Father's Day : ये हैं आज के श्रवण कुमार... पिता बीमार पड़े तो छोड़ दी सरकारी नौकरी, दिल्ली से लौट आए घर, हर पल रहते हैं पिता के साथ
Fathers Day आज फादर्स डे है। इस दिन को पिता के सम्मान के लिए मनाया जाता है। आज भी कई ऐसे बच्चे हैं जो अपने पिता की सेवा के लिए हर कुछ छोड़ सकते हैं। जमुई के अरविंद ने पिता की सेवा के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी।
जमुई [आशीष सिंह चिंटू]। Father's Day : तुमने मेरी अंगुली थाम चलना सीखाया। मेरे कदम लड़खड़ाए तो संभाला। दुनियादारी समझाई। आदर्श व सिद्धांत की मुझमें नींव डाली। हालात से संघर्ष करना, हर परिस्थिति में तटस्थ रहना सीखाया। आज मैं तुम्हारा ही प्रतिबिंब हूं। लोग कहते हैं कि बिल्कुल आपके जैसा हूं। सच कहूं अगर तुमने कुम्हार बन मुझे नहीं बनाया होता, जीवन की सीख नहीं दी होती तो ना हम होते और ना होती मेरी कोई मुराद। मेरे व्यक्तित्व, मेरे आचरण, मेरे विचार और कार्यकलाप में तुम समाए हो। हर सांस में समाए हो। हर दर्द में मेरी सिसक से पहले तुम्हारी आह सुनाई देती है। यूं लगता है जैसे साथ साथ खड़े हो। मेरा कवच बनकर, मेरा रक्षक बनकर। राह दिखाने, गिरती हिम्मत को हौसला देने।
याद है मेरे बीमार होने पर तुम्हारा रात भर मेरे सिरहाने बैठना, दवाई को छोटे-छोटे टुकड़े कर उम्र के हिसाब से डोज बनाकर खिलाना। बीमारी से लड़ने की हिम्मत, कष्ट में भी संयमित रहना सीखाना। बहुत धन नहीं था पर प्यार-दुलार से मैं किसी राजा से कम भी नहीं था। तुमने मुझे सीखाया दूसरों की आदर करना, सही गलत में फर्क करना। खुद कष्ट सहकर भी दूसरों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना। आज भी जब बहुत बैचेनी महसूस करता हूं, आसमां की ओर मुंह कर तुम्हें पुकार, बातें कर चित्त शांत कर लेता हूं। आना और जाना नियति हैं पर मगर जीवन यह कमी कोई पाट नहीं सकेगा। पापा, आप चले गए पर आपके संस्कार, आदर्श व विचार आज भी मुझमें आपके रूप जीवंत है। सच कहूं, आप-सा बनना चाहा पर उस वटवृक्ष की एक शाखा भी नहीं बन सका। फादर डे पर पुत्र ऐसे ही भावना में ओतपोत दिखे। सुखद, कई लोग पिता की सेवा को ही अपना ध्येय बना उनकी सेवा कर रहे हैं। बिस्तर पर पड़े पिता को नित्य क्रिया से निवृत कराना, स्नान कराना और मुंह में कौर-कौर खिलाना पुत्र के दिनचर्या में शामिल हो गया है। ऐसे ही कुछ लोगों की खासे बातें -
झाझा के पुरानी बाजार के सदाशिव चौधरी एवं मुरलीधर चौधरी पांच साल से अपने 73 वर्षीय बीमार पिता शंकर चौधरी की सेवा कर रहे हैं। पिता की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं। वो दिल रोग व मधुमेह की बीमारी से पीड़ित हैं। पटना के अलावा रेफरल अस्पताल के चिकित्सक डॉ एनके सिंह से इलाज चल रहा है। पुत्रों ने बताया कि अपने फर्ज को भूला नहीं जा सकता है। पिताजी ने अपने आप को झोंक कर हमलोगों को पढ़ाया-बढ़ाया। आज जिम्मेवारी हमारी है। उनकी सेवा कर हमें संतोष व सुकून मिलता है। बेटे-बेटियों में भी संस्कार की नींव पड़ रही है। कल ये भी मेरी या अपने ससुर की ऐसी ही इज्जत करेंगे।
चकाई प्रखंड के सरौंन बाजार निवासी बासुदेव वर्णवाल की उम्र 85 वर्ष हो गई। अब वो चलने में असमर्थ हो गए। घर पर ही रहते हैं। पुत्र नरेश वर्णवाल और पुत्रवधु निर्मला वर्णवाल की देखरेख करती है। हाथ से खाना-पानी पिलाती है। नरेश ने बताया कि पिता का सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। पिता से श्रेष्ठ धरती पर दूसरा कोई नहींं। हमें यही संस्कार मिला है। पुत्रवधु निर्मला ने कहा कि ससुर पिता ही होते हैं। उनमें मैं अपने पिता की भी छवि देखती हूं। उन्होंने मेरे पति को लाड-प्यार पालन पोषण के साथ अच्छे संस्कार दिए हैं। वो पुत्र धर्म तो मैं पुत्रवधु धर्म निभा रही हूं। हमलोगों के लिए सबकुछ पिता जी ही हैं।
खैरा प्रखंड के घनबेरिया निवासी 90 वर्षीय अर्जुन सिंह के पुत्र अरविंद सिंह पिता की बीमारी की बात सुन नौकरी छोड़कर दिल्ली से वापस गांव लौट आए। यहीं खेतीबारी के साथ पिता की सेवा कर रहे हैं। पिता को सुबह नित्य क्रिया से निवृत करने के बाद खेतों की ओर रुख करते हैं। अपने हाथ से भोजन-पानी कराते हैं और रात में पिताजी के सिराहने बैठ सिर दबाने के बाद पैर दबाना नहीं भूलते। अरविंद सिंह ने बताया कि पिता संतान की सुख के लिए अपनी इच्छाओं का अंत कर देता है। रात दिन मेहनत करता है ताकि उनकी संतान को वो खुशी मिल सके जिससे वो महरूम रह गया। पिता सेवा से बड़ा धर्म कुछ नहीं है।