अब रस्म के लिए प्रयोग होते हैं मिट्टी के दीये
कभी दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीये तेल से रोशन करने क
जागरण संवाददाता, बेगूसराय: कभी दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीये तेल से रोशन करने का प्रचलन था। हर घर में सैकड़ों की संख्या में मिट्टी के दीये खरीदे जाते थे। इन दीयों की झिलमिलाहट ही अलग होती थी। अब इनका स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया है। सिर्फ रस्म अदायगी के लिए लोग त्योहार पर मिट्टी के वर्तन बनाने वालों के व्यवसाय पर खासा फर्क पड़ा है। धंधा मंदा होने से कम लोग ही इस कार्य को करते हैं। अब सीमित संख्या में मिट्टी के दीये बनाए जाते हैं।अब रस्म के लिए प्रयोग होते हैं मिट्टी के दीये
दीपावली का पर्व रोशनी का पर्व है। इस त्योहार पर मिट्टी के दीये रोशन करने की परंपरा लम्बे समय से चली आ रही है। अब से कुछ दशक पूर्व लोग मिट्टी के दीये दीपावली पर लाते थे और उसमें सरसों सर तील का तेल डालकर उन्हें रोशन करते थे। इनकी रोशनी और झिलमिलाहट अलग ही होती थी। समय में बदलाव आया तो परंपराओं पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलने लगा। धीरे-धीरे मिट्टी के दीयों का स्थान बिजली की झालरों ने ले लिया। लोग सिर्फ रस्म अदायगी और पूजा के लिए ही मिट्टी के दीये खरीदते हैं। इसका सीधा असर इस कारोबार से जुड़े लोगों पर पड़ा है। मिट्टी के दीये बनाने वाले इस त्योहार के आने की प्रतीक्षा दो-तीन महीने पहले से ही करते हैं। मिट्टी के दीये बनाकर उनका स्टॉक कर लेते थे। अब कुम्हारी कला से जुड़े लोग सीमित संख्या में ही दीये बनाते हैं। अगर अधिक बना भी लें तो उनकी बिक्री नहीं होती। अब यह व्यवसाय घाटे का लगता है, लकिन इसके अलावा वे करें भी क्या।
शहर की सड़क पर मिट्टी के दीये बेचने वाले पहाड़चक के योगेन्द्र पंडित कहते हैं कि अब इस व्यवसाय में दम नहीं रहा। पांच साल पहले जितना दीया बेच लेते थे अब उसका आधा भी नहीं बिकता है। भर्रा निवासी चंदन पंडित कहते हैं कि अब पहले की अपेक्षा इसे बनाने में भी खर्च अधिक है। पहले मिट्टी मुफ्त मिलती थी, लेकिन अब एक टेलर मिट्टी डेढ़ हजार की मिलती है।