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दिल्ली से बेगूसराय लौटने को गिरवी रख दी गांव में जमीन, साइकिल से तय किया 12 सौ किमी सफर

दिल्ली में रहकर मजदूरी कर रहे बेगूसराय के अमरजीत ने पत्नी के भेजे छह हजार रुपये से साइकिल खरीदी औऱ सात दिन का सफर तय कर घर पहुंचे। जानें प्रवासियों की परेशानी उनकी जुबानी।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 01:25 PM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 01:25 PM (IST)
दिल्ली से बेगूसराय लौटने को गिरवी रख दी गांव में जमीन, साइकिल से तय किया 12 सौ किमी सफर
दिल्ली से बेगूसराय लौटने को गिरवी रख दी गांव में जमीन, साइकिल से तय किया 12 सौ किमी सफर

बलबंत चौधरी, बेगूसराय। दिल्ली में मेहनत-मजदूरी कर परिवार को सुखी रहने का सपना देखने वाले अमरजीत के पास जो कुछ जमा पूंजी थी, वह लॉकडाउन में खत्म हो गई। गनीमत रही कि मकान मालिक ने कमरे का किराया नहीं लिया, बल्कि कई दिन भोजन भी दिया। खाने के लाले पड़े तो भी हिम्मत नहीं हारी। पत्नी को फोन कर घर लौटने के लिए साइकिल खरीदने वास्ते जमीन गिरवी रखने को कहा, ना-नुकुर पर उसे हिम्मत दी। घर लौटकर मजदूरी कर खेत छुड़वा लेने की बात कही तो पत्नी ने सुन ली और जमीन गिरवी रख पैसा भेजा। दिल्ली से 1200 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय कर लौटे अमरजीत के चेहरे पर थकान नहीं, मुस्कान है। खुशी-खुशी क्वारंटाइन सेंटर में वह अब परदेस न जाने की बात कह रहा है।

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आश्वासन मिला पर नहीं मिली मदद

अमरजीत को मलाल है कि कोरोना संकट में दूसरे राज्यों में काम करने गए प्रवासी घोर आर्थिक पीड़ा झेल रहे हैं। छौड़ाही के क्वांरटाइन सेंटर आए शाहपुर निवासी अमरजीत ने बताया कि वह दिल्ली में मजदूरी करता था। लॉकडाउन में कामकाज बंद है। खाने-पीने के पैसे नहीं बचे थे। कई जानकारों को मदद के लिए फोन किया। आश्वासन मिला, लेकिन मदद किसी से नहीं। पैदल घर के लिए चला तो बॉर्डर से वापस कर दिया गया। 10 दिन पहले पत्नी को फोन कर सलाह दी तो उसने जमीन गिरवी रखकर छह हजार रुपये बैंक खाते में डाल दिए।

पहले भरभेट खाया खाना फिर खरीदी साइकिल

अमरजीत कहते हैं कि पैसा मिलते ही सबसे पहले राशन लेकर भरपेट खाना खाया। फिर, नई साइकिल खरीदी। उससे घर के लिए निकल गया। यूपी बॉर्डर पर रोककर जांच की गई। रास्ते में दर्जनभर जगहों पर स्क्रीङ्क्षनग हुई। वह स्वस्थ था, इसलिए मुहर मार आगे बढऩे दिया जा रहा था। साथ में गोरखपुर और देवरिया के भी दो दर्जन साइकिल यात्री थे। लेकिन, गोरखपुर के बाद कोई दरवाजे पर बैठने नहीं दे रहा था। गांव वाले खदेड़ देते थे। खाने की व्यवस्था नहीं, पानी पीकर काम चलाया। सात दिन की यात्रा के बाद गांव में परिवार से दूर से बात की। घर में नहीं गया कि स्वजन कहीं संक्रमित न हो जाएं। यहां चैन है। साइकिल को बेचकर कुछ दिन मजदूरी कर जमीन को छुड़वा लेंगे।


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