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जिलाधिकारी ने दिया जांच का आदेश, हो गई लीपापोती

सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामले की किस तरह लीपापोती की जाती है इसका अच्छा उदाहरण शौचालय निर्माण में लाभुकों से की गई अवैध वसूली की जांच का मामला है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Jun 2019 03:57 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 03:57 PM (IST)
जिलाधिकारी ने दिया जांच 
का आदेश, हो गई लीपापोती
जिलाधिकारी ने दिया जांच का आदेश, हो गई लीपापोती

बेगूसराय । सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामले की किस तरह लीपापोती की जाती है, इसका अच्छा उदाहरण शौचालय निर्माण में लाभुकों से की गई अवैध वसूली की जांच का मामला है। इस मामले में डीएम ने जांच के आदेश दिए थे। परंतु डीएम के आदेश के बाद जांच में पूरे मामले की लीपापोती कर दी गई और कार्रवाई की बजाय अवैध वसूली को क्लीन चिट दे दी गई।

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क्या है मामला : मामला स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण को प्रोत्साहन राशि के भुगतान के लिए लाभुकों से अवैध वसूली का है। दो अक्टूबर 2018 को जब लक्ष्य के विरुद्ध शत प्रतिशत शौचालय निर्माण का दावा जिला प्रशासन ने किया था, तब जागरण ने इसकी पड़ताल शुरू की थी। पड़ताल के दौरान शौचालय निर्माण की प्रोत्साहन राशि भुगतान के लिए लाभुकों ने बिचौलिए द्वारा धड़ल्ले से राशि वसूली की शिकायत की थी। अधिकांश जगहों पर दो-दो हजार रुपये वसूल किए गए थे। इस मामले में मटिहानी प्रखंड के मटिहानी-2 पंचायत के वार्ड संख्या 11 में लाभुकों ने चार-चार हजार रुपये वसूल करने का आरोप लगाया था। डीएम ने बैठक में दिखाई थी वीडियो : मटिहानी-2 के लाभुकों द्वारा चार-चार हजार रुपये वसूल करने से संबंधित लाभुकों का वीडियो डीएम राहुल कुमार के आदेश पर कारगिल विजय भवन में आहूत बीडीओ, सीओ, आवास पर्यवेक्षक आदि की बैठक में प्रोजेक्टर के माध्यम से सार्वजनिक रूप से दिखाई थी। तब डीएम ने अधिकारियों की क्लास भी लगाई थी। उन्होंने इस मामले में डीडीसी को जांच के आदेश भी दिए थे। जानिए जांच का तरीका : मामले की जांच व कार्रवाई करने का तरीका जान आप चौंक जाईएगा। अधिकारियों ने इस मामले की गहन जांच की बजाय लाभुकों पर स्थानीय दबंग बिचौलिए से दबाव बनवा उनसे यह लिखवाया कि उन्होंने किसी प्रकार की राशि किसी को नहीं दी। मामले को रफा-दफा करने में वार्ड में शौचालय निर्माण के लिए प्रतिनियुक्त अधिकारी से लेकर प्रखंड के अधिकारी तक शामिल रहे। लोगों ने लाभुकों द्वारा लगाए गए आरोप को खारिज करने के लिए लाभुकों का वीडियो भी बनवाया। जिसमें उनसे यह कहलवाया गया कि उन्होंने रिश्वत के तौर पर कोई राशि नहीं दी। एकाध से यह कहलवाया गया कि उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए चार हजार रुपये चंदा दिए। इनसे कराई जांच : खास बात यह कि मामले की जांच किसी सक्षम अधिकारी की बजाय प्रखंड सांख्यिकी पदाधिकारी एवं बीआरसी में कार्यरत एक शिक्षक से कराई गई। उल्लेखनीय यह भी कि जिस पंचायत व वार्ड की जांच कराई गई, उसमें शौचालय निर्माण के लिए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को ही प्रतिनियुक्त किया गया था। जबकि बीडीओ खुद पूरे प्रखंड के प्रभार में थे। ऐसी स्थिति में यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने वरीय पदाधिकारी के विरुद्ध कनीय अधिकारी कितना निष्पक्ष जांच कर सकते हैं।

उठ रहे सवाल : सवाल यह कि मामले की जांच ऐसे कनीय अधिकारियों से कराना किस हद तक उचित है। सवाल यह भी कि जांच अधिकारी ने लाभुकों द्वारा दिए गए बयान के वीडियो की सत्यता की जांच की अथवा नहीं। सवाल यह भी कि किसने ली राशि और इस बंदरबांट में कौन-कौन शामिल रहे। परंतु मामले को दबाने के लिए इन बातों की जांच नहीं की गई। ताकि शासन व प्रशासन की बदनामी नहीं हो। परंतु जांच के इन तरीकों से यह सवाल तो उठता ही रहेगा कि सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार क्या इसी तरह की जांच से खत्म हो जाएगा। सवाल यह भी कि क्या शासन और प्रशासन दलाली प्रथा को बढ़ावा देना चाहता है। इन सवालों पर अब भी जांच जरूरी है। वर्जन

मामले की जांच प्रखंड सांख्यिकी पदाधिकारी एवं बीआरसी में कार्यरत एक शिक्षक से कराई गई। लाभुकों ने लिख कर दे दिया कि उनसे किसी तरह की राशि नहीं ली गई और इसी के साथ मामला समाप्त हो गया।

-भुवनेश्वर मिश्र,बीडीओ, मटिहानी

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