बिन डॉक्टर कैसे होगी स्वस्थ्य समाज की परिकल्पना पूरी
स्वस्थ्य समाज का सपना अधूरा है। आधी आबादी को अब भी इलाज सुलभ नहीं है।
औरंगाबाद। स्वस्थ्य समाज का सपना अधूरा है। आधी आबादी को अब भी इलाज सुलभ नहीं है। इलाज के लिए महिलाएं तड़पती रहती हैं परंतु उन्हें कोई देखता नहीं है। उम्मीदें बरकरार है परंतु हालात यह है कि गांवों से महिलाओं को प्रसव कराने औरंगाबाद सदर अस्पताल आना पड़ता है। जिले में चिकित्सकों के 233 पद स्वीकृत हैं परंतु मात्र 50 चिकित्सक कार्यरत हैं। जिले में आधी आबादी के लिए मात्र चार चिकित्सक उपलब्ध हैं। सदर अस्पताल में स्वीकृत पर 32 है परंतु मात्र छह चिकित्सक के सहारे सेवा चल रही है। सोचा जा सकता है कि जब चिकित्सक ही नहीं हैं तो स्वस्थ्य समाज का सपना पूरा कैसे होगा। सदर अस्पताल को आइएसओ का मान्यता प्राप्त है परंतु यहां न आइसीयू है, न दवा और न डाक्टर। चिकित्सक मरीजों को इलाज कराने के बजाय रेफर का का पुरजा थमा देते हैं। चिकित्सा सेवा के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सदर अस्पताल में एक्सरे एवं अल्ट्रासाउंड की सुविधा आठ माह से बंद है। गरीब मरीज इलाज के लिए तड़पते रहते हैं। कई मरीज तो बगैर चिकित्सा कराए वापस लौट जाते हैं। रेफरल अस्पताल एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में महिला चिकित्सक नहीं है। सदर अस्पताल में तीन एवं रेफरल अस्पताल हसुपरा में मात्र एक महिला चिकित्सक डॉ. मीना राय हैं। जिले में महिला चिकित्सकों के स्वीकृत पद 20 हैं कार्यरत मात्र चार। ओबरा, मदनपुर, रफीगंज, बारुण, कुटुंबा, नवीनगर, गोह, देव एवं दाउदनगर में महिला चिकित्सकों का अभाव है। सदर अस्पताल में सर्जन, हड्डी एवं बच्चा जैसे विभाग में चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं। गांवों से मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं परंतु चिकित्सकों के न रहने के कारण उदास हो वापस घर लौट जाते हैं।
233 की जगह मात्र 50 चिकित्सक
सिविल सर्जन डॉ. रामप्रताप सिंह ने बताया कि जिले में चिकित्सकों के 233 पद हैं परंतु मात्र 50 चिकित्सक पदस्थापित हैं। चिकित्सकों के अभाव में कई अस्पताल बंद पड़ा है। बंध्याकरण जैसा अभियान सफल नहीं हो पा रहा है। सीएस ने बताया कि अनुबंध पर 49 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं परंतु मात्र 18 चिकित्सक कार्यरत हैं। 63 की जगह आयुष चिकित्सकों की संख्या 44 है। हालात बद से बदतर होती जा रही है। ए ग्रेड नर्स के 128 पद स्वीकृत हैं परंतु कार्यरत मात्र चार हैं। चार के सहारे इलाज कैसे संभव हो पाएगा सोचा जा सकता है। एएनएम के स्वीकृत पद 308 हैं परंतु मात्र 146 कार्यरत हैं।
112 की जगह मात्र 60 दवा
अस्पतालों में दवा की कमी है। स्वस्थ्य समाज बनाने को यहां जोरदार झटका लगता है। सदर अस्पताल के आउटडोर में कुल 33 दवा रखनी है परंतु यहां मात्र 16 उपलब्ध है। इंडोर में 112 की जगह मात्र 60 दवा उपलब्ध है। दवा न रहने के कारण मरीज बेचैन रहते हैं।
आमजनों को उम्मीद है कि इस वर्ष चिकित्सा व्यवस्था में सुधार आएगा। चिकित्सकों के खाली पद भरे जाएंगे।