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म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के...शालिनी और निर्जला की कहानी 'दंगल' से कम नहीं

2016 में प्रदर्शित ‘दंगल’ फिल्म में अभिनेता आमिर खान के डॉयलाग- म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के... ने उन पर ऐसा असर डाला कि अपनी बेटियों के लिए उन्होंने घर में ही अखाड़ा बना डाला।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 07 Feb 2019 08:10 AM (IST)
म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के...शालिनी और निर्जला की कहानी 'दंगल' से कम नहीं
म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के...शालिनी और निर्जला की कहानी 'दंगल' से कम नहीं

संजीव आर्य, बखरी, (बेगूसराय)। बेगूसराय, बिहार की दो सगी बहनें शालिनी और निर्जला राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण जीत चुकी हैं। स्वर्णिम सफलता का यह दौर जारी है। पिता मुकेश ने दंगल फिल्म देखकर बेटियों के लिए घर में ही अखाड़ा बना दिया था। कभी-कभी एक वाक्य किसी का जीवन बदल देता है। बेगूसराय, बिहार के बखरी अनुमंडल के सलौना गांव के मुकेश स्वर्णकार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ।

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2016 में प्रदर्शित ‘दंगल’ फिल्म में अभिनेता आमिर खान के डॉयलाग- म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के... ने उन पर ऐसा असर डाला कि अपनी बेटियों के लिए उन्होंने घर में ही अखाड़ा बना डाला। अपनी दोनों बेटियों को पहलवान बनाने की ठान लेने के बाद मुकेश ने न केवल घर में अखाड़ा बनाया बल्कि खुद कोच बन शालिनी और निर्जला से भरपूर अभ्यास कराने लगे। आज उनकी बेटियां कुश्ती में बड़ा मुकाम हासिल कर चुकी हैं।

बीते साल अक्टूबर में शालिनी ने सोनीपत (हरियाणा) और निर्जला ने मेरठ (उप्र) में हुई राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई। अब मुकेश ने बेटियों को बेहतर प्रशिक्षण दिलाने के लिए गोंडा, उत्तर प्रदेश स्थित नंदिनी नगर महाविद्यालय के कुश्ती प्रशिक्षण केंद्र में भेजा है। वहां दोनों बहनें कुश्ती संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सांसद बृज भूषण शरण सिंह, डॉ. रजनीश पांडे व प्रेमचंद यादव से प्रशिक्षण ले रही हैं।

गीता व बबीता फोगाट बनीं आदर्श

हरियाणा की दंगल गर्ल पहलवान गीता और बबीता फोगाट ने रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ कुश्ती को जुनून बनाकर जिस तरह देश-दुनिया में नाम कमाया, उसी तर्ज पर दोनों बहनें दिनरात अभ्यास करती हैं। गीता-बबीता फोगाट को अपना आदर्श मानती हैं। पिता मुकेश के मार्गदर्शन के बाद दोनों बहनें राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में गांव, जिले और सूबे का नाम रोशन कर रही हैं। शालिनी की उम्र 14 और निर्जला की 13 वर्ष है। दोनों बहनों ने बताया कि पिता की इच्छा को जुनून बनाकर वे तीन वर्ष से मेहनत कर रही हैं।

आसान न था सफर

मुकेश बताते हैं कि बेटियों को पहलवान बनाने का सफर आसान नहीं था। जिले के सीमावर्ती और अति पिछड़े क्षेत्र में सामाजिक बेड़ियां पग-पग पर बाधक बनती रहीं, लेकिन उसकी परवाह न करते हुए मेहनत करता रहा। अब मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मां पूनम देवी बताती हैं कि अगल-बगल वाले ताने देते हैं कि बेटी को पहलवान बना दिया, अब उनकी शादी कैसे करोगी? लेकिन मैं इसकी चिंता न करते हुए चाहती हूं कि मेरी बेटियां राज्य और देश का नाम रोशन करें।


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