हत्या पर भारी पड़ती है सड़क दुर्घटनाओं में मौत
बांका। पिछले दस साल में जिला की चमचमाती सड़कों की चकाचौंध ने करीब आठ सौ लोगों को मौत की नींद सुला दिया है।
बांका। पिछले दस साल में जिला की चमचमाती सड़कों की चकाचौंध ने करीब आठ सौ लोगों को मौत की नींद सुला दिया है। यह मौत अपराधियों की हत्या, लूट की हत्या, दहेज हत्या, पारिवारिक विवाद में हत्या, जमीन विवाद के हत्या को मिलाकर कर भी भारी है।
पुलिस आंकड़े के मुताबिक पिछले साल जिला में विभिन्न प्रकार की 75 हत्या दर्ज है, जबकि सड़क दुर्घटना में मौत का आंकड़ा इसे पार कर 82 पार कर गया है। इसके पहले सालों में भी हत्या पांच दर्जन से सात दर्जन के बीच स्थिर है तो सड़क पर मौत की संख्या भी छह से सात दर्जन तक पार हो जा रहा है। इस साल लॉकडाउन में जब वाहनों का परिचालन काफी कम हुआ तब भी हत्या पर दुर्घटना की मौत का आंकड़ा भारी है। छह महीने में यह कुछ कम जरूर हुआ, मगर हत्या पर हर हाल में भारी पड़ गया। लॉकडाउन में ही अमरपुर रोड के महगामा मोड़ के पास बाइक दुर्घटना में एक बाइक ही बाइक पर सवार तीन युवक की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी। बांका की सड़कों पर पिछले तीन-चार साल के दौरान दारोगा, पुलिस जवान, आधा दर्जन शिक्षक, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, छात्रों तक की मौत हो चुकी है। दुर्घटना का कुछ स्पॉट भी है। जहां बार-बार की दुर्घटना मौत बुला रही है। रैनिया जोगडीहा की मुखिया महगामा मोड़ के पास ही मौत की शिकार हो गई। उनका भाई पंचायत समिति सदस्य भी इसके शिकार बन गए थे। दो दिन पूर्व ही शिक्षिका सुमित्रा रविदास की मौत हो गई। उनके पति गंभीर रूप से जख्मी हैं। पूरा परिवार इस कार दुर्घटना में जख्मी है। मंदार पर्वत के समीप हंसडीहा रोड का पांच किलोमीटर का इलाका भी लगातार सड़क दुर्घटना में मौत का डेंजर जोन बन गया है। रजौन और बौंसी में सड़क दुर्घटना दारोगा और जवान को मौत का शिकार बना चुका है, जबकि अमरपुर, रजौन, बौंसी में छात्र की तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आ जाने से मौत हो गई है। पिछले सप्ताह ही एक सामाजिक कार्यकर्ता बौंसी में ट्रक की ठोकर से मौत के शिकार बन गए। महीने भर के अंदर बौंसी में सोमवार को एक व्यवसायी इसके शिकार बने।
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2020 में हत्या व सड़क दुर्घटना में मौत
माह हत्या दुर्घटना में मौत
अक्टूबर- 07 - 06
सितंबर- 08- 08
अगस्त- 07- 07
जुलाई- 04- 11
जून- 10-10
मई- 10- 05