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नवजातों के लिए काल कोठरी बना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

बांका। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नवजातों के लिए काल कोठरी बनकर रह गया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 07:48 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 07:48 PM (IST)
नवजातों के लिए काल कोठरी बना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
नवजातों के लिए काल कोठरी बना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

बांका। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नवजातों के लिए काल कोठरी बनकर रह गया है। विभाग की कलई इसी से खुल रही है कि एक साल में 3893 प्रसव में 56 बच्चे की मौत हो गई। हंगामा, तोड़फोड़ व जांच के नाम पर सभी फाइलें दवा दी गई। सीएस जांच के लिए कमेटी तो गठित करते हैं, लेकिन परिणाम कार्यालय से बाहर नहीं निकलने देते हैं। ज्ञात हो कि लगभग ढाई लाख की आबादी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर है। इसमें एक भी महिला चिकित्सक के साथ नियमित चिकित्सक नहीं रहने से प्रसव भगवान भरोसे हो रहा है। जिससे एक वर्ष के दौरान 56 नवजात शिशुओं की मौत जन्म के साथ ही हो चुकी है। ग्रामीण क्षेत्र में अस्पताल होने के कारण यहां की अधिकांश आबादी इसी पर ही आश्रित है। चिकित्सक के अभाव में सर्दी, सिर दर्द, खासी, बुखार का ही इलाज होता है। अगर कहीं से किसी भी तरह के दुर्घटना के शिकार लोग पहुंचते हैं तो उसे तुरंत रेफर कर दिया जाता है।

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पिछले वर्ष अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक में कुल 3893 प्रसव हुआ। जिसमें कुल 56 बच्चो की मौत हो गई।अस्पताल में प्रत्येक महीने 250 से 300 महिलाओं का प्रसव होता है। जिसमें कम से कम एक और अधिकतम नौ नवजात धरती पर आने से पहले ही गर्भ में दम तोड़ देता है। कई बार तो चिकित्सा में लापरवाही को लेकर हंगामा व तोड़फोड़ की घटना हो चुकी है। इस महीने भी एक नहीं बल्कि दो-दो शिशु के जन्म लेते ही मौत हो गई। इससे अस्पताल से भी सुरक्षित प्रसव के भरोसा टूटने लगा है।

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केस स्टडी एक

10 अप्रैल को महमदपुर गांव निवासी अश्विनी सिंह की पत्नी चंदा देवी ने बच्चे को जन्म दिया। लेकिन चिकित्सा सही से नहीं होने के कारण बच्चे ने दम तोड़ दिया।

केस स्टडी दो

शुक्रवार को अटपहरा गांव निवासी अरविन्द साह की पत्नी सविता देवी ने चार पुत्री के बाद पांचवे पुत्र को जन्म दिया। जिसका वह मुंह भी नहीं देख सकी। अस्पताल में भी सुरक्षित प्रसव की भी कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाने से गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे है।

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अस्पताल में कितने चिकित्सक के पद है रिक्त :

30 बेड वाले इस अस्पताल में नियमित एवं अनुबंध चिकित्सक के कुल छह पद हैं। लेकिन एक भी नियमित चिकित्सक नहीं है। अनुबंध पर एक चिकित्सक डॉ. प्रेमराज बहादुर के भरोसे अस्पताल चल रहा है। जबकि अस्पताल के कार्यो के संचालन को लेकर बाराहाट अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. श्यामसुंदर दास को धोरैया अस्पताल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।

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कम्पाउंडर ड्रेशर सहित दर्जनों पद रिक्त :

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कम्पाउंडर, ड्रेशर, एएनएम, फार्मासिस्ट आदि जैसे कई पद पर एक भी कर्मी के नहीं होने से दवा विरतण के साथ साथ जख्मी मरीजों के मरहम पट्टी में काफी दिक्कतें होती है।

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माहवार मौत के आंकड़े :

अप्रैल 2018 में छह बच्चे की मौत हो गई। जबकि मई में एक, जून में नौ,जुलाई में छह,अगस्त में तीन, सितम्बर में व अक्टूबर में चार-चार, नवम्बर में आठ, दिसम्बर में दो,जनवरी में छह, फरवरी में चार और मार्च में एक की मौत हो गई है।

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कोट

प्रसव के दौरान नवजात शिशुओं के मौत का सबसे बड़ा कारण बच्चे की थैली फट जाना एवं बच्चे के पेट पर दवाब की वजह से वह मल त्याग देता है। और वही गंदगी मुंह और नाक के जरिए फेफड़ा में जाने से उस बच्चे की मौत हो जाती है।

डॉ. श्यामसुंदर दास, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी


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