भादो में जेठ वाली धूप, किसान हताश
बांका। भादो का आखिरी सप्ताह सच रहा है। भादो का सीधा अभिप्राय कादो-कीचड़ और बेहिसाब बारि
बांका। भादो का आखिरी सप्ताह सच रहा है। भादो का सीधा अभिप्राय कादो-कीचड़ और बेहिसाब बारिश से होता है। पर मौसम का तेवर देखिए। सुबह छह बजे ही सूर्य देव आग बरसाने को आतुर हो जाते हैं। सुबह सात-आठ बजे से खेत और बाहर निकलने वालों तक की हिम्मत जवाब दे जाती है। धूप ऐसी की जेठ भी शरमा जाए। आसमान में कहीं बादलों का कतरा तक नहीं दिख रहा।
यह एक दो दिन का हाल नहीं, बल्कि पूरे भादो का इस बार यही नजारा रहा। शुरुआती दिनों में तो आसमान में कभी कभी बादल देख बारिश की उम्मीद बंध रही थी। पर अब बात उल्टी हो चुकी है। लगातार धूप से धान की फसल का बुरा हाल है। खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई है। पानी के अभाव में कई इलाकों में धान की फसल बर्बाद होने लगी है। किसान परेशान हैं। किसी तरह डीजल इंजन से ¨सचाई कर फसल को ¨जदा रखने का प्रयास हो रहा है। प्रगतिशील किसान अभयकांत झा बताते हैं कि इस बार का मौसम पूरी तरह धान की खेती के विपरीत रहा है। शुरु में कम बारिश से रोपनी भी प्रभावित हुई। रोपनी के बाद लोगों को समय-समय पर अच्छी बारिश की उम्मीद थी। पूरे देश में बारिश हुई, भागलपुर तक बाढ़ पर बांका में लोग पानी को तरस रहे हैं। निश्चित रूप से मौसम के इस हालत में बांका में धान का उत्पादन अब एक तिहाई तक प्रभावित हो जाएगा।
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पूरा सीजन बारिश की दगाबाजी
बरखा रानी इस खरीफ सीजन के शुरुआती महीने से ही रूठी रही। पहले जून में सामान्य से कम बारिश हुई। इसके जुलाई में सौ मिमी तक कम बारिश हुई। रोपनी के महत्वपूर्ण अगस्त में भी दगाबाजी कर बरखा कम बरसी। किसानों को आखिरी उम्मीद सितंबर यानी ¨हदी के भादो महीने से थी। भादो में 25 दिन में केवल एक दिन अच्छी बारिश हुई है। इसके बाद बूंदा बांदी भी नसीब नहीं है। बिन पानी धान की हालत क्या हो रही है, यह बस किसानों का दिल ही बता पा रहा है। नहरी इलाकों में स्थिति किसी तरह नियंत्रण में है पर असि¨चत क्षेत्र के धान किसान हताश हो गए हैं। उन्हें अब पूंजी लौटना भी मुश्किल लग रहा है।