Move to Jagran APP

कुरमा कर्बला में मिट जाती है बिहार-झारखंड की दूरियां

बांका। कुरमा गांव के मिर्चनी नदी तट पर स्थित मुगलकालीन कुरमा कर्बला व ईदगाह में आज भी बिहार व झारखंड की दूरियां मिट जाती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 09:23 PM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 09:23 PM (IST)
कुरमा कर्बला में मिट जाती है बिहार-झारखंड की दूरियां
कुरमा कर्बला में मिट जाती है बिहार-झारखंड की दूरियां

बांका। कुरमा गांव के मिर्चनी नदी तट पर स्थित मुगलकालीन कुरमा कर्बला व ईदगाह में आज भी बिहार व झारखंड की दूरियां मिट जाती है। खासकर मुहर्रम के पहलाम का यहां अनोखा नजारा होता है। दोनों ही प्रांत के करीब तीस हजार से अधिक लोग यहां पहलाम करते हैं। जिसमें काफी संख्या में हिन्दू समुदाय के भी लोग शामिल होते हैं। सभी के पहुचने के बाद ही एक साथ पहलाम होता है। इस संदर्भ में शाही कर्बला कमेटी के अध्यक्ष परवेज आलम, करहरिया के सहादत हुसैन, मु खलील, मुखिया त्रिभुवन प्रसाद, सरपंच दीनबंधु दीनानाथ,भोला साह ने बताया कि कुरमा कर्बला में पहलाम का एक अनूठा रूप होता है। मुस्लिम समुदाय के साथ -साथ हिन्दू भी भारी संख्या में इसमें शरीक होते हैं। जो सद्भाव का प्रतीक होता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि 1949 में 52 मौजा के लोग अखाड़ा लेकर यहां पहलाम के लिए पहुंचते थे। इसी से इसके प्रति आस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। आजादी के पहले यहां पहलाम से दो दिन पूर्व ही अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था कर दी जाती थी।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.