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सरकारी अस्पताल की जगह निजी क्लीनिक में प्रसव

सुरक्षित प्रसव के लिए शासन ने सरकारी अस्पताल पहुंचने को लेकर गर्भवती महिलाओं को प्रेरित करने के लिए योजना बनाई है। सरकारी अस्पताल में प्रसव कराने वाली महिलाओं को आर्थिक

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 07:28 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 06:27 AM (IST)
सरकारी अस्पताल की जगह निजी क्लीनिक में प्रसव
सरकारी अस्पताल की जगह निजी क्लीनिक में प्रसव

औरंगाबाद। सुरक्षित प्रसव के लिए शासन ने सरकारी अस्पताल पहुंचने को लेकर गर्भवती महिलाओं को प्रेरित करने के लिए योजना बनाई है। सरकारी अस्पताल में प्रसव कराने वाली महिलाओं को आर्थिक मदद दी जाती है, बावजूद संस्थागत प्रसव का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। जनसंख्या नियंत्रण के साथ ही मातृ शिशु दर को कम करने के लिए गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने पर पैसा खर्च किया गया। गांवों में आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई। इनका दायित्व गर्भवती महिलाओं की नियमित देखभाल, निर्धारित समय पर उनका टीका लगाना एवं समय पूरा होने पर निकट के किसी सरकारी अस्पताल में सुरक्षित प्रसव कराने की जिम्मेदारी है। सदर, अनुमंडलीय अस्पताल, तीन रेफरल अस्पताल, पांच सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, 11 प्राथमिक स्वास्थ केंद्र, 65 अतिरिक्त स्वास्थ उपकेंद्र एवं 285 स्वास्थ उपकेंद्र है। अस्पतालों में प्रसव कराने की व्यवस्था की गई है लेकिन इसके बाद भी स्थिति में सुधार नहीं आया। अस्पतालों में चिकित्सक एवं नर्स की कमी है। विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2018 से फरवरी 2019 तक 74,759 महिलाओं को संस्थागत प्रसव कराने का लक्ष्य रखा गया था जिसमें मात्र 30, 375 महिलाओं का ही प्रसव हो सका। यानी लक्ष्य के मात्र 40.6 प्रतिशत महिलाओं का संस्थागत प्रसव किया जा सका। लक्ष्य से भटक रहा संस्थागत प्रसव

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लक्ष्य के लिए की जा रही कोशिश का मामला उल्टा है। लक्ष्य हर साल बढ़ता जा रहा है और उसे पाना और कठिन बनता जा रहा है। स्वास्थ विभाग को परिवार नियोजन, संस्थागत प्रसव से लेकर सीजेरियन आपरेशन तक का लक्ष्य दिए गए हैं। टीकाकरण से लेकर ओपीडी में मरीजों को देखने का लक्ष्य रखा गया है। लक्ष्य को पाने की कोशिश शायद ही विभाग कर रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष वर्ष 2016 से 2017 में पूरे जिले में 62,030 महिलाओं को संस्थागत प्रसव कराने का लक्ष्य रखा गया था। मात्र 31 हजार 349 महिलाओं का प्रसव हो सका। यानी लक्ष्य के मात्र 51 प्रतिशत महिलाओं का संस्थागत प्रसव किया जा सका। वर्ष 2017 से 2018 में 63 हजार 687 महिलाओं को प्रसव कराने का लक्ष्य रखा गया था जिसमें मात्र 33 हजार 121 महिलाओं का ही प्रसव हो सका। यानी लक्ष्य के मात्र 52 प्रतिशत ही लक्ष्य पूरा किया जा सका। वर्ष 2018-19 की स्थिति अत्यंत दयनीय रही। 40.6 प्रतिशत लक्ष्य ही पूरा हो सका। प्रखंड का नाम लक्ष्य प्राप्ति प्रतिशत

औरंगाबाद 2478 206 8.3

औरंगाबाद सदर 5783 6689 115.7

बारुण 5998 1519 25.3

दाउदनगर 6215 1941 31.2

देव 5117 1679 32.8

गोह 6871 2667 38.8

हसपुरा 4677 2276 48.7

कुटुंबा 6807 2788 41

ओबरा 6654 2501 37.6

रफीगंज 8932 3160 35.4

मदनपुर 6171 2929 47.5

नवीनगर 9054 2020 22.3 मरीज को मिलता है रेफर का पुर्जा

संस्थागत प्रसव का लक्ष्य पूरा न होना एक बड़ी समस्या है। लक्ष्य न पूरा होने का मुख्य कारण चिकित्सक की लापरवाही है। मरीज को अस्पताल में आने के साथ ही रेफर का पूर्जा थमा दिया जाता है। चिकित्सक प्रसव कराने में कतराती हैं। हालात यह होता है कि मरीज के परिजन निजी क्लीनिक का रास्ता देखते हैं। निजी क्लीनिक में मरीजों के साथ पैसों का दोहन किया जाता है। पैसों के चक्कर में चिकित्सक महिलाओं का आपरेशन कर प्रसव कराती हैं। निजी क्लीनिक में चिकित्सक द्वारा महिलाओं का प्रसव कराने में 25 से 30 हजार रुपये लिया जाता है। एक तो सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक की वैसे ही कमी, दूसरे कई चिकित्सक गांव के अस्पतालों में रात के समय रुकते नहीं है। सरकारी अस्पताल में चिकित्सक प्रसव के लिए आई महिलाओं को रेफर कर देते हैं। सरकारी अस्पतालों में नर्स कराती हैं प्रसव

जिले के सभी अस्पतालों में महिलाओं का प्रसव नर्स कराती है। चिकित्सक के न होने के कारण मरीज के परिजन नर्स से प्रसव कराने में डर जाते हैं जिस कारण वे निजी क्लीनिक में चले जाते हैं। जिले के सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल, रेफरल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ केंद्र हो या स्वास्थ उपकेंद्र सभी जगह नर्स ही प्रसव कराती हैं। चिकित्सक एक से दो घंटे अस्पताल में रहते हैं उसके बाद अपने घर चले जाते हैं। बताते चले कि सदर अस्पताल में चार चिकित्सक कार्यरत हैं परंतु एक भी चिकित्सक दो बजे के बाद ड्यूटी पर नहीं रहते हैं। चिकित्सक को फोन किया जाता है तो वे अस्पताल आती हैं। यहां नर्स ही महिलाओं को प्रसव करवाती हैं। इससे साफ स्पष्ट हो रहा है कि स्वास्थ विभाग महिलाओं एवं होने वाले शिशु के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है। प्रसव के दौरान जब स्थिति अनियंत्रित होती है तो आनन-फानन में महिला चिकित्सक को फोन करना शुरू कर दिया जाता है। चार चिकित्सक के होने के कारण परेशानी होती है। बता दें कि फोन पर चिकित्सक के आते-आते कई बड़ी घटनाएं हो गई है जिस कारण अस्पताल में हंगामा हुआ है। सदर अस्पताल के प्रसव वार्ड में दुर्गंध से महिलाओं को रहना मुश्किल हो गया है। महिला रेणु देवी, आरती कुमार एवं सीमा देवी ने बताया कि दुर्गंध के कारण परेशानी हो रही है।


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