500 की जगह अब 15 हजार में बन रही दुर्गा की प्रतिमाएं
बांका। दुर्गा पूजा की तैयारी अब शहर से लेकर गांव के गलियों में दिखने लगा है। लगातार बढ़ रही महंगाई का प्रभाव अब धर्म-कर्म पूजा-पाठ पर भी पड़ने लगा है। जिसके कारण अब मंदिरों में होने वाले पूजा के लिए मूर्ति निर्माण से लेकर परिधान तक के दामों में कई गुना ज्यादा इजाफा हुआ है।
बांका। दुर्गा पूजा की तैयारी अब शहर से लेकर गांव के गलियों में दिखने लगा है। लगातार बढ़ रही महंगाई का प्रभाव अब धर्म-कर्म पूजा-पाठ पर भी पड़ने लगा है। जिसके कारण अब मंदिरों में होने वाले पूजा के लिए मूर्ति निर्माण से लेकर परिधान तक के दामों में कई गुना ज्यादा इजाफा हुआ है।
जयपुर दुर्गा मंदिर में प्रतिमा निर्माण कर रहे मूर्तिकार बासकी तुरी ने बताया कि इस बार 15 हजार में मूर्ति बनाने का सौदा तय हुआ है। रंग परिधान सजावट सहित अन्य सामग्री अलग से संस्था को देना होता है। पहले की अपेक्षा अधिक मजदूरी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि चावल दाल आटा के भाव अभी तो आसमान छू रहा है। अन्य सामान की अपेक्षा मजदूरी अब भी काफी कम है।
-------------
आजादी के पहले से स्थापित हो रही जयपुर में दुर्गा प्रतिमा
मंदिर के सबसे पुराने संचालक अवकाश प्राप्त शिक्षक जनार्दन मालाकार ने बताया कि आजादी के पहले डेढ़ सौ वर्ष पूर्व बंगाल से आए घटक जाति ने जयपुर में खुद से मूर्ति का निर्माण कर पूजा शुरू किया था। इसके बाद बंगाली परिवार ने देवघर के मूर्तिकार मिट्ठू पंडित से पांच सौ में दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कराया था। दो दशक बाद मोहनपुर दिल्ली घाट निवासी भिट्ठल तुरी ने छह हजार में मूर्ति बनाना प्रारंभ किया। इसके बाद उसके पुत्र ने दस हजार और फिर उनका नाती बासकी तुरी अब 15 हजार में प्रतिमा निर्माण कर रहा है। जबकि मूर्ति का परिधान (डाक) का अब बीस हजार कीमत हो गया है।
-------------
विरासत में मिली है मूर्तिकार की कला :
मूर्तिकार बासकी तुरी ने बताया कि मूर्ति बनाने की कला उन्हें पुरखों की विरासत से मिली है। बताया कि देवघर, दुमका, गोड्डा ही नहीं बल्कि बांका, भागलपुर, बंगाल सहित झारखंड के अन्य जिलों में इनकी कारीगीरी काफी चर्चित है।