जेल सिपाही बना जेलर, महिला सिपाही बनीं दारोगा
बांका। बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग ने दरोगा (अवर निरीक्षक) परिचारी एवं सहायक अधीक्षक (कारा) के पदों पर के लिए अभ्यर्थियों का अंतिम परिणाम घोषित कर दिया है।
बांका। बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग ने दरोगा (अवर निरीक्षक), परिचारी एवं सहायक अधीक्षक (कारा) के पदों पर के लिए अभ्यर्थियों का अंतिम परिणाम घोषित कर दिया है। परिणाम आते ही किसी को खुशी तो किसी को निराशा हाथ लगी। वहीं इस बांका के मंडल कारा में कार्यरत जेल सिपाही यानी कक्षपाल अभिषेक सिंह सफलता पाकर जेल सहायक अधीक्षक के पद पर कामयाबी पायी। यानी जेल सिपाही रहते हुए उसी विभाग के अधिकारी की कुर्सी प्राप्त की। इसी जेल की महिला सिपाही प्रीति कुमारी व चंदन कुमार एसआइ बने।
सहायक अधीक्षक बने अभिषेक कुमार सिंह का मूल घर सिवान जिला के कोरारा है। उनके पिता का नाम अनिल सिंह है। एसआइ बने चंदन पिता ब्रह्मदेव मंडल सुपौल जिला के खापसदानंदपुर गांव के हैं, जबकि, प्रीति कुमारी पिता गोविद मंडल भागलपुर जिला के बंशीपुर गांव के रहने वाली है। सफलता से गदगद जेल अधीक्षक सुजीत कुमार राय ने पूरे जेल में मिठाई बंटवाने की बात कही। साथ ही एक लघु आयोजन कर जेल के सहायक अधीक्षक बने अभिषेक सिंह को फूल माला पहनाकर सम्मानित किया। जेल अधीक्षक ने कहा कि जेल के तीन सिपाहियों का अधिकारी के पद पर चयनित होना, सचमुच गौरव व प्रेरणा की बात है। चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. एसके सुमन ने तीनों सफल हुए प्रतिभागियों के संदर्भ में कहा कि मेहनत के बल पर मुकाम हासिल किया। जेल उपाधीक्षक निर्मल कुमार प्रभात ने कहा कि मेहनत करने वालों की सफलता हमेशा कदम चूमती है।
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राजारामपुर गांव के राकेश ने किया दरोगा परीक्षा उत्तीर्ण
संवाद सूत्र, बेलहर (बांका) :प्रखंड क्षेत्र के पिछड़े गांवों की श्रेणी में रहे राजारामपुर गांव निवासी इंद्रदेव पंडित के पुत्र राकेश कुमार ने दरोगा परीक्षा उत्तीर्ण कर गांव के साथ साथ प्रखंड का नाम रौशन किया है। राकेश के पिता प्राइवेट शिक्षक हैं। मां गृहिणी है। वह तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर है। बड़ा भाई सेना में कार्यरत है। छोटा भाई अध्ययनरत है। बेटे की इस कामयाबी से स्वजनों के साथ-साथ ग्रामीणों में खुशियों का माहौल है। राकेश ने प्राथमिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से ग्रहण किया है। मैट्रिक और इंटर की परीक्षा जिलेबिया मोड़ से उत्तीर्ण किया है। आगे की पढ़ाई पटना से पूरी किया है। वह पिछले तीन वर्षों से पटना में रहकर तैयारी कर रहा था। राकेश ने अपनी कामयाबी का श्रेय माता-पिता एवं स्वजनों और गुरुओं को दिया है।