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Earth Day : क्रोध से उपजी शीतलता की छांव, गुस्‍से में प्रदीप ने लगा दिए सैकड़ों पेड़

Earth Day पिछले 20 साल में प्रदीप को कब-कब गुस्सा आया यह बताने के लिए उनके द्वारा लगाए गए सैकड़ों पेड़ ही काफी हैं। लोग कहते हैं गुस्‍सा आए तो प्रदीप जैसा आए।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 08:46 AM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 08:46 AM (IST)
Earth Day : क्रोध से उपजी शीतलता की छांव, गुस्‍से में प्रदीप ने लगा दिए सैकड़ों पेड़
Earth Day : क्रोध से उपजी शीतलता की छांव, गुस्‍से में प्रदीप ने लगा दिए सैकड़ों पेड़

मुंगेर [त्रिभुवन चौधरी]। Earth Day : कहा जाता है कि क्रोध में अपार शक्ति, लेकिन दिशा गलत होती है। इसी शक्ति का प्रदीप ने सकारात्मक उपयोग किया। उन्हें गुस्सा काफी आता था। गुस्से के दौरान जहां दूसरे लोग आपा खो देते हैं, वहीं प्रदीप पेड़ लगाने लगे। उन्होंने बताया कि गुस्से को काबू करने के लिए इससे बेहतर काम नहीं हो सकता है। अब तक उन्होंने सैकड़ों पीपल के पेड़ बिहार-झारखंड में लगा दिए हैं। उनका मानना है कि पीपल के पेड़ का धार्मिक महत्व होता है। यह अन्य पेड़ों की तुलना में ऑक्सीजन भी अधिक देता है। इस कारण उन्होंने पीपल के पेड़ लगाने को ही प्राथमिकता दी।

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हर कोई दे रहा मिसाल : धरहरा प्रखंड के हेमजापुर निवासी प्रदीप महतो (55 वर्ष) के इस काम ही हर कोई सराहना कर रहा है। गुस्से में प्रदीप द्वारा एनएच 80 के किनारे लगाए गए पीपल के कई पौधे आज पेड़ बन कर लोगों को छांव और शीतल हवा दे रहे हैं। पिछले 20 साल में प्रदीप को कब-कब गुस्सा आया, यह बताने के लिए उनके द्वारा लगाए गए सैकड़ों पेड़ ही काफी हैं। गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं-गुस्सा आए तो प्रदीप जैसा, वरना गुस्सा ना ही आए।

इन जगहों पर लगाए पौधे : मुंगेर-लखीसराय मुख्य पथ के हेमजापुर, बाहाचौकी और शिवकुंड पंचायत के करीब तीन किलोमीटर प्रक्षेत्र के दायरे में प्रदीप ने सैकड़ों पीपल के पेड़ लगाए। कई पेड़ आज लहलहा रहे हैं तो कई सड़क निर्माण के क्रम में उखाड़ दिए गए। चौक बाजार, सुंदरपुर, चांद टोला, छोटी-बड़ी लगमा गांव और शिवकुंड के कुछ जगहों पर पेड़ लगाकर उन्होंने इनकी देखभाल भी की। रोज पौधों की निराई-गुड़ाई करने के अलावा इनमें पानी भी डालते। 20 साल पूर्व अपने एक रिश्तेदार के यहां प्रदीप हजारीबाग गए थे। वहां भी उन्होंने चार महीने के दौरान कई पीपल के पेड़ लगाए।

प्रदीप को क्यों आता था गुस्सा : जब कोई आदमी अपनी बात मनवाने के लिए प्रदीप पर बेवजह दबाव देता था, तो प्रदीप क्रोध से भर जाते। गुस्सा आते ही प्रदीप हाथों में कुदाल और खुरपी थाम सड़क किनारे गड्ढा खोदने में लग जाते थे। बड़बड़ाते हुए पौधे लगाकर वह गुस्से को काबू में करने का प्रयास करते। प्रदीप बताते हैं कि पौधा लगाते-लगाते उन्होंने गुस्से पर नियंत्रण पाना सीख लिया। अब प्रदीप को गुस्सा भी कम आता है। वह बताते हैं कि अपने द्वारा लगाए गए पेड़ों को बड़ा होते देख उनके मन को शांति मिलती है।

भारतीय संस्कृति में पीपल के पेड़ को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह विशालकाय वृक्ष होता है और इसकी आयु लंबी होती है। इसमें कई औषधीय गुण निहित हैं। यह पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खांसी, दमा और सर्दी में काम आता है। यह अन्य पेड़ों की अपेक्षा ऑक्सीजन अधिक देता है। इसकी गिनती देववृक्ष के रूप में होती है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवता निवास करते हैं। इसके नीचे कोई भी संस्कार शुभ माना जाता है। - डॉ. संजय सहाय, अध्यक्ष, उद्यान विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर।

जब मन के अनुसार इच्छा की पूर्ति नहीं होती है तो लोगों को गुस्सा आ जाता है। इस गुस्से में थैलेसम नामक ग्रंथि मदद करती है। कभी-कभी लोगों को कम तो कभी लंबे समय के लिए भी गुस्सा आ सकता है। यदि कोई व्यक्ति गुस्से के दौरान कुछ सकारात्मक करने की कोशिश करता है तो उसे गुस्सा नहीं, तनाव समझा जाना चाहिए। - डॉ. राजेश तिवारी, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, टीएनबी कॉलेज, भागलपुर


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