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Coronavirus infected patient upset: शुल्क एडवांस में, 24 घंटे में एक बार झांकते हैं डॉक्टर साहब, दूर से इलाज

Coronavirus infected patient upset बिहार के भागलपुर में कोरोना संक्रमित मरीज काफी परेशान हो रहे हैं। इलाज में लापरवाही होती है। भर्ती मरीज के स्वजन की जुबानी। हर दिन आइसीयू में बेड चार्ज ऑक्सीजन दवा और जांच के नाम पर लिए जा रहे 23 से 24 हजार।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sat, 15 May 2021 07:40 AM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 07:40 AM (IST)
Coronavirus infected patient upset: शुल्क एडवांस में, 24 घंटे में एक बार झांकते हैं डॉक्टर साहब, दूर से इलाज
ग्लोकल अस्‍पताल में मरीजों का समुचित इलाज नहीं होता है।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। कोरोना पीड़ित बेहतर इलाज की चाह में मरीज निजी नर्सिंग होम में भर्ती हो जाते हैं। लेकिन, भर्ती होने के बाद कोई देखने वाला भी कोई नहीं रहता। शुरुआत में मोटी फीस के लोभ में देखभाल होता है। इसके बाद कोई देखने वाला कोई नहीं है। शहर के प्रतिष्ठित निजी अस्पताल ग्लोकल की कहानी भी कुछ इसी तरह की हैं। यहां भर्ती मरीज के स्वजन ने मरीज के इलाज की व्यवस्था की कलई खोल दी। हटिया रोड निवासी स्वजन पिता जी को छह दिन पहले ग्लोकल में भर्ती कराया। अभी भी पिता जी का इलाज चल रहा है।

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सरकारी अस्पताल की व्यवस्था देख ले गए थे निजी नर्सिंग होम में स्वजन ने बताया कि पिताजी को कोरोना होने के बाद पहले जेएलएनएमसीएच में भर्ती के लिए गए। लाख आरजू विनती के बाद भी आइसीयू में जगह नहीं मिली। आइसोलेशन वार्ड की हालत काफी खराब थी। घर वालों और रिश्तेदारों ने निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराने का सलाह दिए। इसके बाद पिताजी को जीरोमाइल स्थित ग्लोकल हॉस्पिटल लेकर आए। शुरुआत में दो दिन चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बेहतर ख्याल रखा। इसके बाद इलाज में कोताही बरती गई। चिकित्सक भी दूर से झांक कर ही मरीजों को देखते हैं।

सुबह की जांच दोपहर और दोपहर की जांच रात में

स्वजन ने बताया कि पिताजी को जो कुछ जरूरी जांच होनी होती है। उसमें भी काफी लापरवाही बरती गई। सुबह का जांच दोपहर बाद में हुआ। कभी-कभी एक दिन बाद जांच की जाती थी। उन्होंने बताया कि आइसीयू में बेड चार्ज, ऑक्सीजन, दवाइयां के एवज में हर दिन 23 से 25 हजार रुपए खर्चा रहे हैं। एक सप्ताह में दो लाख रुपये अस्पताल को भुगतान कर दिए हैं। हालत में ज्यादा सुधार नहीं है।

आपदा में संवेदना नहीं, पैसा ही सबकुछ

जिले के निजी नर्सिंग होम और जांच घर प्रबंधनों को संवेदना से मतलब कोई वास्ता नहीं है। ऐसे लोगों की मानवता भी मर गई है। इन्हें सिर्फ अपने जेब से भरने से मतलब है। आपदा की इस वेला में कोरोना मरीजों से मनमाना शुल्क वसूल रहे हैं। इस आपदा के वेला ऐसे लोग धनराशि जमा करने में लगे हैं।

शहर में जितने निजी नर्सिंग होम को कोरोना मरीजों के इलाज के लिए चयन किया गया है। वैसे अस्पतालों को निर्धारित शुल्क ही लेना है। ज्यादा शुल्क लेने पर स्वजन शिकायत करें। ऐसे निजी नर्सिंग होम संचालकों पर कार्रवाई की जाएगी। -डॉ. उमेश शर्मा, सिविल सर्जन।

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