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शीत भंडार के आस में गुजर गए किसानों के 23 साल अब तो शिलापट भी देने लगा जवाब

पांच जून 1997 को तत्कालीन कृषि मंत्री रामजीवन ङ्क्षसह ने कई मंत्रियों एवं विधायकों की मौजूदगी में भूमिपूजन व शिलान्यास कर किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने का संदेश दिया था।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 05:35 PM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 05:35 PM (IST)
शीत भंडार के आस में गुजर गए किसानों के 23 साल अब तो शिलापट भी देने लगा जवाब
शीत भंडार के आस में गुजर गए किसानों के 23 साल अब तो शिलापट भी देने लगा जवाब

सुपौल, जेएनएन। त्रिवेणीगंज अनुमंडल को आलू का गढ़ माना जाता है। यहां किसान आलू तो उपजाते हैं लेकिन शीत भंडार के लिए मुंहताज हैं। शीत भंडार नहीं रहने के कारण किसानों को खेत में ही आलू बेच देना पड़ता है जिससे उन्हें उचित कीमत नहीं मिलता। किसानों की परेशानी देख 1995 में शीत भंडार की आधारशिला तो रखी गई अब यहां लगाया गया बोर्ड भी टूटने लगा है लेकिन शीत भंडार का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

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कृषि मंत्री ने रखी थी आधारशिला

शीत भंडार निर्माण के लिए प्रखंड कार्यालय के समीप कृषि फार्म की चार एकड़ जमीन अधिग्रहित कर भूमिपूजन व शिलान्यास किया गया था। पांच जून 1997 को तत्कालीन कृषि मंत्री रामजीवन ङ्क्षसह ने कई मंत्रियों एवं विधायकों की मौजूदगी में भूमिपूजन व शिलान्यास कर किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने का संदेश दिया था। मौके पर पूर्व मंत्री अनूप लाल मंडल, केंद्रीय भंडारण नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मंडल, वाणिज्य प्रबंधक अजय खेड़ा, क्षेत्रीय प्रबंधक अरङ्क्षवद चौधरी एवं अधिशासी अभियंता आनंद मोहन शर्मा भी उपस्थित थे। तब आलू उत्पादक किसानों को लगा था कि अब आलू का उचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा। किसानों का मानना था कि बिचौलियों से निजात मिलेगी और आर्थिक संपन्नता बढ़ेगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। शिलान्यास से आगे काम नहीं बढ़ पाया।

साइकिल, मोटर साइकिल से बाजार पहुंचाते हैं सब्जियां

प्रखंड मुख्यालय के मचहा, कुशहा, मयुरवा, योगियाचाही, तितुवाहा आदि ऐसे गांव है जहां गोभी, आलू आदि की खेती की जाती है। यहां किसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन्हें सरकार से तो शिकायत है ही साथ ही उम्मीद भी। इस दिक्कत के बावजूद ये कर्मठ किसान अपनी राह खुद गढ़ लेते हैं। इन गांवों के किसान साइकिल, मोटरसाइकल व अन्य वाहनों पर सब्जियों को लाद त्रिवेणीगंज की मंडियों में लाते है। यह काम सूरज के निकलने के पूर्व पूरा हो जाता है। स्थानीय हटिया व नजदीक के बाजार में किसान औने-पौने दाम में सब्जी और आलू बेचने को विवश होते हैं। आलू के तत्काल नहीं बिकने पर तो उतनी परेशानी नहीं होती लेकिन सब्जियां बच जाने के बाद सडऩे के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।


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