पार्टी, जाति के बाद अब विकास की तरफ बढ़े मतदाता
बांका। भारतीय लोकतंत्र की जड़ें धीरे-धीरे काफी मजबूत हो रही है। पहले और अब के मतदान की स्थिति में काफ
बांका। भारतीय लोकतंत्र की जड़ें धीरे-धीरे काफी मजबूत हो रही है। पहले और अब के मतदान की स्थिति में काफी बदलाव आया है। आजादी के तुरंत बाद मतदाता स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल लोगों को नेता मानते थे। साथ ही इस आंदोलन की अगुवाई कर रही कांग्रेस को अपनी पार्टी। हाईस्कूल के सेवानिवृत शिक्षक नंदेश्वर झा बताते हैं कि हमलोगों को जहां तक याद है, पहले के तीन-चार लोकसभा तक अधिकांश मतदाता ने पार्टी देखकर कर ही कांग्रेस को मतदान किया। लेकिन, जेपी आंदोलन के बाद देश की स्थिति बदली। मतदान का ट्रेंड भी बदला। मतदाता की नई पीढ़ी सामने आयी। उनके मन में अलग-अलग पार्टियों के प्रति आस्था और विश्वास जगने लगा। इस बीच बिहार-यूपी के इलाकों में खासकर मतदान में जातिवाद भी हावी हो गया। मतदान के लिए दल और प्रत्याशी की जाति देखी जाने लगी। वे बताते हैं कि अब मतदान के लिए यह आधार भी कमजोर हो रहा है। हम मजबूत लोकतांत्रिक देश के नाते अब जाति के साथ विकास को भी तवज्जो दे रहे हैं। खास कर 21वीं सदी की शुरुआत के बाद मतदान में विकास का पैमाने बड़ा मुद्दा बनने लगा। जाति मतदान का एक आधार अब भी है। लेकिन, अगर विकास की बड़ी लकीर खींची तो मतदाता जाति से बाहर आकर भी मतदान को मजबूर हो रहा है। मतदान में इसकी स्थिति लगातार सु²ढ़ हो रही है। मतदान के लिए उनका भी तब और अब यही आधार रहा। दैनिक जागरण परिवार ऐसे बुर्जुग मतदाता के शतायु होने की कामना करता है।