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दीपावली की तैयारी अंतिम चरण में

जागरण संवाददाता, बेगूसराय : सुख व समृद्धि दात्रि मां लक्ष्मी व शुभ फलाफल दाता गणेश के पूजनोत्सव

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 Oct 2017 05:57 PM (IST)Updated: Tue, 17 Oct 2017 05:57 PM (IST)
दीपावली की तैयारी अंतिम चरण में
दीपावली की तैयारी अंतिम चरण में

जागरण संवाददाता, बेगूसराय : सुख व समृद्धि दात्रि मां लक्ष्मी व शुभ फलाफल दाता गणेश के पूजनोत्सव में महज एक दिन शेष है। मां लक्ष्मी एवं गणेश की पूजा लगभग सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं घरों में करने की परंपरा है। इस पूजनोत्सव को ले आमजन दुर्गापूजा के बाद से ही तैयारी में लगजाते हैं। सभी अपने घरों की साफ-सफाई व रंग-रोगन इस मौके पर करते हैं। इसके पश्चात घरों को आकर्षक ढ़ंग से प्रकाश के लिए विद्युतीय सजावट को भी प्राथमिकता देते हैं। इसलिए इस पूजनोत्सव को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। इस मौके पर महिलाएं जहां अपने अपने घरों में आकर्षक रंगोली बनाकर सजाती हैं। वहीं बच्चे व युवा पटाखों को प्राथमिकता देते हैं। दीपावली की इन खरीदारी को लेकर बाजार में काफी चहल पहल का माहौल बना है।

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एलइडी की लड़ियों से पटा है बाजार

इस प्रकाशोत्सव में विद्युतीय सजावट के प्रचलन के कारण बाजार में बल्ब व एलइडी लाइट की खरीदारी अधिक होती है। अधिकांश लोग अपनी घरों एवं प्रतिष्ठानों में विद्युतीय सजावट को प्राथमिकता देते हैं। इसको लेकर बाजारों में तरह तरह के एलइडी की लड़ियां एवं डिजाइनदार बल्ब की दर्जनों सिजनल दुकानें सजी हैं। जहां खरीदारों की अच्छी खासी संख्या दिखी। विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा चाइनिज सामानों के बहिष्कार की अपील के बाद भी बाजार में चाइनिज एलईडी की लड़ियों एवं बल्बों से बाजार पटा है।

प्रकाशोत्सव में दीपों एवं संठी का है विशेष महत्व

दीपावली साफ- सफाई एवं सजावट का जितना महत्व है उतना ही महत्व दीप एवं सनैया के डंठल(संठी) एवं बांग की रूई का भी है। चुकि दीपों को जहां घर की चौकठ एवं छतों पर सजाया जाता है वहीं संठी से निर्मित हुका-पाति को प्रत्येक घर की दीपों से जलाकर दरिद्रता को बाहर कर मां लक्ष्मी के घर आने की कामना कर घर के बाहर हुका-पाति को बाहर तक जलाया जाता है। वहीं बांग की रूई का उपयोग मिट्टी के दीपों में बाती के रूप में की जाती है। इस क्रम में घरों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में विधि विधान के साथ लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात वहां उपस्थित लोगों एवं शुभेच्छ़ुकों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है।

कैंडिल और घरकुंडों की भी लगी है दुकानें

दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीपों का घटते प्रचलन के कारण अब कैंडिल की बिक्री काफी बढ़ गई है। इसको लेकर बाजार में दर्जनों दुकानों में कई प्रकार के आकर्षक कैंडिलों की व्यापक पैमाने पर बिक्री हो रही है। वहीं महिलाओं खासकर लड़कियों द्वारा घर के आंगन या छतों पर मिट्टी या आजकल थर्मोकॉल से निर्मित घरकुडों का निर्माण कर पूजा अर्चना की जाती है। इसकों देखते हुए अब बाजारों में भी कई आकर्षक डिजाइनों के घरकुडों को बना कर बेचा जाता है। कई ठेला व रेहरी बाले भी कैंडिल व घरकुंडों को घर घर जाकर बेचते हैं।


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