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बिहार के इस मेले में बिकती भूत भगाने वाली छड़ी! विश्‍वास नहीं तो जरूर आइए मंदार

बिहार के बांका में मकर संक्रांति के अवसर पर मंदार मेला लगता है। इसमें भूत भगाने वाली छड़ी का खूब कारोबार होता है। इस आस्‍था से जुड़ी जानकारी के लिए जरूर पढ़ें खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 10:37 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 10:58 PM (IST)
बिहार के इस मेले में बिकती भूत भगाने वाली छड़ी! विश्‍वास नहीं तो जरूर आइए मंदार
बिहार के इस मेले में बिकती भूत भगाने वाली छड़ी! विश्‍वास नहीं तो जरूर आइए मंदार

बांका [राहुल कुमार]। क्‍या आपने भूत भगाने वाली छड़ी देखी है। लोगों की आस्‍था है कि इस छड़ी के डर से भूत भाग जाते हैं। यह छड़ी नहीं देखी तो आइए बिहार के मंदार मेला में। हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर बांका के मंदार मेले में भूत भगाने वाली छडि़यां खूब बिकती हैं। इस साल की बात करें तो मकर संक्रांति पर लगे मंदार लोक मेले में देखते ही देखते भूत भगाने वाली पांच हजार छडिय़ां बिक गईं। इन्हें मुख्यत: 11 से 14 जनवरी तक पापहरणी सरोवर में स्नान करने पहुंचे भक्तों ने खरीदी।

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भूत भगाने वाली बेंत की ये छडिय़ां ओडिशा के जंगलों से मंगाई गईं थींं। उन्हें पटना के कुछ व्यापारियों के माध्यम से मंदार मेले में पहुंचाया गया था। मंदार में मौजूद अधिकांश दुकानदारों के पास जनवरी के पहले सप्ताह से ही यह छड़ी पहुंच चुकी थी। नाश्ता-पानी की दुकानों से लेकर खिलौने तक की  दुकानों पर भी डेढ़ हाथ लंबी बेंत की छड़ी बिक्री के लिए उपलब्ध थी।

तारापुर के एक दुकानदार ने बताया कि आदिवासी लोग पूजा-अराधना और झाड़-फूंक में इसका प्रयोग करते हैं। इस साल छड़ी की कीमत 80 रुपये थी।

मेला पहुंचने वाली सफा अनुयायियों की हर टोली के गुरु ने कम से कम एक छड़ी अवश्य खरीदी। पाकुड़ के रमेश सोरेन, अमड़ापाड़ा के मुनीलाल हेम्ब्रम, बाबूराम मुर्मू आदि ने बताया कि इस पवित्र छड़ी के प्रति उनकी वर्षों से आस्था बनी हुई है। वे पूजा-पाठ में इसका प्रयोग करते हैं। मकर संक्रांति के दिन मंदार के पापहरणी सरोवर में स्नान के बाद सबसे पहले इस नई छड़ी की पूजा करते हैं। उसके बाद वे उसे घर ले जाते हैं और वहां पूजा-पाठ, झाड़-फूंक व बुरी आत्मा के प्रकोप को कम करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं।

बिहार-झारखंड के अनेक गांवों में पहुंची छड़ी

पापहरणी स्नान को पहुंचे जानकारी के अनुसार, आदिवासियों के अलावा  झाड़-फूंक करने वाले अन्य ओझा-गुनियों (तांत्रिकों) ने भी इसकी खरीदारी कीं। इससे यह छड़ी बिहार और झारखंड के कई गांवों में पहुंच चुकी है।


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