मंदार में तंबू के नीचे उमड़ा आस्था का समंदर
बांका। मंदार पापहरणी मेला में अब भी ठेठ गंवई आनंद और मस्ती दिख जाता है। खास कर सफा वनवासी की आस्था और आंनद देख सुखद आश्चर्य की अनुभूति होती है।
बांका। मंदार पापहरणी मेला में अब भी ठेठ गंवई आनंद और मस्ती दिख जाता है। खास कर सफा वनवासी की आस्था और आंनद देख सुखद आश्चर्य की अनुभूति होती है। मंदार की तलहटी में खड़ी सैकड़ों तंबू में पिछले तीन दिनों से आस्था का समंदर उमड़ रहा है। केवल सफा के दो लाख से अधिक अनुयायी वनवासी सोमवार सुबह तक पापहरणी का पवित्र स्नान कर चुके हैं। दूर-दूर से पहुंच रहा वनवासी का हर जत्था कम से कम एक दिन मंदार के पास व्यतीत करता है। इस दौरान पापहरणी स्नान बाद वे घंटों इसके तट पर पूजा आराधना करते हैं। इसके बाद अपने साथ लाए बांस, पुआल आदि के सहारे प्लास्टिक की तंबू तैयार करते हैं। इसके लिए झारखंड, उड़ीसा और बंगाल तक से बांस और पुआल आदि जरूरी सामान भक्त खुद ला रहे हैं। इसी तंबू के नीचे पिछले तीन दिनों से उनका अनुष्ठान जारी है। ध्यान, तप आदि तंबू के नीचे हो रहा है। जिस पर भगत ढोल, मांदर, झांझर पर आराधना कर रहे हैं। हर तंबू में आस्था का समंदर उमड़ा दिख रहा है। पाकुड़ के मुनीलाल हेम्ब्रम, जोसफ मरांडी, अमड़पाड़ा के बासुकी मुर्मू आदि ने बताया कि वे मरांग बुरु की अराधना के लिए यहां जुटते हैं। सभी देव देवता की पूजा कर वापस वापस लौटते हैं। इन वनवासी भक्तों की पूरी रात पर्वत के पास पेड़ के नीचे बीती। बस जमीन पर पुआल बिछा कर अपने साथ लाई कंबल तान कर आस्था की दो ठंड भरी रात बिता लिया। वैसे सोमवार को अधिकांश वनवासी पूजा अर्चना के बाद वापस लौटने लगे हैं।