वेंकटेश्वर धाम में संपन्न हुआ रामकथा का आयोजन
अरवल। वेंकटेश्वर धाम महेंदिया में आयोजित रामकथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। स्वामी श्री रंग रामानुजाचार्य ने राम-रावण युद्ध के साथ ही लंका में विभीषण और अयोध्या में राम के राज्याभिषेक प्रसंग का रोचक वर्णन कर उपस्थित श्रद्धालुओं का मनमोह लिया।
अरवल। वेंकटेश्वर धाम महेंदिया में आयोजित रामकथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। स्वामी श्री रंग रामानुजाचार्य ने राम-रावण युद्ध के साथ ही लंका में विभीषण और अयोध्या में राम के राज्याभिषेक प्रसंग का रोचक वर्णन कर उपस्थित श्रद्धालुओं का मनमोह लिया। कहा कि महान ज्ञानी एवं राजनीतिज्ञ होने के बाद भी रावण आदर्श राज्य की स्थापना नहीं कर सका। जबकि, विभीषण और राम ने राक्षस राज का उन्मूलन कर अयोध्या एवं लंका में राम राज्य की स्थापना की। उन्होंने समापन दिवस पर भगवान श्री राम का राज्याभिषेक प्रसंग की कथा कही। उन्होंने कहा कि जब भगवान श्री राम सीता सहित अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासी उन्हें असंख्य दीपों से उनका स्वागत किया। हजारों लाखों दीप जलाए गए। सभी दिशाओं से राजा महाराजा आए । उन्होंने कहा सुग्रीव के आदेशानुसार जाम्बान, हनुमान, गवय और ऋषभ ये सभी वानर चारों समुद्रों और पांच सौ नदियों से सोने के कलश में जल भर लाए। ऋषभ दक्षिण, गवय पश्चिम और पवन पुत्र हनुमान जी उत्तर वर्ती महासागर से जल ले आए । शत्रुघ्न जी ने जल पूर्ण कलशों को पुरोहित वशिष्ठ जी तथा अन्य सुहृदों को समर्पित कर दिया। तदनंतर ब्राह्मणों सहित वशिष्ठ जी ने सीता सहित रामचंद्र को रत्नमयी चौकी पर बैठाया और वशिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप, कात्यायन, सुयज्ञ, गौतम और विजय इन आठ मंत्रियों ने स्वच्छ एवं सुगंधित जल से सीता सहित श्री राम का अभिषेक कराया। सबसे पहले उन्होंने संपूर्ण औषधियों के रसों तथा पूर्वोक्त घड़ों के जल से ऋत्विग् ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक करवाया। फिर 16 कन्याओं द्वारा तत्पश्चात मंत्रियों द्वारा अभिषेक की विधि पूरी हुई।तदनंतर अन्यान्य योद्धाओं तथा व्यवसायियों को भी अभिषेक का अवसर दिया गया। उस समय आकाश में खड़े हुए समस्त देवताओं एकत्र हुए चारों लोकपालों ने भगवान श्रीराम का अभिषेक किया।उसके बाद श्री वशिष्ठ जी ने ब्रह्मा जी का बनाया हुआ एक दिव्य किरीट और अन्यान्य आभूषणों से ब्राह्मणों को साथ लेकर रघुनाथ जी को विभूषित किया। उस समय शत्रुघ्न जी भगवान के ऊपर श्वेत रंग का छत्र लगाया। एक तरफ वानरराज सुग्रीव हाथ में श्वेत चंवर डुलाने लगे। और दूसरी तरफ राक्षस राज विभीषण चंद्रमा के समान चमकीला चंवर लेकर डोलाना आरंभ किया। उस अवसर पर देवराज की प्रेरणा से वायु देव ने स्वर्णमय कलशों से बनी एक दीप्तिमती माला और सब प्रकार के रत्नों से युक्त मणियों से विभूषित राजा रामचंद्र जी को भेंट में दिया । श्रीराम ने अभिषेक काल में गंधर्व गाने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगी। श्री राम के राज्याभिषेक के उत्सव के समय पृथ्वी सस्य-संपन्न हो गयी। वृक्षों में फल लग गये और फूलों में सुगंध छा गयी । महाराज श्री राम ने उस समय एक लाख घोड़े उतने ही दूध देने वाली गाय साल 30 करोड़ असर्फियां अनेक प्रकार के बहुमूल्य आभूषण और वस्त्र ब्राह्मणों को दिए । तत्पश्चात राजा श्रीराम ने अपने मित्र सुग्रीव को सोने की एक दिव्य माला भेंट की। वह माला सूर्य की किरणों के समान प्रकाशित हो रहे थी। अन्य राजाओं को भी भगवान ने अनेक प्रकार के उपहार दिया। इसके बाद बाली पुत्र अंगद को नीलम जड़ित दो बाजूबंद भेंट किये । पुन: श्री राम ने उत्तम मणियों से युक्त एक हार सीता के गले में पहना दिया । साथ ही दो दिव्य वस्त्र और बहुत से आभूषण सीता को समर्पित किए । उस समय की शोभा देखते बन रही थी।