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मुद्दे हो रहे गायब, जाति समीकरण का बोलबाला

बांका। बिहार में विधानसभा चुनाव हो या पंचायत चुनाव आज भी चुनाव की बिसात जातीय समीकरण पर बिछती है। पंचायत चुनाव में जाति की खास भूमिका होती है। प्रत्याशी जाति के आधार पर ही अपनी जीत हार तय करते हैं। इसमें अभी से ही जातीय बिसात बिछने लगी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 09:26 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 09:26 PM (IST)
मुद्दे हो रहे गायब, जाति समीकरण का बोलबाला
मुद्दे हो रहे गायब, जाति समीकरण का बोलबाला

बांका। बिहार में विधानसभा चुनाव हो या पंचायत चुनाव आज भी चुनाव की बिसात जातीय समीकरण पर बिछती है। पंचायत चुनाव में जाति की खास भूमिका होती है। प्रत्याशी जाति के आधार पर ही अपनी जीत हार तय करते हैं। इसमें अभी से ही जातीय बिसात बिछने लगी है।

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सभी लोग पंचायत का प्रतिनिधी अपने जाति के हाथों में देने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। हर कोई इस चुनाव में एक पद से अपनी जाति के एक ही प्रत्याशी हो इसके लिए जोड़-तोड़ की राजनीति करते हैं। अपनी जाति के प्रत्याशी को जिताने के लिए दूसरी जातियों से भी समन्वय स्थापित किया जा रहा है। यदि किसी एक जाति के लोगों को मुखिया का पद चाहिए तो वे अन्य जाति के लोगो को अन्य पद देने को तैयार हो रहे हैं। पिछले चुनाव की तरह इस बार चुनाव में जातीय समीकरण के सामने गांव के विकास सहित अन्य मुद्दे गायब हो रहे हैं। गांवों में चौक-चौराहों पर लगने वाली चौपाल और चाय पान की दुकान पर प्रत्याशियों की जीत हार का आंकड़ा जातीय समीकरण पर ही लगाया जा रहा है। प्रत्याशियों को अपने जाति के कितने वोट है और अन्य किस जाति का समर्थन प्राप्त है। इसपर अधिक चर्चा हो रही है। लोगों का मानना है कि जाति के लोग जितना गोलबंद होंगे उसका लाभ उनके प्रत्याशियों को मिलेगा। जानकारों की माने तो जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जाएगा जाति का समीकरण अपने प्रत्याशियों के प्रति बढ़ता जाएगा। यह उस जाति के लिए चुनाव जिताने में सहायक होती है।

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क्षेत्र में प्रत्याशियों का चुनावी दौरा हुआ तेज

24 सितंबर को पहले चरण में धोरैया और दूसरे चरण में 29 सितंबर को बांका प्रखंड में चुनाव होना है। इसको लेकर चुनावी सरगर्मी काफी तेज हो गई है। सभी प्रत्याशी वोटरों को अपने-अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। जनप्रतिनिधी वोटरों की हर मांग को पूरा करने में लगे है।


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