बाबा मधेश्वरनाथ पर जलाभिषेक को लगा रहा शिवभक्तों का तांता
ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व से जुड़े बाबा मधेश्वर नाथ के शिव¨लग पर जलाभिषेक करने के ।
अरवल। ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व से जुड़े बाबा मधेश्वर नाथ के शिव¨लग पर जलाभिषेक करने के लिए सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा रहा। हर हर महादेव की गूंज से मंदिर परिसर गुंजायमान होता रहा । स्थानीय लोगों के साथ साथ प्रदेश के अन्य भागों से आए शिवभक्तों ने भी जलाभिषेक किया। महिला पुरुष ने भारी संख्या में भाग लिया। मनोकामनाओं व मोक्ष की प्राप्ति में डूबकी लगाई। मालूम हो कि मधुश्रवां में अवस्थित बाबा मधेश्वर नाथ के दर्शनार्थ पूजा अर्चना व जलाभिषेक के लिए राज्य के कोने-कोने से शिव भक्त श्रावण महीने में आते हैं। पहली सोमवारी को जलाभिषेक करने के लिए काफी संख्या में भक्तों का जमावड़ा लगा। शिव भक्तों के जयघोष व हर हर महादेव की गूंज से पूरे दिन मंदिर परिसर गुंजायमान रहा। शिवभक्तों ने स्थानीय सरोवर में स्नान कर भगवान भोले बाबा को जलाभिषेक कर बेलपत्र, पुष्प,अक्षत,चंदन के साथ भांग धतूरा चढ़ाकर मंगल कामना के लिए प्रार्थना किया। सैकड़ों शिवभक्त श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करते हैं। भक्तों के अनुसार बाबा मधेश्वर नाथ पर श्रावण माह में जलाभिषेक व पूजा अर्चना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है। बिहार में दो स्थानों पर लगने वाले मलमास मेले में एक मधुश्रवां भी है। जिसमें प्रदेश के साथ अन्य प्रदेश से लोग आकर बाबा मधेश्वरनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। इस ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल का जितना विकास होना चाहिए वर्तमान समय तक नहीं हो पाया है। मधुश्रवां को पर्यटन स्थल घोषित करने का वादा राज्य सरकार के कई मंत्री ने किया लेकिन पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया है। हाल के वर्षो में दूर दराज से आने जाने वाले यात्रियों के लिए इक्का दुक्का भवन का निर्माण कराया गया है। ऐतिहासिक तालाब के घाटों का निर्माण भी कराया गया है लेकिन, पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण श्रद्धालुओं को परेशान देखा गया। परिसर की गंदगी प्राचीन मधुश्रवा शिव मंदिर परिसर में जगह-जगह लगी गंदगी यहां की व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही थी। भक्त चंद्रशेखर कुमार ने बताया कि मंदिर प्रशासन के ढुलमुल रवैये के चलते तालाब में गंदगी पसरी है। इस ओर प्रशासन का भी ध्यान नहीं जा रहा है। । जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर स्वच्छता अभियान को पूरे दिन मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। कुछ श्रद्धालुओं ने तो यह भी कहा कि सावन मास में हमें भी मंदिर की साफ-सफाई पर ध्यान देना होगा।
स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी पूजा अर्चना : पौराणिक एवं प्राचीन धर्म स्थल होने का प्रमाण धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक ग्रंथों एवं जनश्रुतियों के अनुसार कालांतार में ब्रहमपुत्र भृगुमुनी गंगा नदी के तट पर तपस्या में लीन थे। उनके साथ उनकी पत्नी फूलोत्मा रहती थी। मुनी के स्नान करने जाने के दौरान उनकी पत्नी को एक राक्षस उठाकर आकाश मार्ग से भागने लगा। भृगुमुनी ने कुश का एक दिव्य वाण बनाकर राक्षस पर छोड़ा और राक्षस घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा। मुनी की पत्नी गर्भवती थी और उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया जिसका नाम च्यवन रखा गया। उसी वक्त इस पौराणिक स्थल का नामाकरण मधुश्रवां किया गया। यह भी बताया जाता है कि प्रसव काल के दौरान मुनी की पत्?नी के शरीर से जो रक्तश्राव हुआ उससे वहां पर एक तालाब का निर्माण हुआ। मधुश्रवां स्थित इस तालाब के बारे में भी एक धार्मिक मान्यता है। जनश्रुतियों के अनुसार जिस स्त्री को संतान नहीं होता है वह अगर सच्चे मन से तालाब में स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करती है तो उसकी सारी मन्नतें पूर्ण होती है। इतना ही नहीं इस तालाब में स्नान करने से कुष्ठ व चर्म रोग सहित अन्य बीमारियां भी दूर होती है। जनश्रूति के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्री रामचंद्र ने भी गया ¨पडदान करने जाते समय पत्?नी सीता के साथ यहां रुककर बाबा मधेश्वरनाथ की पूजा अर्चना की थी। यहां यह भी उल्लेख है कि सावन माह में शिवभक्त पहुंचकर बाबा मधेश्वरनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। इसका प्रमाण शिव पुराण में भी मिलता है
तालाब से जुड़ी कई कहानियां : इस पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद शरीर से जुड़ी सारी व्याधियां समाप्त हो जाती है। नाग कन्याओं ने भी इसी पवित्र में सरोवर में स्नान कर छठव्रत की थी। कहा यह भी जाता है कि अगर सच्चे मन से तालाब में स्नान कर छठव्रत करने पर संतान का भी सुख प्राप्त होता है। इसके साथ ही कुष्ठ सहित अन्य व्याधियां भी दूर हो जाती है।इसी पवित्र सरोवर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र जी महाराज ने भी सपरिवार स्नान कर बाबा मधेश्वर नाथ पर जलाभिषेक किया था।