कोबरा के कब्जे में आ रहे छकरबंदा जंगल के नक्सल ठिकाने
औरंगाबाद एवं गया जिले के दक्षिणी इलाके में स्थित छकरबंदा जंगल अब सीआरपीएफ और कोबरा के कब्जे में आ गया है। सीआरपीएफ और कोबरा के अधिकारियों के अनुसार जंगल को एक वर्ष के अंदर नक्सलमुक्त कर दिया जाएगा। इस जंगल में मदनपुर थाना क्षेत्र के लंगुराही पचरुखिया ठकपहरी सागरपुर सहजपुर समेत अन्य जंगली और पहाड़ी क्षेत्र है। गया के आमस बांकेबाजार इमामगंज डुमरिया एवं लुटुआ थाना क्षेत्र में बरहा छकरबंदा डुमरीनाला समेत अन्य जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र है। यह जंगल झारखंड के पलामू जिले की सीमा क्षेत्र से लगता है। यह जंगल भाकपा माओवादियों का सबसे सुरक्षित शरणस्थली रहा है। इस जंगल में नक्सली अपने ट्रेनिग कैंप का संचालन करते थे। जंगल में अपनी सुरक्षा में नक्सली हर जगह आइईडी लगा रखे हैं।
औरंगाबाद । औरंगाबाद एवं गया जिले के दक्षिणी इलाके में स्थित छकरबंदा जंगल अब सीआरपीएफ और कोबरा के कब्जे में आ गया है। सीआरपीएफ और कोबरा के अधिकारियों के अनुसार जंगल को एक वर्ष के अंदर नक्सलमुक्त कर दिया जाएगा। इस जंगल में मदनपुर थाना क्षेत्र के लंगुराही, पचरुखिया, ठकपहरी, सागरपुर, सहजपुर समेत अन्य जंगली और पहाड़ी क्षेत्र है। गया के आमस, बांकेबाजार, इमामगंज, डुमरिया एवं लुटुआ थाना क्षेत्र में बरहा, छकरबंदा, डुमरीनाला समेत अन्य जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र है। यह जंगल झारखंड के पलामू जिले की सीमा क्षेत्र से लगता है। यह जंगल भाकपा माओवादियों का सबसे सुरक्षित शरणस्थली रहा है। इस जंगल में नक्सली अपने ट्रेनिग कैंप का संचालन करते थे। जंगल में अपनी सुरक्षा में नक्सली हर जगह आइईडी लगा रखे हैं। 12 वर्षों से नक्सलियों के लिए सेफ जोन बना था यह जंगल
करीब 12 वर्षों से यह जंगल नक्सलियों का सेफ जोन था। इसी जंगल को नक्सली नेपाल से बिहार होते झारखंड एवं छत्तीसगढ़ तक लाल इलाका घोषित कर रखे थे। नक्सल अभियान में लगे सुरक्षाबल करीब 17 से 25 किमी में फैले इस जंगल को दंतेवाड़ा से भी खतरनाक मानते हैं। आज इस जंगल में सीआरपीएफ एवं कोबरा का बसेरा हो गया है। कार्रवाई के बाद पलामू व चतरा भाग रहे नक्सली
नक्सलियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना करीबाडोभा, लडुइया, डुमरीनाला एवं दादर पहाड़ी एवं जंगल को कोबरा और सीआरपीएफ के द्वारा मैपिग कर प्रतिदिन सर्च आपरेशन चलाया जा रहा है। स्थिति यह हो गई है कि नक्सली जंगल को छोड़कर झारखंड के पलामू और चतरा जिले के जंगल में भाग रहे हैं। नक्सली अपनी जान बचाने के लिए अपने हथियार, कारतूस समेत अन्य सामान को जंगल में ही छोड़कर भाग रहे हैं जिसे सर्च आपरेशन में सुरक्षाबलों के द्वारा बरामद की जा रही है। 30 दिनों में 500 से अधिक आइईडी बरामद
जंगल को नक्सलमुक्त करने के लिए जनवरी 2021 से लगातार सीआरपीएफ व एसएसबी के द्वारा सर्च आपरेशन चलाया जा रहा है। नक्सलियों के द्वारा जंगल में हर जगह लगाए गए आइईडी को देखते हुए सुरक्षाबलों के द्वारा शैडो अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान के तहत आइईडी को जंगल में ही डिस्ट्राय कर सुरक्ष बलों के द्वारा नक्सलियों के ठिकाने तक पहुंच रहे हैं। उनके हथियार व कारतूस की बरामदगी कर रहे हैं। एक माह में सुरक्षाबलों ने 500 से अधिक आइईडी, छह हथियार, करीब 400 कारतूस के अलावा बड़ी मात्रा में अन्य विस्फोटक सामान समेत खाने पीने से लेकर दैनिक उपयोग की सामग्री को बरामद किया है। करीब छह से अधिक नक्सलियों के बंकर को ध्वस्त किया है। गया और औरंगाबाद साइड से पहार पर बना कैं प
छकरबंदा जंगल करीब 12 वर्षों से नक्सलियों के कब्जे में है। कई बड़ी नक्सली घटना का यह जिला गवाह बना है। नक्सल घटना को लेकर ही यहां एएसपी अभियान का पद सृजित किया गया और वर्ष 2010 से आजतक यहां एएसपी अभियान के पद पर सीआरपीएफ के अधिकारी की पोस्टिग होती रही है। वर्ष 2016 में डुमरीनाला जंगल में कोबरा के दस जवानों के बलिदान होने और करीब छह जवानों के घायल होने की घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय गंभीर हुआ और राज्य सरकार के साथ मिलकर इस जंगल को नक्सलमुक्त करने की विशेष कार्ययोजना बनाई। कार्ययोजना के तहत इस जंगल के अलावा बाहर पहाड़ के आसपास सीआरपीएफ व एसएसबी की छह कैंप स्थापित किया गया। गया की तरफ से भी कैंप लगाए गए हैं।