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पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए वर्षों से मुफ्त को¨चग चला रहे हैं दिग्विजय

बेगूसराय : पत्नी ने पति को इंजीनिय¨रग करवाने के लिए अपने सारे जेवरात बेच दिए। पति इंजीनिय¨रग

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 May 2017 07:07 PM (IST)Updated: Wed, 10 May 2017 07:07 PM (IST)
पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए वर्षों से मुफ्त को¨चग चला रहे हैं दिग्विजय
पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए वर्षों से मुफ्त को¨चग चला रहे हैं दिग्विजय

बेगूसराय : पत्नी ने पति को इंजीनिय¨रग करवाने के लिए अपने सारे जेवरात बेच दिए। पति इंजीनिय¨रग की परीक्षा पास कर इंजीनियर बन गए। पहली नौकरी राज्य सरकार के ¨सचाई विभाग में बतौर इंजीनियर नियुक्त हुए। ¨जदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी कि अचानक पत्नी पति को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। यह कहानी किसी किताब या फिल्म की नहीं है, बल्कि यह हकीकत है। घटना बखरी के अटखुट्टी गांव निवासी रामेश्वर प्रसाद ¨सह के पुत्र दिग्विजय ¨सह की है।

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जिन्हें आज पूरा क्षेत्र दादा जी के नाम से पुकारता है। दादा जी की मुफ्त को¨चग पूरे क्षेत्र में मशहूर है। हिन्दी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान में महारत रखने वाले दिग्विजय ¨सह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आज तक उन्होंने जिस बच्चे को भी पढ़ाया है, वह अपने क्लास में प्रथम रहा है। उनके पुत्र संजय ¨सह बताते हैं कि पत्नी की जुदाई से करीब एक वर्ष तक उबर नहीं पाए। उसके बाद उन्होंने पत्नी को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए एक अनोखा रास्ता अपनाया। वो रास्ता था अपने क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा दान करने का ।

80 वर्षीय दिग्विजय ¨सह बचपन से ही मेधावी छात्र रहे हैं। 20 वर्ष पहले ¨सचाई विभाग (बिहार सरकार) में सहायक अभियंता के पद से अवकाश प्राप्त करने के कुछ वर्षों के बाद से ही गांव में बच्चों के बीच निश्शुल्क शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। संजय बताते हैं कि एक कनीय अभियंता से नौकरी शुरू करने वाले उनके पिता को तत्कालीन राज्य सरकार के द्वारा कई बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है। इनके द्वारा बनाए गए बांध व पुल आज भी मजबूत स्थिति में हैं। वेतन के अलावा कभी भी उन्होंने अतिरिक्त आय को छुआ तक नहीं। इनका जीवन ठीक- ठाक चल रहा था, ¨कतु पांच वर्ष पूर्व इनकी जीवन संगिनी प्रतिमा देवी का देहावसान हो गया। पत्नी के गुजर जाने की वजह से ये काफी दुखी व निराश रहने लगे। मजबूत इरादों वाली प्रतिमा देवी गरीब व असहाय लोगों की मदद में हमेशा आगे रहती थीं। पत्नी की मृत्यु के कुछ दिनों बाद में इन्हें ऐसा लगा जिस पत्नी ने उनकी पढ़ाई के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक ही तरीका है, छात्र व छात्राओं को निश्शुल्क विद्या दान दिया जाए। उसी दिन से आसपास के बच्चों को उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। पहले दिन चार बच्चों से शिक्षण कार्य शुरू करने वाले दिग्विजय बाबू के पास फिलहाल तकरीबन 50 बच्चे निश्शुल्क पढ़ाई कर रहे हैं। समय के साथ इनकी ²ष्टि कमजोर हो चुकी है। लेकिन इनका कहना है कि जब तक सांस तब तक विद्या दान करते रहेंगे। वे बताते हैं कि अक्सर आस-पास के अभिभावक उन्हें ट्यूशन फी देने का प्रयास करते हैं, परंतु, वे सख्ती से इसे मना कर देते हैं। वे कहते उन्हें मिलने वाला पेंशन ही काफी है। इतना ही नहीं बल्कि ये गरीब छात्रों की आर्थिक मदद भी करते हैं।


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