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स्वच्छता व शराबबंदी का नारा बुलंद कर रहा मंदार

बांका। पौराणिक मंदार पर्वत समुद्र मंथन का मथानी बनने के कारण प्रसिद्ध है। पर पिछले दो सदी से सामाजिक बदलाव का झंडा बुलंद कर रहे मंदार की पहचान काफी कम लोगों के पास है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 10:27 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 10:27 PM (IST)
स्वच्छता व शराबबंदी का नारा बुलंद कर रहा मंदार
स्वच्छता व शराबबंदी का नारा बुलंद कर रहा मंदार

बांका। पौराणिक मंदार पर्वत समुद्र मंथन का मथानी बनने के कारण प्रसिद्ध है। पर पिछले दो सदी से सामाजिक बदलाव का झंडा बुलंद कर रहे मंदार की पहचान काफी कम लोगों के पास है। मकर संक्रांति पर वंदना पर्व की शुरुआत करने बिहार-झारखंड के अलावा नेपाल से आसाम तक के वनवासी मंदार पहुंचते हैं। मंदार पहुंचने वाले सभी वनवासी सफा संप्रदाय मनाने वाले हैं। सफा का मतलब साफ। यानि भक्तों की स्वच्छता के कारण की वे सफा कहलाए। यह स्वच्छता आंतरिक और बाह्य दोनों रहा। एक तो वे सफेद वस्त्र धारण करते हैं। दूसरा आंतरिक शुद्धता के लिए उनके अनुनायी मांसाहार और मदिरा से भी मुक्ति पाएं होते हैं। करीब दो सदी पूर्व ही संत चंदर दास ने सफा धर्म की स्थापना मंदार पर्वत पर की थी। जिसके अनुयायी शराब और मांसाहार की कौन पूछे लहसन और प्याज तक से दूरी बना कर रखते हैं। सफाई यानि स्वच्छ रहना भी उनके धर्म का हिस्सा है। सफा संप्रदाय की गुरुमाता रेखा सोरन बताती है कि सफा नाम में ही इसके अनुयायियों का सारा अर्थ छुपा है। वनवासी समाज काफी समय से मांसाहार और मदिरा के करीब रहा है। आदिवासी संथाल को इसी से मुक्ति दिलाने के लिए चंदर दास ने सफा संप्रदाय बनाया। इसे मानने वाले आदिवासी ही मंदार पहुंचते हैं।

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ठंड में जुटे वनवासी अब भी इससे दूर :

10 से 13 जनवरी तक मंदार की तलहटी में जुटने वाले करीब दो लाख सफा वनवासी स्वच्छता और शराबबंदी के नारे को अब भी बुलंद किए हुए हैं। जानकारों के मुताबिक वनवासी समाज के अधिकांश त्योहार में शराब की उपयोगिता उसकी आस्था से जुड़ी है। पर मंदार आने वाले सफा वनवासी सदियों से इससे दूर हैं। वे ठंडे पानी में मध्य रात्रि से स्नान कर खुले शरीर अनुष्ठान करते हैं। वे सफाहोड़ कहलाते हैं। स्नान-ध्यान से पूरे अनुष्ठान में वे करीब 24 घंटे तक वहां रहते हैं। इस दौरान मांस, मदिरा से लेकर कोई वर्जित सामग्री नहीं छूते हैं। मंदार पहुंचे हंसडीहा के बड़का सोरेन, साहबगंज की सूरजमुणी टुडू, हेमलाल हांसदा आदि बताते हैं कि सफा मनाने वाले शुरु से शराब विरोधी हैं। संथाल समुदाय को इसी से मुक्ति दिलाने के लिए उद्देश्य से सफा की नींव रखी गई थी। बिहार सरकार ने अब शराबबंदी और भारत सरकार ने स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाया है।


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