सहस्त्रधारा तालाब के अस्तित्व पर संकट
औरंगाबाद। जिस तरह खूबसूरत मोरनी अपने पैरों को देखकर सहम जाती है ठीक उसी प्रकार मैं अभी दुखी हूं क्या
औरंगाबाद। जिस तरह खूबसूरत मोरनी अपने पैरों को देखकर सहम जाती है ठीक उसी प्रकार मैं अभी दुखी हूं क्या वह अछूत पल थे जब त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने कर्मनाशा नदी पार कर देवकुंड पहुंचे थे। यहां 108 देवताओं द्वारा स्थापित सहस्त्रधारा तालाब में स्नान कर च्यवन ऋषि का दर्शन किया था। तालाब में स्नान करने के बाद स्वयं बाबा दूधेश्वरनाथ के शिव¨लग की स्थापना की थी। उस समय वहां घनघोर जंगल था जिसका कुछ अंश आज भी देखने को मिलता है रास्ते दुर्गम है लेकिन यह स्थान सुंदरता से परिपूर्ण था सुंदरता ऐसे कि देखते ही मन खुश हो जाए कई इतिहास को समेटे यह स्थान आज भी उपेक्षित है। औरंगाबाद जिले के अंतिम छोर गोह प्रखंड के सीमा पर स्थित है। गौरवगाथा सुनने के बाद पता चलता है कि देवकुंडधाम कितना महत्वपूर्ण है लेकिन वर्षों पुराना बना सहस्त्रधारा तालाब का अस्तित्व संकट में है। तालाब में पानी नहीं है इसको लेकर वर्तमान मठाधीश कन्हैयानंदपुरी ने तालाब की सफाई करवाते हुए उड़ाही करवाया बावजूद अभी तक तालाब सुखा ही दिख रहा हैं। तालाब पर न तो सरकार का ध्यान है न ही जिला प्रशासन का। ऐतिहासिक तालाब आज भी अपनी उपेक्षा पर आंसू बहा रहा है। तालाब में सावन माह में आने वाले लाखों श्रद्धालु स्नान करके बाबा दूधेश्वरनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। सालों भर प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला लगा रहता है, लेकिन तालाब में पानी न होने के कारण चापाकल पर स्नान करना उनकी मजबूरी हो जाती है। पानी के अभाव में श्रद्धालुओं को चापाकल पर स्नान करना पड़ता है। हमेशा जलते रहता है अग्निकुंड
पदम पुराण पाताल भृगु संहिता के रचनाकर भृगु मुनि के पुत्र च्यवन ऋषि द्वारा पांच हजार वर्ष पहले यह कुंड स्थापित किया गया था। अग्निकुंड में अब भी जलते रहता है। प्राकृतिक आपदा सहन करते हुए आज भी देवकुंड स्थित मठ में कुंड से अग्नि प्रज्वलित हो रही है जो देखने के योग्य है। सरकार को देनी चाहिए देवकुंड पर ध्यान : रामईश्वर
फोटो फाइल - 23 एयूआर 02
ग्रामीण रामईश्वर ¨सह का कहना है कि देवकुंड स्थित च्यवन स्थल औरंगाबाद जिले के जाने-पहचाने धर्म स्थलों में एक है। सरकार को इस देवकुंड के तरफ ध्यान देनी चाहिए जिससे इस स्थल का विकास हो सके। विकास से यह स्थल ओझल हो गया है। तालाब झेल रहा है सरकारी उपेक्षा का दंश : अरुण
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समाजसेवी अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि जिस तालाब में स्नान करने से च्यवन ऋषि का शरीर युवावस्था को प्राप्त किया था और उसी तालाब में स्नान कर सुकन्या ने प्रथम बार सूर्य को अर्ध्य देकर छठ पर्व की शुरुआत की थी बावजूद आज भी यह स्थल सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा। निर्माता ने स्थल पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया : सुभाष
फोटो फाइल - 23 एयूआर 04
दिलावरपुर ग्रामीण सुभाष प्रसाद का कहना है कि च्यवन ऋषि के आश्रम से ही चवनप्राश का निर्माण हुआ था लेकिन डाबर च्यवनप्राश के निर्माता ने इस स्थल पर एक रुपये भी खर्च नहीं किया अगर निर्माता ने एक परसेंट भी आमदनी का खर्च च्यवन ऋषि के तपोस्थल पर करता तो बड़े पैमाने पर विकास की रुपरेखा होती है।