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Tarapur Assembly by-election analysis: इस बार आसान नहीं यह कहना कि किसकी हो रही जीत, नेताओं का झुंड से मतदाता कन्फ्यूज

Tarapur assembly by-election analysis एक साथ इतने बड़े नेताओं के पहुंचने पर इठला रही है जनता। राजनीतिक रूप से समृद्ध है तारापुर का राजनीतिक इतिहास। कुछ कहा नहीं जा सकता है कि किसकी जीत होगी। अब तक यहां का इतिहास भी इसी ओर इशारा करती है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sun, 24 Oct 2021 12:18 PM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 12:18 PM (IST)
Tarapur Assembly by-election analysis: इस बार आसान नहीं यह कहना कि किसकी हो रही जीत, नेताओं का झुंड से मतदाता कन्फ्यूज
Tarapur Assembly by-election analysis: जदयू, राजद लोजपा (रामविलास), प्‍लूलर्स पार्टी और कांग्रेस समेत सात प्रत्‍याशी यहां से लड़ रहे चुनाव।

भागलपुर [संजय सिंह]। Tarapur Assembly by-election analysis: तारापुर का राजनीतिक इतिहास काफी समृद्ध रहा है। यह वही स्थल है, जहां 13 ज्ञात और 21 अज्ञात लोग स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हो गए थे। 1942 में 15 अगस्त से 28 अगस्त तक यहां समानांतर सरकार चली थी। चाहे किसी भी दल के नेता हों, शहीद स्मारक पर फूल चढ़ाने जरूर जाते हैं। यहीं से उनकी चुनावी यात्रा का शुभारंभ होता है। इस क्षेत्र के चार सात पूर्व जनप्रतिनिधियों को मंत्रीपद पर आसीन होने का भी मौका मिला है। यद्यपि, इनमें से कई ऐसे हैं, जिनके आवास परिसीमन के बाद नए तारापुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। इनमें से तीन की मौत हो चुकी है। मेवालाल चौधरी की मौत के बाद यह सीट खाली हुई और यहां उपचुनाव हो रहे हैं।

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यहां मुख्य रूप से जदयू, राजद और कांग्रेस के बीच चुनावी बिसात बिछी है। यद्यपि, इनमें से दो दलों के बीच सीधी टक्कर के आसार हैं। मुकाबले को रोमांचक बनाने के लिए लोजपा (रामविलास) भी इसमें कूद चुकी है। कोई भी दल ऐसा नहीं है, जिसने इस चुनावी समर में अपने किसी भी योद्धा को खाली छोड़ा हो। राष्ट्रीय अध्यक्ष, मंत्री, विधायक, पूर्व मंत्री और विधान पार्षद तक की रोज की ड्यूटी लगी है। हर पंचायत में जनसंपर्क के लिए ऐसे नेताओं का चयन किया गया है, जिनसे जातिगत समीकरण को साधने में आसानी हो।

मजेदार बात तो यह है कि कुशवाहा बहुल इस क्षेत्र में जदयू प्रत्याशी राजीव सिंह को छोड़कर कोई दूसरा कुशवाहा प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है। शकुनी चौधरी इस इलाके के सबसे पुराने और कद्दावर नेता हैं। चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के बावजूद उनका दबदबा अब भी बरकरार है। हाल ही में उन्होंने अपने पुत्र रोहित चौधरी को जदयू में शामिल करवाया। इनके एक पुत्र सम्राट चौधरी बिहार सरकार के मंत्री भी हैं। उधर, राजद प्रत्याशी का भविष्य बहुत कुछ राजद के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री जयप्रकाश यादव पर निर्भर करता है। पिछले चुनाव में जयप्रकाश की पुत्री दिव्या प्रकाश यहां से चुनाव मैदान में थीं।

पिछले चुनाव में जदयू के मेवालाल चौधरी को 64468, राजद की दिव्या प्रकाश को 57,243, लोजपा की मीना देवी को 11,264 और निर्दलीय प्रत्याशी रहे राजेश मिश्रा को 10466 वोट प्राप्त हुए थे। इस बार राजेश कुमार मिश्रा कांग्रेस के बैनर तले खड़े हैं। पंचायत चुनाव में भी कुशवाहा समाज का ही दबदबा कायम रहा है। इससे इस समाज के लोग अधिक उत्साहित हैं। खास बात यह है कि मेवालाल चौधरी ने दो और उनकी पत्नी ने एक बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। इस चुनाव में मेवालाल के परिवार से कोई भी खड़ा नहीं हुआ है। अब इस बार तमाम बड़े नेताओं के दौरे के बीच एक सवाल तो यह जनता के बीच है कि चुनाव परिणाम किसी भी दल के हाथ में जाए, कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दाव पर है।


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