रुह की पाकीजगी है रोजा : जकिया फरहत
औरंगाबाद। गृहिणी जकिया फरहत रोजा को सिर्फ भूख-प्यास का नाम नहीं मानती। वे मानती हैं कि भूखे
औरंगाबाद। गृहिणी जकिया फरहत रोजा को सिर्फ भूख-प्यास का नाम नहीं मानती। वे मानती हैं कि भूखे रहना ही रोजा नहीं है। यह रूह की पाकीजगी का मामला है। आत्मा का शुद्धिकरण आवश्यक है। विवेक, धैर्य, त्याग, विचार पर नियंत्रण का यह रोजा है। कहा कि दैनिक कार्य के अलावा महिलाओं के लिए अतिरिक्त काम बढ़ जाता है। घर में रोजदार न हो तो भी बच्चों के लिए नाश्ता बनाना पड़ता है। इसके बाद करीब 2 बजे से इफ्तार की तैयारी शुरु करनी पड़ती है। पकवान बनाना पड़ता है। इसके बाद सेहरी की तैयारी में महिलाओं को लग जाना पड़ता है। यह काम पुरुषों के अतिरिक्त है। इसके अलावा पाच वक्त का नमाज, तरावी पढ़ना ही है। जकिया फरहत ने बताया कि औरतें घर में सूर-ए-तरावी पढ़ती हैं। तिलावत करती हैं अर्थात कुरान-ए-पाक को पढ़ती हैं। बताया कि शब-ए-कदर पाच हैं। बताया कि रमजान महीने की 21, 23, 25, 27 एवं 29 की रात को कदर की रात कहते हैं। यह रात अहमियत वाला माना जाता है। कहा कि रोजा रखने वाले को किसी की शिकवा शिकायत में नहीं रहना चाहिए। मागने आने वाले को भगाना, झूठ बोलना मनाही है। जकिया फरहत ने कहा कि जब कोई कुछ मागने आए तो खुद के पास कमी भले पड़ जाए, किंतु मांगने वाले को अवश्य देना चाहिए।