मिसाल-बेमिसाल: अनपढ़ पति-पत्नी ने देखा एेसा, स्कूल के लिए दान कर दी जमीन
एक अनपढ़ पति-पत्नी ने गांव के बच्चों को स्कूल और पढ़ाई के लिए भटकते देखा तो अपनी जमीन का एक हिस्सा बच्चों के स्कूल के लिए दे दिया। अब बच्चों को स्कूल जाते देख दोनोंं खुश होते हैं।
औरंगाबाद [मनीष कुमार]। यह ऐसे साधारण से गरीब मजदूर के जज्बे की कहानी है, जिसने अपनी आजीविका की भूमि गांव में विद्यालय भवन बनाने के लिए सरकार को दान कर दी। दान की भूमि पर जब विद्यालय बना तो कलम, कॉपी और किताब से 'लाल इलाके' के बच्चों की तकदीर बदलने लगी, उनके सपनों को पंख लग गए हैं।
जिले के नक्सल प्रभावित और पहाड़ों की तराई में स्थित देव प्रखंड की पूर्वी केताकी पंचायत के गंजोई में यह प्राथमिक विद्यालय बना है। इलाके में हर समय नक्सलियों व सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ होती रहती है। इस परिस्थिति में विद्यालय में पढऩे वाले गंजोई व सेवरीनगर के बच्चे कलम से न सिर्फ अपनी तकदीर बदल रहे हैं, बल्कि इलाके में बदलाव की कहानी भी लिख रहे हैं।
यह बदलाव गंजोई के गरीब व निरक्षर महादलित जगनारायण भुइयां के जज्बे से हुआ है। वर्ष 2008 में जब इस इलाके में शिक्षा के विकास के लिए सर्व शिक्षा अभियान से विद्यालय खुलने की स्वीकृति मिली तो जमीन नहीं होने के कारण करीब दो वर्षों तक न विद्यालय खुला और न भवन बना।
गांव के आसपास कोसों दूर कोई विद्यालय नहीं था। बच्चे जंगलों में भटकते रहते। तब जगनारायण ने अपनी कुल एक एकड़ जमीन में से 40 डिसमिल भूमि विद्यालय के लिए दान दे दी। जमीन दान में दी तो विद्यालय का भवन बना और पहाड़ों की तराई के इस इलाके में प्राथमिक विद्यालय खुलने का सपना साकार हुआ।
मजदूर जगनारायण की पत्नी व विद्यालय की रसोइया उर्मिला देवी कहती हैं कि वे निरक्षर हैं, पर अब गंजोई व सेवरीनगर के बच्चों को स्कूल जाता देख दोनों को खुशी होती है।
बच्चों में पढऩे की ऐसी ललक कि समय से पहले पहुंचते हैं स्कूल
विद्यालय की दूसरी रसोइया कुसुमरी देवी ने बताया कि बच्चों में पढऩे की ऐसी ललक है कि वे विद्यालय खुलने के समय से पहले पहुंच जाते हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक हरिशंकर कुमार ने बताया कि कभी इस इलाके में शिक्षा की बात भी सपना थी। अब विद्यालय में 82 बच्चे नामांकित हैं। किसी अन्य शिक्षक के नहीं होने से वर्ग एक से पांच तक के बच्चों को पढ़ाने में परेशानी होती है।
पुलिस अधीक्षक दीपक वर्णवाल ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चे जब शिक्षित हो जाएंगे तो वे गुमराह नहीं होंगे। शिक्षा के विकास से ही नक्सल इलाके से नक्सलवाद का खात्मा हो सकेगा। स्कूल आने-जाने में बच्चों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होने दी जाएगी।