पबजी व फ्री फायर के पेंच में पतंगबाजी, कारोबार का मांझा ढीला
बेगूसराय हाल के दशकों तक गांव से लेकर शहर तक बच्चों व युवाओं में पतंगबाजी की शौक इस कदर हावी था कि हर जगह जाड़े की खिली धूप में पतंगबाजी के दांव- पेंच चला करते थे और बड़े बूढे भी दिलचस्पी लिया करते थे।
बेगूसराय : हाल के दशकों तक गांव से लेकर शहर तक बच्चों व युवाओं में पतंगबाजी की शौक इस कदर हावी था कि हर जगह जाड़े की खिली धूप में पतंगबाजी के दांव- पेंच चला करते थे और बड़े बूढे भी दिलचस्पी लिया करते थे। लेकिन डिजिटल दौर में बच्चों को पतंगबाजी की जगह पबजी व फ्री फायर जैसे आनलॉइन गेम के दांव पेंच ज्यादा भा रहा है। नतीजतन एक समय जोरों पर रहने वाला पतंग का धंधा मंदा पड़ गया है। हाल तक कुटीर उद्योग के रूप में विकसित पतंगबाजी का रोजगार अब समाप्ति के कगार पर है। कागज की जगह पालीथिन व स्थानीय निर्माण की जगह पटना व कोलकाता के बाजार पर निर्भरता बढ़ी है, जहां से बनी बनाई पतंग व मांझे मंगाए जा रहे हैं।
शहर के ठठेरी गली में बीते 10 साल से पतंग का कारोबार कर रहे राजकुमार साह व उनके रिश्तेदार अविनाश कुमार बताते हैं कि बच्चों व युवाओं के पतंगबाजी के प्रति क्रेज दिनों दिन घट रहा है। पहले साल भर बिक्री होती थी लेकिन अब बाजार एक माह तक के लिए सिमट गया है। हाल के चार पांच वर्षों में बेगूसराय में मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने का चलन बढा है जिस कारण कुछेक धंधा हो रहा है बाकी दिन कोई भूले बिसरे भी पतंग खरीदने नहीं आता। ठठेरी गली में पतंग के दो थोक विक्रेता के साथ कई खुदरा विक्रेता भी है, जो कोलकाता, पटना, बनारस समेत अन्य जगहों पर पतंग, मांझा व लटाईन मंगाते हैं। पतंग के थोक विक्रेता राजेन्द्र प्रसाद व रोहित कुमार भी पतंग के धंधे में दिनों दिन आ रही गिरावट की बात कहते हैं। खुदरा पतंग बेच रहे विजय दास की मानें तो मकर संक्रांति को लेकर थोड़ी भीड़ रही लेकिन उसके बाद धंधा मंदा ही रहा है। बच्चों में मिक्की माउस, मोटू पतलू जैसे कार्टून कैरेक्टर प्रिट वाले पतंग बच्चों को भा रहे हैं। पतंग एक रुपये से लेकर पांच रुपये तक उपलब्ध है वहीं मांझा पांच रुपये से लेकर 100 रुपये तक। बरेली के मांझे के नाम पर बाजार में नकली मांझे की भी बहुतायत है। बरेली का मांझा 150 से लेकर 200 रुपये तक बिक रहा है।