जयमंगला स्थानः यहां मां के सिद्धिदात्री व मंगला स्वरूप की होती है पूजा
बेगूसराय जिले के मंझौल में अवस्थित जयमंगला स्थान माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा के लिए चर्चित है। यहां सप्तशती पाठ की अपनी महत्ता है।
बेगूसराय [जेएनएन ]। देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार जयमंगला स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है। यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था। यह स्थान बेगूसराय जिले के मंझौल प्रखंड में अवस्थित है। यहां रक्तिम बलि की प्रथा नहीं है। पूरे नवरात्र यहां सप्तशती का पाठ चलता है जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है।
संपुट सप्तशती पाठ का है महत्व
शारदीय और वासंतिक नवरात्र में कलश स्थापना के पश्चात प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा संपुट शप्तशती पाठ किया जाता है। स्थानीय श्रद्धालु भी मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं। यहां विधि विधान के साथ बेलवा निमंत्रण एवं बलि दी जाती है। इसके पश्चात जागरण के बाद मां का दर्शन के लिए पट खुलता है। तब मां का खोंइछा भरने का कार्य आरंभ होता है। अंत में हवन कार्यक्रम का संपादन पंडितों द्वारा किया जाता है।
स्वतः प्राकट्य की है मान्यता
जयमंगलागढ़ स्थित माता जयमंगला परिसर के भग्नावशेषों व शिलालेखों से अनुमान लगाया जाता है कि यहां का मंदिर काफी पुराना है। इस मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति है। कहा जाता है कि भगवती सती के वाम स्कंध का पात यहां हुआ था। जिससे यह सिद्ध शक्तिपीठ है। माता का यह सिद्ध स्थल नवदुर्गा के नवम स्वरूप में विद्यमान है तथा सिद्धिकामियों को सिद्धि प्रदान करती है।
कहा जाता है कि मंगलारूपा माता जयमंगला किसी के द्वारा स्थापित नहीं, अपितु स्वतः प्रकट है। यहां देवी दानवों के निग्रह एवं भक्तजनों के कल्याण के लिए स्वत: निर्जन वन में प्रकट हुई थी।
फूल-अक्षत से ही प्रसन्न होती देवी
सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां रक्तविहीन पूजा होती है। माता पुष्प, जल, अक्षत तथा दर्शन पूजन से ही प्रसन्न होती है। बलि की प्रथा नहीं है। नवरात्रा में मंदिर परिसर में जप, पाठ पूजन से मनोवांछित फल मिलता है। पुष्प, अक्षत, जल से माता का पूजा कराते हैं। सालों भर मंगलवार तथा शनिवार को वैरागन को माता का पूजा भक्तजन करते हैं।
ऐसे पहुंचें मंदिर
मंदिर पहुंचने का रास्ता आसान है। बेगूसराय से होकर एसएच 55 के रास्ते नित्यानंद चौक मंझौल पहुंचें। यहां से गढ़पुरा पथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर भव्य जयमंगला द्वार से बाएं जयमंगलागढ़ है। हसनपुर-गढ़पुरा की ओर से भी जयमंगलागढ़ आने का रास्ता है।
पुजारी श्यामाकांत झा ने कहा, शारदीय नवरात्र मे मां की पूजा व दर्शन का विशेष महत्व है। यहां आने वाले हर श्रद्धालुओं की मानोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अन्य जिलों व प्रांतों के श्रद्धालु भी मां के दर्शन को आते हैं।
माता के दरबार में नियमित आने वाले भक्तों का कहना है कि यहां आकर मन्नतें मांगने वालों की मुरादें अवश्य पूरी होती हैं। नवरात्रा में तात्रिकों द्वारा विशेष रुप से पूजा कर सिद्धि प्राप्त करते हैं। इसलिए यहां के माता की पूजा का विशेष महत्व है।