रुपयों के गायब हुए हो गए 15 साल: मधेपुरा में कई गए जेल, कइयों की हो गई मौत, लेकिन नहीं बन सकी स्कूलों की इमारतें
मधेपुरा में स्कूल के निर्माण के लिए आई राशि उठ गई लेकिन स्कूल भवन का निर्माण नहीं हो सका। राशि उठाव कर निर्माण नहीं करने वाले कई शिक्षकों को जेल हो चुकी है। वहीं कइयों की मौत हो चुकी है। लेकिन आलम ऐसा है कि...
संवाद सूत्र, मधेपुरा : जिले में स्कूल भवन निर्माण व मरम्मती की राशि उठाव के बावजूद भी निर्माण कार्य नहीं किया गया है। इस दिशा में कई शिक्षकों पर कार्रवाई हुई है। जेल तक की सजा हो चुकी है। कहीं तो शिक्षकों की मौत हो गई है और भवन निर्माण अब तक अधूरा है। ऐसे भवन 15 साल से अधिक के समय से यूं ही पड़े हैं। मामला आज भी पेंच में फंसा है। विभाग की लाचारी है कि ऐसे मामलों का आज तक निपटा पाने में सफल नहीं हो पाए हैं। नतीजा, छात्रों की पढ़ाई बाधित है। ऐसे मामले में सबसे ज्यादा आलमनगर प्रखंड में है। गनौल स्थित मिडिल स्कूल में राशि के उठाव किए एक दशक होने को है। लेकिन एचएम की मनमानी के कारण भवन का निर्माण नहीं हो पाया है।
एचएम मनोज पासवान ने वित्तीय वर्ष 11-12 में भवन निर्माण के लिए 16 लाख लिया था। लेकिन आज तक नहीं बन पाया। इस मामले में पिछले साल मनोज पासवान को जेल भी हुई। वर्तमान स्थिति यह है कि मनोज पासवान बेल पर है। विभाग का कहना है कि प्राथमिकी के बाद निलामवाद भी दायर हुआ है। लेकिन मामला लंबित है। इसी तरह आलमनगर प्रखंड में ही अन्य दो मामले हैं। विजय स्मारक हाई स्कूल में भी इसी तरह के मामले हैं। लेकिन तल्खी बढते देख निर्माण का काम अब शुरू हुआ है। वहीं सिंहार स्थित स्कूल का मामला फंसा हुआ है।
कई शिक्षकों की हो गई है मौत
भवन निर्माण के मामले में कई दिलचस्प मामले है। विभाग का कहना है कि लगभग आधा दर्जन शिक्षक ऐसे हैं, जो राशि का उठाव किया लेकिन भवन नहीं किया। मामला चल ही रहा था कि शिक्षकों की मौत हो गई। शंकरपुरा प्रखंड स्थित लाही मध्य विद्यालय, कुमाखंड स्थित एनपीएस बैसाढ़ व मुरलीगंज स्कूल के शिक्षकों की मौत हो गई है। एक सेवानिवृत शिक्षक ने बताया कि शिक्षा विभाग में बड़ी खामी है कि भ्रष्टाचार के मामले में सख्ती नहीं बरती जाती है। वहीं ऐसे भी गैरजिम्मेदार शिक्षक हैं जो इस तरह के गंदे कृत को अंजाम देकर शिक्षा विभाग को बदनाम करते हैं। वहीं उनका कहना है कि इस तरह के मामले में विभाग की भूमिका भी संदिग्ध होती है। पहले तो अपना हिस्सा के चक्कर में अधिकारी रहते हैं। बाद में ऐसे शिक्षकों का भय खतम हो जाता है। ऐसे शिक्षक सरकारी राशि का अपना मान लेते हैं। विभाग का कहना है कि पेंङ्क्षडग भवन की राशि करोड़ों में है।
'अब नये मामले में सजगता बरती जा रही है। जल्द ही पुराने मामले भी समाप्त हो जाएंगे।'- राशीद नवाज, डीपीओ, सर्व शिक्षा विभाग, मधेपुरा