सुपौल जिले में मिटटी के सेहत की नहीं हो रही जांच, जाने क्या है वजह
मेरे देश की धरती की सेहत रसायनिक खादों के बेतहाशा उपयोग ने बिगाड़ कर रख दी है। जिससे यहां की धरती सोना नहीं उगल रही है। इसकी सेहत की जांच के लिए प्रयोगशालाओं में कर्मियों का भी अभाव है। ऐसे में खेती किसानी प्राावित हो रही है।
जागरण संवाददाता, सुपौल । मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती। यह संभव तब है जब किसानों को सही खाद-बीज के अलावा मिट्टी में पाए जाने वाले तत्वों की मात्रा संतुलित रहे। किसान किसी न किसी तरीके से उन्नत किस्म के खाद-बीज तो उपलब्ध कर लेते हैं परंतु मिट्टी जांच के लिए प्रयोगशाला में विशेषज्ञ की कमी के कारण किसानों को इनका समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। वे जिस अनुपात में किसान लागत और मेहनत करते हैं उसके अनुरूप उन्हें पैदावार नहीं मिल पाता है। जिला कृषि कार्यालय परिसर में अवस्थित मिट्टी जांच प्रयोगशाला स्थापना काल से ही विशेषज्ञों की कमी से जूझ रही है। हाईटेक प्रयोगशाला रहने के बावजूद किसानों को इसका शत-प्रतिशत लाभ नहीं मिल पाता है। इसका ताजा उदाहरण खरीफ मौसम में सरकार द्वारा मिट्टी जांच को लेकर विभाग को दिए गए लक्ष्य से लगाया जा सकता है। इस मौसम में विभाग को जिले के कुल 142 राजस्व गांव में से प्रत्येक गांव से 41 नमूनों की जांच कर किसानों को म़ृदा हेल्थ कार्ड दिया जाना था इस हिसाब से इस मौसम में 5 822 नमूनों की जांच की जानी थी हालांकि विभाग ने सभी नमूने तो इक_े कर लिए परंतु जांच मामले में काफी पीछे चल रहा है। इक_ा किए गए इन नमूनों में से अभी तक सिर्फ एक 11 सौ नमूनों की जांच संभव हो पाई है जिनमें से महज 700 किसानों को हेल्थ कार्ड दिया गया है। अब जबकि वित्तीय वर्ष को समाप्त होने में महज डेढ़ माह का समय शेष रह गया है तो ऐसे में शत-प्रतिशत नमूनों की जांच हो पाएगी फिलहाल यह संभव होते नहीं दिख रहा है।
हाईटेक है मिट्टी जांच प्रयोगशाला
जिले की मिट्टी जांच प्रयोगशाला हाईटेक है। यहां लगाई गई मशीनें उन्नत किस्म की है जिसके कारण सभी तरह की जांच की यहां सुविधा है। इस प्रयोगशाला में सभी 12 पीएच की जांच की सुविधा उपलब्ध है। 2 तरह की जांच में मृदा पीएच, मृदा में चालकता, कार्बनिक पदार्थों की मात्रा, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, बोरन, सल्फर के अलावा कोबाल्ट ङ्क्षजक आयरन एवं मैगनिज शामिल हैं। इनमें से कोबाल्ट ङ्क्षजक आयरन मैगनिज सूक्ष्म तत्व हैं जिसकी जांच की सुविधा भी यहां उपलब्ध है लेकिन सभी सुविधा रहने के बाद भी कर्मियों की कमी से इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है।
लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा विभाग
खरीफ मौसम में जिन 142 राजस्व गांव के 5822 नमूनों की जांच की जानी है उनमें से विभाग अभी तक महज एक 11 सौ नमूनों की ही जांच कर पाया है जिनमें से 700 किसानों को हेल्थ कार्ड मिल पाया है जबकि इन सभी नमूनों की जांच मार्च तक में कर दिया जाना है उसमें भी तब जब इस प्रयोगशाला में प्रतिदिन अधिकतम 30 से 35 नमूनों की ही जांच की क्षमता है। ऐसे में निर्धारित अवधि के अंदर शत-प्रतिशत किसानों को हेल्थ कार्ड ससमय मिल पाएगा फिलहाल यह संभव होते नहीं दिख रहा है।
को-ऑर्डिनेटर के सहारे चल रही प्रयोगशाला
मिट्टी जांच प्रयोगशाला अपने स्थापना काल से ही विशेषज्ञ और कर्मियों की कमी से जो जूझ रहा है। वर्तमान में तो इसकी स्थिति और दयनीय है। प्रयोगशाला में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सहायक निदेशक रसायन का यहां एक पद स्वीकृत है जो फिलहाल प्रभार में चल रहा है। इस पद पर पदस्थापित कर्मी सहरसा के अलावा सुपौल प्रयोगशाला को भी देखते हैं। इसके अलावा यहां सहायक अनुसंधान पदाधिकारी के 04 पद सृजित हैं जिसमें सभी पद रिक्त पड़े हैं। प्रयोगशाला सहायक के 02 और लिपिक के एक सृजित पद में से सभी खाली हैं। प्रयोगशाला सेवक के 02 पद सृजित हैं जिनमें से एक पर कर्मी मौजूद हैं। फिलहाल यह प्रयोगशाला प्रतिनियुक्त कर्मियों के सहारे संचालित हो रहा है। प्रयोगशाला का कार्य प्रतिनियुक्त समन्वयक प्रवीण कुमार और रश्मि कुमारी के सहारे चलाया जा रहा है।
क्या कहते हैं जिला कृषि पदाधिकारी
जिला कृषि पदाधिकारी अमीर कुमार ने कहा कि लक्ष्य के अनुरूप मिट्टी जांच को ससमय पूरा करने के लिए यहां कर्मियों की प्रतिनियुक्ति की गई है। इन कर्मियों से दो शिफ्टों में काम लिया जा रहा है ताकि लक्ष्य को पूरा किया जा सके।