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कोरोना के कारण यहां 30 हजार बच्चे छोड़ चुके हैं स्कूल, जानिए सरकारी आंकड़े का दावा

मधेपुरा में कोरोना के कारण स्कूल छोड़ चुके ड्राप आउट बच्चों को फिर से जोडऩा शिक्षा विभाग के लिए चुनौती बन गई है। निजी संस्थानों की माने तो अब तक कोरोना के कारण करीब 30 हजार बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 09:42 AM (IST)Updated: Sun, 07 Mar 2021 09:42 AM (IST)
कोरोना के कारण यहां 30 हजार बच्चे छोड़ चुके हैं स्कूल, जानिए सरकारी आंकड़े का दावा
मधेपुरा में कोरोना के कारण 30 हजार बच्‍चों ने स्‍कूल छोड़ दिया है।

मधेपुरा [सुकेश राणा]। सोमवार से पूरे जिले में बच्चों के नामांकन के लिए प्रवेशोत्वस शुरू हो रहा है। इस दौरान विद्यालय से बच्चों को जोडऩे के लिए विविध कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, लेकिन विभाग के लिए ड्राप आउट बच्चों यानी बीच सत्र में पढ़ाई छोडऩे वाले और स्कूल न जाने वाले बच्चों को फिर से स्कूल से जोडऩा चुनौती होगी।

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खासकर कोरोना के बीच लगभग 11 महीने बच्चों को स्कूल से दूर रहना बड़ी बात है। यद्यपि डीईओ का दावा है कि विभिन्न स्तरों से अभियान चलाने के बाद ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल से जुड़ जाएंगे, लेकिन कोरोना के बाद खुलने वाले स्कूल के आंकड़े को देखा जाए तो स्थिति काफी ङ्क्षचताजनक है। ऐसे में ड्राप आउट को स्कूल से जोडऩा विभाग के लिए बड़ी चुनौती होगी।

मालूम हो कि विभागीय आकड़ों में वर्तमान समय में ड्राप आउट बच्चों की संख्या लगभग छह हजार के आंकड़ों के आसपास है, लेकिन हकीकत है कि लगभग 30 हजार से ज्यादा बच्चे अभी स्कूल से दूर हैं। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि दो अप्रैल से शुरू हो रहे नए शैक्षिक सत्र में ड्राप आउट बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाना और उन्हें लगातार स्कूल भेजना किसी चुनौती से कम नहीं होगी। शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों की मानें तो 2020-21 में छह हजार बच्चे ड्रापआउट थे। जबकि इस सत्र का डाटा अभी खुद विभाग के पास नहीं है।

कोरोना ने बच्चों की छीन ली सुनहरे सपने

कोरोना ने बच्चों के सुनहरे सपनों को छीन लिया। इस बात से शिक्षा विभाग के अधिकारी भी सहमत हैं। शिक्षाविद हीरा कुमार ङ्क्षसह कहते हैं कि विगत एक दशक में ग्रामीण क्षेत्र में खुलने वाले निजी विद्यालय आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है। अभिभावक कम खर्च में अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाकर बड़े सपने सजो रहे थे। शहर से सटे भर्राही के एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे सजन साह कहते हैं कि दो सौ से तीन रुपये में ट्यूशन फी, प्राइवेट टीचर मिलाकर 500-600 में बच्चे आराम से पढ़ रहे थे। लेकिन कोरोना ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया। अब जब कोरोना के बाद स्कूल खुले हैं तो तो फीस काफी बढ़ा है। ऐसे में सरकारी स्कूल में पढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इसी मझधार में अपने बच्चों को कहीं भी नामांकन नहीं करवा पा रहे हैं। यह हालत केवल सजन साह का नहीं है बल्कि पूरे जिले के सुदूर क्षेत्र में रहने वाले लोगों की यही स्थिति है। रानीपट््टी के बब्लू दास कहते हैं कि लॉकडान से पहले परिवार के गरीब बच्चे गांव के ही निजी स्कूल में पढ़ रहे थे। लेकिन अब पैसे के अभाव में नहीं जा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूल में भेजने का कोई मतलब ही नहीं है। इससे बेहतर तो घरों में होम ट््यूशन पढ़ाना ज्यादा बेहतर है।

आठ मार्च से चलेगा जागरूकता अभियान

कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रहने पाए इसके लिए आठ मार्च से 20 मार्च तक नामांकन अभियान चलेगा। इसकी जागरूकता के लिए साइकिल रैली, प्रभात फेरी समेत विविध कार्यक्रम का आयोजन होगा। इस अभियान की सफलता के लिए जन शिक्षा निदेशालय से लेकर आइसीडीएस व जीविका तक से मदद ली जाएगी। इसके अलावा गांव-गांव रैली के माध्यम से बच्चों और अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाएगा। इसके साथ ही शिक्षकों को निर्देश है कि वे अभिभावकों के साथ बैठक कर ज्यादा से ज्यादा नामांकन करें।

नामांकन के लिए विशेष अभियान के साथ हमलोग ड्राप आउट बच्चों को जोडऩे के लिए तकनीकी मामले का अध्ययन करेंगे, जहां कमी होगी, उसे सुधारने का काम होगा। -गिरिश कुमार, डीपीओ, एसएसए, मधेपुरा  


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