महिला हेल्प लाईन को खुद 'हेल्प' की दरकार
बांका। जिला में हर माह औसतन घरेलू ¨हसा व महिला उत्पीड़न से जुड़े एक दर्जन मामले दर्ज हो रहे हैं। जबकि
बांका। जिला में हर माह औसतन घरेलू ¨हसा व महिला उत्पीड़न से जुड़े एक दर्जन मामले दर्ज हो रहे हैं। जबकि इसके अलावा भी कई मामले थाने की चौखट पर भी नहीं पहुंच पाते हैं। जिससे आज भी यहां की 20 फीसद महिलाएं घरेलू ¨हसा व उत्पीड़न का दंश झेल रही है। इन प्रताड़ना से महिलाओं को निजात दिलाने के लिए जिला मुख्यालय में महिला हेल्पलाइन खोले गए है। जहां पीड़ित महिलाओं के मामलों की सुनवाई तीन दिनों के अंदर शुरू करते हुए उसे इंसाफ दिलाए जाने या समझौता कराए जाने का प्रावधान है। लेकिन यहां संसाधन के अभाव में महिला हेल्पलाइन को खुद हेल्प की दरकार पड़ गई है।
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प्रभार की बैसाखी पर हेल्पलाइन :
अधिकारियों के अभाव में 2009 से ही महिला हेल्पलाइन प्रभार की बैसाखी पर चल रहा है। यहां प्रभारी पदाधिकारी के तौर पर सीडीपीओ सुशीला धान को कार्यालय की कमान सौंपी गई है। लेकिन अपने कामों में व्यस्त रहने की वजह से वे नियमित मामले की सुनवाई के लिए यहां नहीं आ पाती हैं। जिससे पीड़ित महिलाओं की शिकायतों की सुनवाई में लंबा वक्त लग जाता है। अब तक पीड़ित 139 महिलाओं ने न्याय के लिए हेल्पलाइन का दरवाजा खटखटाया है। लेकिन, अधिकारी नहीं रहने से महज 53 पीड़ितों को ही न्याय मिल सका है। जबकि 2009-12 तक हेल्पलाइन एनजीओ के देख रेख में था। इसके बाद यह जिला प्रशासन के हाथ में इसका कार्य भार आ गया है। यहां महिलाओं की शिकायत परामर्शी अंजना भारती ही सुनती हैं।
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मामला दर्ज मामला निष्पादन
घरेलू ¨हसा 59 27
दहेज प्रताड़ना 17 07
द्वितीय विवाह 08 01
यौन शोषण 05 01
छेड़छाड़ 02 00
मोबाइल संबंधित छेड़छाड़ 01 01
अन्य 47 16
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कोट
केंद्र विगत आठ वर्षों से प्रभार में चल रहा है। इस कारण महिलाओं से जुड़ी कई मामले पदाधिकारी के अभाव में लंबित है। अधिकारी के आने से महिलाओं की समस्याओं की सुनवाई और तेज गति से होगी।
अंजना भारती, परामर्शी, महिला हेल्पलाइन