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Sadanand Singh passed away: बहुत खास था सदानंद होने का मतलब, यहां पढ़ें दिग्गज कांग्रेसी नेता की पूरी कहानी

Sadanand Singh passed away ब‍िहार के कद्दावर कांग्रेस नेता सदानंद स‍िंंह का 8 स‍ितंबर को निधन हो गया है। वे 12 बार कहलगांव व‍िधानसभा से चुनाव मैदान में उतरे नौ बार मिली जीत। 1969 में पहली बार बने विधायक। 1985 में कांग्रेस ने टिकट नहीं द‍िया तो निर्दलीय चुनाव जीते।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Thu, 09 Sep 2021 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 09 Sep 2021 09:00 AM (IST)
Sadanand Singh passed away: बहुत खास था सदानंद होने का मतलब, यहां पढ़ें दिग्गज कांग्रेसी नेता की पूरी कहानी
सदानंद स‍िंंह का न‍िधन हो गया है।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। Sadanand Singh passed away: दिग्गज कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह अब नहीं रहे। बुधवार आठ स‍ितंबर 2021 को पटना के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। सदानंद के निधन की खबर सुनते ही जिले में शोक की लहर दौड़ गई। दलीय दीवार भी टूट गई। सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं ने भी उनके निधान पर शोक संवेदना व्यक्त की। कहलगांव अनुमंडल के धुआवै गांव निवासी सदानंद ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की। जीवन के अंतिम क्षण तक वे कांग्रेसी ही रहे।

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स्थापना काल से ही कहलगांव विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा। 1957 और 1962 में कांग्रेस के सैयद मकबूल अहमद विधायक चुने गए। 1967 में काम्युनिस्ट पार्टी के नागेश्वर स‍िंंह ने कांग्रेस उम्मीदवार को हरा दिया। राजनीतिक पंडित यह भविष्यवाणी करने लगे थे कि अब कांग्रेस के गढ़ पर लाल झंडे का कब्जा हो गया। इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व ने युवा सदानंद सिंह कहलगांव का किला बचाने की जिम्मेदारी सौंपी। सदानंद पार्टी नेतृत्व के भरोसे पर पूरी तरह से खरे उतरे। दिग्गज कम्युनिस्ट नेता नागेश्वर सिंह 1969 के चुनाव में हरा कर सदानंद सिंह पहली बार विधायक बने। इसके बाद सदानंद सिंह कहलगांव को कांग्रेस का अभेद्य गढ़ बना दिया।

1985 में कांग्रेस नेतृत्व ने सदानंद सिंह का टिकट काट दिया, तो वे निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और जीते भी। इसके बाद कहलगांव सदानंद सिंह की सीट कही जाने लगी। समर्थकों के बीच सदानंद दा के नाम से मशहूर और खांटी कांग्रेसी नेता की आम लोगों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय पूरे प्रदेश में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी, उसी समय भी वे चुनाव जीतने में सफल रहे। 1990, 1995 और 2005 के विधानसभा चुनाव में उन्हेंं हार भी मिली। 2010 और 2015 में फिर से वे चुनाव जीते। लगभग 40 वर्षों तक उनके साथ रहे जयप्रकाश स‍िंंह ने कहा कि चुनाव में हार मिलने के बाद भी वे कभी क्षेत्र से दूर नहीं रहते थे। लगातार जन समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत रहते थे। सदानंद सिंंह का मतलब  ही खास था। पुजारी बाल कृष्ण पांडेय ने कहा कि वे हर किसी से इतने अपनेपन से मिलते थे कि लोग उनके मुरीद हो जाते थे। उनके मित्र आत्माराम खेतान ने कहा कि सदानंद सिंंह वि‍धायक, मंत्री, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, विधायक दल के नेता, विधानसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पदों पर रहे। इसके बावजूद वे हमेशा सबों के लिए सुलभ रहे। सबों से आत्मीयता के साथ बात करते। लोगों का कुशल-क्षेम पूछते। लोगों की समस्या सुनने के बाद उसे दूर करने की बैचेनी तब तक खत्म नहीं होती थी, जब तक समस्या का समाधान नहीं हो जाए।


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