रहण कर बिहार सरकार ने निजी और सरकारी सहयोग से बिहार पेपर मिल लिमिटेड कंपनी की देखरेख में मिल स्थापित करने का काम शुरू किया। 1978 में निजी उद्यमियों से करार खत्म होने के कारण काम रुक गया था। सहरसा विधानसभा में लंबे समय से राजनेताओं का एक यही बड़ा मुद्दा रहा है।
मत्स्यगंधा की रौनक खोई : पूर्व जिलाधिकारी तेजनारायण लाल दास के प्रयास से नौका विहार के लिए विख्यात हुई मत्स्यगंधा झील उनके सेवानिवृत्त होने के कुछ वर्र्षों बाद ही अपनी रौनक खोने लगी थी। बाद के दिनों में यह झाडिय़ों में तब्दील हो गई। 2011 में सेवा यात्रा में आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके जीर्णोद्धार का आग्रह किया। सरकार ने इसके अनुरूप जल जीवन हरियाली योजना से इसका कार्य प्रारंभ किया। पिछले दो वर्ष से पूरी तरह सूख चुकी इस झील की उड़ाही के क्रम में वर्तमान स्थिति से दो मीटर गहराई और बढ़ाई जाएगी। मिट्टी काटने के दौरान संवेदक के कार्य पर लगातार लोग अंगुली लोग उठाते रहे। फिलहाल इसके जीर्णोद्धार का कार्य बंद है।
बदहाल है स्वास्थ्य सेवा : सहरसा को आम बोलचाल में लोग कोसी की राजधानी कहते हैं। सहरसा के सदर अस्पताल को कोसी का पीएमसीएच कहा जाता है। समय से ओपीडी का संचालन यहां शुरू नहीं हो पाता है। ओपीडी में भी कई डॉक्टर ड्यूटी रहने के बाद भी नदारद रहते हैं। इमरजेंसी वार्ड 24 घंटे चलता है, लेकिन यहां से अधिकांश मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। गंभीर मरीजों के लिए आइसीयू वार्ड बनाया गया। छह बेड के इस वार्ड का तामझाम के साथ करीब तीन वर्ष पहले शुभारंभ किया गया। कुछ दिनों के बाद ही इसमें ताला लग गया। कई बार मामला उठाए जाने के बाद दो कर्मियों की तैनाती इसमें की गई। एक डॉक्टर को भी इसकी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन यहां पिछले दो वर्षों से एक भी भर्ती मरीज को नहीं देखा गया है।
जर्जर सड़क व जलजमाव : हर चुनाव में जलजमाव व जर्जर सड़क मुद्दा बनता है। 2017 में अतिवृष्टि के दौरान जब पूरा शहर डूब गया, तब ड्रेनेज सिस्टम के लिए लगभग पांच सौ करोड़ की लागत से दो पंप हाउस व बारह किलोमीटर नाला निर्माण का फैसला लिया गया। इसके बाद 51 करोड़ की लागत से निर्माण कार्य शुरू भी हुआ, लेकिन लंबे समय से पैसे के अभाव में यह कार्य बंद है। हर बरसात में लोग घुटने भर पानी में डूबने को मजबूर होते हैं। फिलहाल इन सड़कों की स्थिति जर्जर हो चुकी है। हाल-फिलहाल आठ सड़कों का निर्माण कार्य पथ निर्माण विभाग द्वारा शुरू कराया गया है, लेकिन इनकी गुणवत्ता को लेकर भी शिकायत की जा रही है।