फूल की खेती सुगंधित कर रहा माली परिवार की ¨जगदी
औरंगाबाद। कुटुंबा प्रखंड के दधपा गांव के मालाकार परिवार के युवा वर्ग फूलों की खेती मे
औरंगाबाद। कुटुंबा प्रखंड के दधपा गांव के मालाकार परिवार के युवा वर्ग फूलों की खेती में नई इबारत लिख रहे हैं। फूलों की खेती कर दधपा गांव के युवा किसान संतोष मालाकार, किशोरी मालाकार, दिलीप मालाकार एवं सुनील मालाकार का परिवार खुशहाल हुआ है। घर की गरीबी दूर हुई है।खेतों में खुशबू सौंदर्य और रंग का आकर्षण प्रकृति ने फूलों में उड़ेल रखी है। खेतों में ही फूलों के ग्राहक पहुंचते हैं और खरीदारी करते हैं। तीनों किसानों ने फूल की खेती कर कृषि में क्रांति का सूत्रपात किया है। किसानों ने चिल्हकी गांव में लीज पर खेत लेकर फूल की खेती कर रहे हैं। फूल की खेती से किसानों के घरों में खुशहाली आई है। किसान करीब तीन बीघा में फूल की खेती किए हैं। फूल की खेती ने माली परिवार की ¨जगदी को सुगंधित कर दी है।
किसान किशोरी मालाकार ने कहा कि पुश्तैनी धंधे का अलग महत्व है। फूल तो हम बचपन से बेचते आए हैं। पहले फूल बाहर से मंगाते थे अब स्वयं खेती करते हैं। फूल की खेती से अच्छी आमदनी हो जाती है। फूल का माला बनाना, सजावट करना एवं इसे उगाने का धंधा ही माली परिवार का रहा है। पुश्तैनी धंधे में रहकर अपना तकदीर बदल रहे हैं। फूल एक ऐसा उत्पादन है, जिसकी मांग पूरे वर्ष रहती है। घर के समीप ही धंधा और खेती दोनों कर लें तो निश्चय ही कुछ अलग मिलेगा।
किशोरी मालाकार का भाई संतोष मालाकार ने कहा कि यह बात ठीक है कि व्यावसायिक खेती में पूंजी अधिक लगती है, पर यह भी सत्य है कि मेहनत से की गई खेती से लाभ भी मिलता है। फूल की खेती में लागत एवं मेहनत दोनों लगाते हैं तो मुनाफा भी ठीक है। बताया कि खेती से परिवार का भरण पोषण, बच्चों की पढ़ाई से लेकर अन्य खर्च निकलता रहा है। नौकरी करने वाले की आय सीमित होती है पर व्यवसाय में असीमित आय के साथ बंधन मुक्त जीवन मिलता है।
किसान सुनील बताता है कि एक वह भी दिन था जब हमारे बाप दादा फूल बनारस व पटना से खरीदकर लाते थे। इस कार्य में उन्हें समय व धन दोनों की क्षति होती थी। कड़ी मेहनत के बावजूद दो जून की रोटी नसीब नहीं होता था। समय बदला कृषि क्रांति ने लोगों का जीवन स्तर को बदल दिया। कृषि में यंत्र का कमाल से भारी बदलाव हुआ है।
मालाकार परिवार द्वारा की जा रही फूल की खेती से बिहार झारखंड के कई बाजारों में खुश्बू बिखेर रहा है। किशोरी बताते हैं कि गेंदा एवं गुलाब का फूल गया, नवीनगर, औरंगाबाद, रांची व झारखंड के कई बाजारों में बिकती है। स्थानीय बाजार में वैवाहिक दिनों में फूल की मांग बढ़ जाती है। पहले किलोग्राम के हिसाब से बिकते थे अब गूंथी गई लड़ियों को कुड़ी के हिसाब से बेचा जाता है।
दस कट्ठे में होती है 50 हजार की आमदनी
फूल की खेती करने वाले मालाकार बताते हैं कि शुरुआती दिनों में लगता था कि यह खेती लाभ न देकर उनकी पूंजी को डूबो देगा पर ऐसा नहीं हुआ। खेती से हुई आए से हौसला बढ़ा तो इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने का ज्ञान दिया। फूल की खेती से 10 कट्ठे में करीब 50 हजार की आमदनी होती है। आज माली परिवार कई जगहों पर गुमटी लगाकर फूल बेचकर अपने घर और परिवार को चला रहे हैं। मंदिरों में पूजा के अलावा शादी विवाह के समय में फूल की बिक्री अधिक होती है। किसान बताते हैं कि पिछले दस वर्ष में कृषि अधिकारी खेत पर फूल देखने तो आए पर किसी तरह की सरकारी सहायता न दिला सके। खासकर पौधा की उपलब्धता, उर्वरक और ¨सचाई संयंत्र की उपलब्धता विभाग नहीं करा पाती है।
कहते हैं उद्यान पदाधिकारी
जिला उद्यान पदाधिकारी ज्ञानचंद ने बताया कि फूल की खेती किसान को समृद्ध बनाने के लिए एक बेहतर जरिया है। इस खेती में किसान को फसल और व्यवसाय दोनों मिल जाता है। दधपा के किसान की खेती को देखकर उन्हें आवश्यक संसाधन दिलाने का प्रयास किया जाएगा। उद्यान विभाग द्वारा इस खेती के लिए सहायता दी जाती है। किसान को विभाग के संपर्क में आना चाहिए।