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यक्ष्मा मरीजों की जानकारी छिपाने वाले नर्सिग होम पर शिकंजा

बांका। अब यक्ष्मा मरीजों का इलाज कर रहे निजी नर्सिग होम को मरीजों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग से साझा करनी होगी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 09:48 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 10:53 PM (IST)
यक्ष्मा मरीजों की जानकारी छिपाने वाले नर्सिग होम पर शिकंजा
यक्ष्मा मरीजों की जानकारी छिपाने वाले नर्सिग होम पर शिकंजा

बांका। अब यक्ष्मा मरीजों का इलाज कर रहे निजी नर्सिग होम को मरीजों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग से साझा करनी होगी। इनके अलावा यक्ष्मा (टीबी) की दवा बेचने वाले दुकानदारों को भी मरीजों की सूची विभाग को देनी है। विभाग से टीबी मरीजों की जानकारी छिपाने वाले वैसे निजी नर्सिंग होम के चिकित्सक और दवा दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने ये कदम सभी टीबी मरीजों की जानकारी हासिल करने के लिए उठाए हैं। जिससे टीबी को पूरी तरह नियंत्रित की जा सके।

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2025 तक टीबी मुक्त होगा भारत :

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने की रणनीति तैयार की है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा पारित आदेश में यह प्रावधान लागू कर दिया है कि किसी भी निजी नर्सिंग होम में टीबी का इलाज कराने वाले या मेडिकल स्टोर से इसकी दवा लेने वाले मरीजों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज 1223 टीबी मरीज

स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में जिले भर के महज 1223 टीबी मरीज की संख्या दर्ज है। इसमें 926 नए मरीज हैं, जबकि यहां इसके आंकड़े और भी ज्यादा हैं। निजी नर्सिग होम में इलाज कराने की वजह से कई मरीजों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग तक नहीं पहुंच पा रही है।

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जागरुकता की कमी बन रही बाधा :

सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी टीबी उन्मूलन में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। जानकारी के अभाव में लोग बीमारी के शुरुआती दौर में अपना इलाज नहीं करा पाते हैं। कुछ लोग समाजिक दबाव के कारण इस बीमारी को छिपाने की कोशिश करते हैं, जबकि कुछ मरीज कोर्स के मुताबिक नियमित दवा का सेवन नहीं करते। जिस कारण ये बीमारी समय के साथ तेजी से बढ़कर खतरनाक हो जाती है।

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नियमित उपचार से मिलेगी निजात :

नियमित इलाज से टीबी पूरी तरह ठीक हो सकता है। तीन वर्ग में बांटे गए इस बीमारी के वर्ग एक में नए मरीज आते हैं, जिनके उपचार की अवधि छह माह है। दूसरे वर्ग में वैसे मरीज हैं जो पूर्व में बीच में ही दवा छोड़ चुके हैं। इसके उपचार की अवधि नौ माह है। जबकि टीबी से गंभीर रूप से ग्रसित मरीज के उपचार में 24 महीने का वक्त लगता है।

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बरतें सावधानी :

दो सप्ताह से अधिक खांसी होने, नियमित बुखार रहने, वजन में कमी आने, रात में पसीना आने आदि टीबी के लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में तुरंत स्थानीय सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर अपनी जांच कराएं। यहां टीबी की जांच के लिए अत्याधुनिक मशीन उपलब्ध हैं।

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कोट

टीबी मरीजों का इलाज कर रहे निजी नर्सिग होम के चिकित्सकों एंव दवा दुकानदारों को मरीज की सारी जानकारी विभाग से साझा करने के निर्देश जारी किया गया है। ऐसा नहीं करने वाले निजी नर्सिग होम के चिकित्सक एवं दवा दुकानदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

-सुनील चौधरी, नोडल पदाधिकारी, यक्ष्मा विभाग


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