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Republic Day Padma Award: गरीब व बेसहारा लोगों का सहारा बना डॉक्टर, सरकार ने दिया पद्मश्री सम्मान

Republic Day Padma Award भागलपुर के पीरपैंती निवासी डॉ. सिंह ने समाज और चिकित्सीय सेवा में बेहतर काम किया है। इसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। गांव में पोलियो के दो मरीज मिलने पर अपने खर्च पर विदेश से दवा मंगवा कर इलाज करवाया था।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Tue, 26 Jan 2021 08:48 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jan 2021 07:25 PM (IST)
Republic Day Padma Award: गरीब व बेसहारा लोगों का सहारा बना डॉक्टर, सरकार ने दिया पद्मश्री सम्मान
भागलपुर के पीरपैैंती निवासी डॉ. दिलीप कुमार सिंह!

जागरण संवाददाता, भागलपुर। Republic Day Padma Award भागलपुर के पीरपैैंती निवासी डॉ. दिलीप कुमार सिंह (Dr. Dilip Kumar Singh) को समाज एवं चिकित्सीय सेवा में बेहतर कार्य के लिए पद्मश्री (Padma Shri) से नवाजा गया है। 93 वर्षीय डॉ. दिलीप ने हमेशा गरीबों और बेसहारा लोगों की जिंदगी रोशन करने का ही काम किया। गांव में दो पोलियो के मरीज मिलने के बाद उन्होंने अपने खर्च पर विदेश से ग्यारह सौ फाइल पोलियो की दवा मंगाई। फिर गांव-गांव में घूमकर बच्चों को दवा पिलाई। हालांकि, उनके इस जज्बे को देखकर आइएमए बुक ऑफ रिकार्ड और लिमका बुक ऑफ रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ।

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पीरपैैंती का इलाका झारखंड की सीमा से जुड़ा है। ऐसे में उन्होंने आदिवासियों को मुख्य धारा से जोडऩे का काम किया। पोलियो और कालाजार जैसी बीमारियों के खिलाफ उन्होंने मुहिम छेड़ दी थी। हालांकि वह पोलियो की वैक्सीन दुबारा इसलिए नहीं मंगा पाएं, क्योंकि वैक्सीन को रखने के लिए कोल्ड चेन बनाने में दिक्कत होती थी। गांव में बिजली नहीं रहने के कारण बड़ी समस्या खड़ी हो रही थी, लेकिन गरीब लोगों का सस्ता इलाज और जिनके पास रुपये नहीं थे उनका मुफ्त में इलाज करने का काम शुरू किया।

देश की सेवा के लिए अमेरिका की छोड़ दी नौकरी

डॉ. दिलीप सिंह (Dr. Dilip Kumar Singh) ने 1952 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। पढ़ाई खत्म करने के बाद वह अमेरिका भी गए। वहां नौकरी भी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा। देश की सेवा करने के जज्बे ने उन्हें वहां से लौटने के लिए बाध्य कर दिया। इसके बाद वह सीधे अपने गांव पीरपैैंती लौटे और गरीबों का इलाज करना शुरू कर दिया। हालांकि, जिस दौर में उन्होंने इलाज करना शुरू किया था, उस समय छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई चरम पर थी। दौर वो था जब न पीरपैैंती में सड़क थी, न बिजली थी और न ही टेलीफोन की सेवा। जिस किसी गांव से मरीज की सूचना आती थी तो वे उस गांव में जाकर इलाज करते थे। यदि रात हो गई तो ढिबरी जलाकर इलाज करते थे।

आजादी की लड़ाई में भी दिया था योगदान

बात यहीं खत्म नहीं होती। डॉ. दिलीप सिंह (Dr. Dilip Kumar Singh) जब हाईस्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, उस समय आजादी के दीवानों के साथ हो लिए थे। देश की आजादी का जज्बा हिलोर मारने लगा तब उन्होंने अपने दोस्तों के साथ अपने ही स्कूल को बम से उड़ाने की योजना बना ली। हालांकि, योजना लीक हो गई और अंग्रेज कलेक्टर ने उन्हें काफी समझाया-बुुझाया। उसके बाद वह माने।

कम उम्र में माता और पिता का उठ गया था साया

इंटर की पढ़ाई के दौरान उनकी उम्र करीब 19 साल की थी। उस समय मां का साथ छूट गया। वहीं, जब 27 साल के हुए तो पिता का भी साया उठ गया। परिवार में बड़ा होने के नाते परिवार की सारी जिम्मेदारियां उन्हीं के कंधों पर आ गईं, लेकिन उन्होंने अपने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उठाने के साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। खुद को मुकाम पर पहुंचाया और भाई और बहनों को को भी पढ़ा-लिखाकर अच्छा इंसान बनाया। उधर, लोगों का उपचार भी उन्होंने जारी रखा। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के नाम पर ट्रस्ट बनाया। उसके तहत गांव-गांव जाकर मेडिकल कैंप लगाते रहे, ताकि जो उन तक न पहुंच पा रहे थे, वे उन तक पहुंच जाएं। उन्होंने इलाके में शराब की लत छुड़ाने के लिए दवा तक बनाई थी। इसलिए जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी की घोषणा की तब उन्हें पत्र भेजकर धन्यवाद भी दिया था।

मिल चुके हैं ये पुरस्कार

- लाइफ मेंबर आफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन एंड लेप्रोसी फाउडेशन, वर्धा

- डेलीगेट ऑफ वल्र्ड मेडिकल एसेम्बली, म्यूनिक, जर्मनी

- पद्मश्री कमलाबाई हास्पेट अवार्ड

- सिस्टर कौरोल हस्स अवार्ड

- पंचशील शिरोमणि अवार्ड  


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